F शिव पुराण कथा हिंदी में-16 shiv puran hindi and sanskrit - bhagwat kathanak
शिव पुराण कथा हिंदी में-16 shiv puran hindi and sanskrit

bhagwat katha sikhe

शिव पुराण कथा हिंदी में-16 shiv puran hindi and sanskrit

शिव पुराण कथा हिंदी में-16 shiv puran hindi and sanskrit

 शिव पुराण कथा हिंदी में-16 shiv puran hindi and sanskrit

शिव पुराण कथा हिंदी में-16 shiv puran hindi and sanskrit

( रुद्र संहिता- सती खण्ड )
नारद जी बोले- हे विधे भगवान शंकर की कृपा से आप सब कुछ जानते हैं, आपने शिव और पार्वती की बहुत ही अद्भुत तथा मंगलकारी कथाएं कहीं हैं । फिर भी मैं अतृप्त ही हूं! हे प्रभु मैं उसे पुनः सुनना चाहता हूं। हे पिताजी-
पूर्णांशः शङ्करस्यैव यो रुद्रो वर्णतः पुरा।
विधे त्वया महेशानः कैलाश निलयो वशी।। रु•स• 1-3
पहले आपने शंकर भगवान के पूर्णांश महेशान कैलाश वासी तथा जितेंद्रिय जिन रूप का वर्णन किया वे योगी जितेंद्रिय निर्द्वन्द्व होकर सदैव क्रीडा करते रहते थे।

हे ब्रह्मा जी सदाशिव योगी होते हुए एक स्त्री के साथ विवाह करके गृहस्थ कैसे हो गए ? जो पहले दक्ष की पुत्री थी फिर हिमालय की कन्या हुई वह सती पार्वती किस प्रकार शंकर जी को प्राप्त हुई?
नारद जी के ऐसे वचन सुनकर ब्रह्माजी बोले हे नारद -
शृणुतात मुनिश्रेष्ठ कथयामि कथां शुभाम्।
यां श्रुत्वा सफलं जन्म भविष्यति न संशयः।। रु•स•1-9
सुनिए अब मैं शिव की मंगल करणी कथा कह रहा हूं , जिसको सुनकर जन्म सफल हो जाता है। इसमें संशय नहीं है।

पुराने समय की बात है अपनी संध्या नामक पुत्री को देखकर पुत्रों सहित मैं कामदेव के बाणों से पीड़ित होकर विकार ग्रस्त हो गया था, उस समय धर्म के द्वारा प्रेरित किये जाने पर महायोगी और महाप्रभु रुद्र पुत्रों सहित मुझे धिक्कार कर अपने घर चले गए ।

जिनकी माया से मोहित हुआ मैं वेदवक्ता होने पर भी मूढ़ बुद्धि वाला हो गया। उन्हीं परमेश्वर शंकर के साथ में अकरणीय कार्य करने लगा।

तब भगवान विष्णु ने मुझे समझाया शिव तत्व को भलीभांति जानने वाले भगवान रमापति के द्वारा समझाने पर भी मैं ईर्ष्या और हट को नहीं छोड़ सका। तब मैंने शक्ति की सेवा कर उन्हें प्रसन्न किया उनकी ही कृपा से शिव को मोहित करने के लिए अपने पुत्र दक्ष से वीरण की कन्या असिक्नी के गर्भ से कन्या को उत्पन्न कराया।

अपने भक्तों का हित करने वाली वही उमा दक्ष पुत्री नाम से प्रसिद्ध होकर दुसह तप करके अपनी दृढ़ भक्ति से रुद्र की पत्नी हो गई ।

हे मुने- उनके साथ विहार करते हुए निर्विकार शिव का वह सुखकारी बहुत सा समय बीत गया। तदनन्तर किसी निजी इच्छा के कारण रुद्र की दक्ष से स्पर्धा हो गई। उस समय शिव की माया से दक्ष मोह ग्रस्त महामूढ़ और अहंकार से युक्त हो गया।

उनके ही प्रभाव से महान अहंकारी मूढं बुद्धि और अत्यंत विमोहित हुआ वह दक्ष उन्हीं महाशान्त तथा निर्विकार भगवान हर की निंदा करने लगा।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं। प्रभुता पाहि जाहि मद नाहीं।
और गर्व में भरे हुए सर्वाधिप दक्ष ने मुझे विष्णु को तथा सभी देवताओं को बुलाकर किंतु शिवजी को बिना बुलाए ही स्वयं यज्ञ कर डाला।

किसी कारणवश रुद्र पर असंतुष्ट क्रोध से भरे हुए उस दक्ष प्रजापति ने उन्हें उस यज्ञ में नहीं बुलाया और दुर्भाग्यवश ना तो उसने अपनी पुत्री को ही यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आहूत किया।

जब माया से मोहित चित्त वाले दक्ष प्रजापति ने शिवा को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया तो ज्ञान स्वरूपा उन महा साध्वी ने अपनी लीला प्रारंभ की।

भगवान आशुतोष से आज्ञा मांगी तो उन्होंने बोला सती बिना बुलाए क्यों जाओगी तब सती ने कहा स्वामी पिता के घर बुलावा ना आए तब भी शास्त्र आज्ञा करते हैं चले जाना चाहिए ।

तब भगवान ने कहा देवी जानबूझकर नहीं बुलाए जाने पर जाना ठीक नहीं है फिर भी भगवती अपनी लीला करने की के लिए अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाती हैं। वहां जाने पर माता तो बड़ी प्रेम से मिली ।

उन देवी ने यज्ञ में रुद्र का भाग ना देख कर और अपने पिता से अपमानित होकर वहां उपस्थित सभी की निंदा करके योगाग्नि से अपने शरीर को त्याग दिया। यह सुनकर देवेश्वर रुद्र ने दुसह क्रोध करके अपनी महान जटा उखाड़कर वीरभद्र को उत्पन्न किया। गणों सहित उत्पन्न वीरभद्र ने कहा मैं क्या करूं प्रभु ?
तब शिवजी ने आज्ञा दी-
सर्वापमान पूर्वं हि यज्ञध्वसं दिदेश ह।

हे वीरभद्र दक्ष के यज्ञ में आए हुए सभी का अपमान करते हुए यज्ञ का विध्वंस करो। शिव जी की आज्ञा को पाकर महा बलवान तथा महा पराक्रमी वह गणेश्वर वीरभद्र अपने बहुत सी सेना लेकर यज्ञ विध्वंस के लिए वहां पहुंच गया।

वीरभद्र ने सब को दंडित किया उसने देवताओं के साथ विष्णु को भी जीतकर दक्ष का सिर काट लिया और उस सिर को अग्नि में हवन कर दिया और पूरे यज्ञ को नष्ट कर दिया ।

उसके बाद सभी देवताओं ने यज्ञ की पूर्णता के लिए भगवान शिव की स्तुति की, उनकी स्तुति से भगवान आशुतोष प्रसन्न हो गए। उन्होंने सभी पर कृपा करते हुए दक्ष प्रजापति को जीवित कर दिया और यज्ञ पूर्ण करवाया।

सती के शरीर से उत्पन्न तथा सभी लोगों को सुख देने वाली वह ज्वाला पर्वत पर गिरी वह लोगों के द्वारा पूजित होने पर सुख प्रदान करती है।
ज्वालामुखीति विख्याता सर्वकामफलप्रदा।
बभूव परमा देवी दर्शनात्पापहारिणी।। रु•स• 1-42
ज्वालामुखी के नाम से प्रसिद्ध वे परमा देवी कामनाओं को पूर्ण करने वाली तथा दर्शन से समस्त पापों को नष्ट करने वाली हैं। सभी कामनाओं के फल के लिए लोग इस समय अनेकों विधि विधान से उनकी पूजा करते हैं।

यही सती देवी बाद में हिमालय पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई तब इनका पार्वती यह नाम विख्यात हुआ, उन देवी ने कठिन तप के द्वारा भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया।

नारद जी के निवेदन करने पर ब्रह्मा जी आगे और चरित्र कहते हैं-bदेवर्षि पहले शिवजी निर्गुण, निर्विकल्प,रूप रहित, चिन्मात्र, सत् असत् से परे निर्विकार और परात्पर रूप एक ही थे परंतु उमा के साथ रहने से सगुण और शक्तिमान प्रभु हो गए।

जिनके अंग से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए और विष्णु तथा हृदय से रुद्र की उत्पत्ति हुई- रुद्रो हृदयतो जातो। तभी से सदाशिव के तीन रूप हो गए । इनकी आराधना से मैं भी सुर असुर सहित मनुष्यादि की सृष्टि करने लगा ।

हे मुने- जिस समय मुझ ब्रह्मा ने अत्रि, पुलह आदि प्रभुता संपन्न मानस पुत्रों की सृष्टि की उसी समय मेरे मन से एक सुंदर रूप वाली श्रेष्ठ युवती उत्पन्न हुई-
नाम्नां सन्ध्या दिवाक्षान्ता सायं संध्या जपन्तिका।

वह संध्या के नाम से प्रसिद्ध हुई जो प्रातः संध्या तथा सायं संध्या के रूप में क्रमशः दिवक्षान्ता तथा जपन्तिका कही गई । उस कन्या को देखते ही उठ करके उसे हृदय में धारण करने के लिए मैं मन में सोचने लगा।

दक्ष ,मरीचि आदि मेरे पुत्र भी सोचने लगे। उसी समय एक अत्यंत अद्भुत एवं मनोहर मानस पुरुष उत्पन्न हुआ। हे तात वह पुरुष काले बालों से युक्त, श्याम गज के समान स्थूल काया वाला और सुंदर नीले वस्त्र पहने, कटाक्षपात से नेत्रों को घुमाते हुए मनोहर प्रतीत होने वाला, सुगंधित स्वास से युक्त और श्रृंगार से सेवित था।

उसे देखकर मेरे पुत्रों का मन शीघ्र ही विकृत हो गया तब वह पुरुष मुझ ब्रह्मा को देखकर विनय भाव से सिर झुका कर प्रणाम करके मुझसे कहने लगा - मेरे लिए किया गया है ?

 शिव पुराण कथा हिंदी में-16 shiv puran hindi and sanskrit

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3