F राम कथा हिंदी में लिखी हुई-17 ram katha book pdf in hindi - bhagwat kathanak
राम कथा हिंदी में लिखी हुई-17 ram katha book pdf in hindi

bhagwat katha sikhe

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-17 ram katha book pdf in hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-17 ram katha book pdf in hindi

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-17 ram katha book pdf in hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-17 ram katha book pdf in hindi

एक दिन मैया हमारे रामलला सरकार को नहला धुला कर सुंदर नए वस्त्र पहनकर श्रृंगार करके सुन्दर पालने पर पौढा देती हैं। उसके बाद मैया मंदिर की सेवा करने के लिए जाती हैं, देखिए कितनी सौभाग्यशालिनी माता है कि जिनके घर में दो-दो भगवान हैं। एक वह भगवान जो मंदिर में बैठे हुए हैं और यह एक भगवान जो पालने में लेटे हुए हैं और सज्जनों आपको बता दें कि यह सौभाग्य भारत की माताओं को ही प्राप्त होता है। और किसी अन्य को नहीं प्राप्त है यह भारत तो वह श्रेष्ठ भूमि है जहां की माताएं अपने गर्भ में एक साथ भक्त और भगवान को भी रखती हैं।

इसका ज्वलंत उदाहरण हम सब ने भागवत महापुराण की कथा पर श्रवण किया माता उत्तरा जिनके गर्भ में भगवान और भक्त दोनों रहे। महाराज परीक्षित और भगवान श्री कृष्ण चंद्र उनके गर्भ की रक्षा के लिए गर्भ में प्रवेश किया तो यह धन्य है भारत भूमि जहां की माताएं भगवान को भी धारण करती हैं। उनको खिलाती हैं, उनको गोद में लेती हैं, उनको चूमती हैं, लाड लडाया करती हैं, उनको नहलाती है, उनका श्रृंगार करती हैं तो यह परम सौभाग्य केवल भारत की माताओं को ही प्राप्त है।

यह भारत वह पुण्य भूमि है जहां पर मां सती अनुसूया जैसी माता का दुलार प्रेम पाने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश जैसे त्रिदेव भी बाल रूप में आकर उनकी ममता दुलार को प्राप्त करने आते हैं। कौशल्या माता के घर में भी दो भगवान है एक पालने में एक मंदिर में। मंदिर वाले भगवान के लिए उन्होंने सुंदर भोग बनाया है और ठाकुर जी को पवाने के लिए मंदिर पर उस भोग को रख दिया। और वह घर के काम करने लगी, थोड़ी देर बाद स्मरण आया कि राघव जी तो पालने में विश्राम कर रहे हैं उनको देखा जाए, जाग तो नहीं गए? कहीं रो तो नहीं रहे?

जब वह पालने तरफ जाने लगी तभी मंदिर के अंदर खटपट उनको सुनाई दिया। तो वह झट मंदिर का परदा खोलकर अंदर झांकती हैं तो क्या देखती हैं की राम जी जो मंदिर में प्रसाद रखा है उसको पा रहे हैं। यह दृश्य देखकर माता कौशल्या परम आश्चर्य से भर गई और ध्यान से देखती है कि यह मेरा राम ही है कि कोई और है? विचार करने लगी यह तो अभी चलना भी नहीं जानता यह यहां पर कैसे आ गया? कैसे आ सकता है?


मैया ने अपनी आंखों को मीचा है और दोबारा ध्यान से देखा है तब भी राघव जी भोग को खाते हुए दिखे। उनको विश्वास नहीं हुआ माता कौशल्या झट से भाग करके जाती हैं और जब पालने पर देखी हैं तो उनके आश्चर्य का ठिकाना अब और नहीं रहा। क्योंकि यहां पर उन्होंने जो देखा है देखते रह गई। क्या देखा माता कौशल्या ने? की मेरा लल्ला राम तो पालने में ही सो रहा है। सोचने लगी यह यहां लेटा हुआ है तो वहां पर कौन था? जो भोग को पा रहा है। सज्जनो माता कौशल्या ने जिसके लिए भोग लगाया था वह पा रहा है फिर भी माता कौशल्या आश्चर्य है। माता कौशल्या एक बार मंदिर में देखती है तो वही राम भोग पाते हुए दिखता है, लौट कर के पालने में आती हैं तो वही राम लेटा हुआ दिखता है।

इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा। मतिभ्रम मोर कि आन बिसेषा॥
देखि राम जननी अकुलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी।।

माता कौशल्या ने यहां पालने में भी और वहां मंदिर में भी एक साथ उन्होंने राम को दो रूप में देखा दो जगह देखा तो वह परम आश्चर्य से भर गई। तभी रामलला सरकार माता कौशल्या के गोद में आ गए अभी मैया यह आश्चर्य से उबरी भी नहीं थी कि तब तक हमारे राघव सरकार ने एक और अद्भुत लीला कर दी जो मैया को व्याकुल करने वाली लीला थी। रामलला सरकार मुस्कुराते हैं हंसते हैं और जैसे ही मुख खोलते हैं। मानो हमारे राम जी माता कौशल्या से कहना चाह रहे हैं कि मैया मैंने मंदिर में रखा हुआ भोग अकेले ही नहीं पाया है यह देख मेरे मुख में यह सारे जीव जगत इससे तृप्त हो रहे हैं। उन्होंने माता को अपना अखंड अद्भुत रूप दिखलाया।

अगनित रबि ससि सिव चतुरानन। बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन॥
काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ। सोउ देखा जो सुना न काऊ॥

अगणित सूर्य, चन्द्रमा, शिव, ब्रह्मा, बहुत से पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पृथ्वी, वन, काल, कर्म, गुण, ज्ञान और स्वभाव देखे और वे पदार्थ भी देखे जो कभी सुने भी न थे॥ माता का शरीर पुलकित हो गया मुख से वचन नहीं निकला, आंखें मूद कर उन्होंने राम जी के चरणों में सर नवाया तब राम जी पुनः बाल स्वरूप में आ गए कि मुझे लीला करनी है।


माता को मुख में ब्रह्मांड का दर्शन करना यह प्रभु अपने दोनों अवतारों में कृष्ण अवतार और राम अवतार में समान रूप से किया। उन्होंने माता यशोदा को भी मुख के अंदर ब्रह्मांड का दर्शन कराया जब उन्होंने मिट्टी को खाया और माता ने पूछा कि अरे तूने मिट्टी खाई तो कन्हैया ने कह दिया नहीं मैया मैं मिट्टी नहीं खाई।

नाहं भक्षितवानम्ब सर्वे मिथ्याभि संशिनः।

तब मैया यशोदा ने कहा कि अपना मुंह खोल के दिखा तो कन्हैया ने अपना मुंह खोला तो सारे ब्रह्मांड का दर्शन हो गया। यहां हमारे रामलला सरकार भी अपने विराट स्वरूप का दर्शन माता कौशल्या को कराए हैं। राघव लाल सरकार बड़ी सुंदर बाल लीलाओं को करते हुए सबको आनंदित करते हैं-

चारों ही बालक सुंदर थे, चारों ही रूप मनोहर थे।
फिर भी वह कौशल्या नंदन चारों में सबसे बढ़कर थे।।
गोदी में कभी पालने में माताएं लाड़ लडाती हैं।
पुचकार, दुलार, सिंगार करें, काजल की कोर लगाती हैं।।
जब चलते हैं घुटनों के बल माता बलिहारी जाती हैं।
लाला संध्या को सोते हैं तो नजर उतारी जाती है।।
उंगली के बल जब खड़े हुए तो करते हैं किलोल चारों।
पग से चलते हैं ठुमक ठुमक मुख से तोतले बोल चारों।
चंदा को कभी मांगते हैं परछाई कभी पकड़ते हैं।
जब भी जैसी हठ पड़ जाए फिर नहीं मनाये मनते हैं।।

एक और अद्भुत लीला राघव जी की जिसको केवल कागभूसुंडी जी देख पाए और दुनिया में कोई भी नहीं देख पाया। कागभुसुंडी जी दशरथ जी के मुंडेर पर बैठे हुए हैं और रामलला सरकार के लिए मैया कौशल्या माखन रोटी लेकर के आई हैं और राघव जी को मैया माखन रोटी देकर चली गयी। राम जी विचार करने लगे कि अकेले कैसे पाएं? वह यह देख रहे हैं कि हमारा भक्त भूखा बैठा है और हम अकेले पा लें यह ठीक नहीं। तो ठाकुर जी ने बड़ी सुंदर लीला की आइए हम उनकी लीला को इस भजन भाव के माध्यम से सुनते हैं-

( भजन- फिसल गये राम उठावत मायी )

अरे कागभुसुंडी चरित बचपन का, देखत अति सुखलायी।।
फिसल गये राम उठावत मायी-2
माखन रोटी हाथ में लेकर कौशल्या जू आई।
भूखा देखि भगत को रघुवर- माखन दीन्ह गिरायी।।
फिसल गये राम उठावत मायी-2
माता भेद तनिक ना समझी, क्यों फिसले रघुरायी।।
गोद में लेकर चूम के पूंछत, चोंट कहाँ पर आयी।।
फिसल गये राम उठावत मायी-2
कागभुसुंडी मनहि मनहि सोचत, राघव की चतुरायी।।
गिरे हुये को जो है उठाता, उसे माता उठाने आयी।।
फिसल गये राम उठावत मायी-2

प्रभु राघव सरकार ने यह जो बाल लीला का कागभुसुंडी जी के साथ किया यह अद्भुत है। अब राघव जी धीरे-धीरे बड़े हो रहे हैं। राघव जी अपने भाइयों व बाल सखाओं के साथ अब खेलने लग गए हैं। एक दिन की बात है कि महाराज दशरथ आते हैं माता कौशल्या से भोजन प्रसाद के लिए कहते हैं। महारानी जू भोजन परोसिये! माता कौशल्या ने कहा हां महाराज पधारिये, आसन लीजिए। महाराज दशरथ बैठ गए। राघव जी को नहीं देखे तो कहने लगे अरे महारानी जी राघव कहां हैं दीख नहीं रहे कहीं पर।

माता कौशल्या ने कहा यही कही होंगे खेल रहे होंगे। मैं बुलाऊं क्या महाराज? महाराज दशरथ ने कहा नहीं महारानी मैं स्वयं उनको बुला रहा हूं और महाराज दशरथ राघव जी को बुलाने लगे। अरे राघव राम आओ जल्दी से। हमारे राघव ललन ने सुना की महाराज बुला रहे हैं फिर भी वह नहीं आए। बाबा तुलसीदास जी ने भी लिखा है-

भोजन करत बोल जब राजा। नहिं आवत तजि बाल समाजा।।

महाराज दशरथ जी के बुलाने पर भी राघव जी अपने बाल समाज को खेलकूद को छोड़कर के नहीं आ रहे। आप बताइए जब भगवान स्वयं ही बाल रूप में आए हैं और बाल सखाओं के साथ खेलने में इतने तन्मय है कि पिताजी के बुलाने पर भी नहीं आ रहे तो फिर और सब बालकों की बात ही क्या करें। माता कौशल्या ने कहा कि आप भोजन पायिये मैं देखती हूं। मैया बुलाने लगी राघव३! महारानी अयोध्या की जो सेवक सेविकाओं के साथ चलती हैं, पालकी में ही महल के बाहर निकलती हैं आज वह राघव जी को बुलाने के लिए नंगे पांव ही रामलला को बुलाने के लिए चल पड़ी। अयोध्या के गलियों में माता कौशल्या राघव को बुलाने के लिए चल पड़ी चिल्लाते जा रही हैं अरे वो राघव कहां खेल रहे हो? इधर जैसे ही राघव ललन ने देखा कि मैया मुझे बुलाने के लिए आ रही है।

कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई॥
निगम नेति सिव अंत न पावा। ताहि धरै जननी हठि धावा॥

कौसल्या जब बुलाने जाती हैं, तब प्रभु ठुमुक-ठुमुक भाग चलते हैं। जिनका वेद ‘नेति’ (इतना ही नहीं) कहकर निरूपण करते हैं और शिवजी ने जिनका अन्त नहीं पाया, माता उन्हें हठपूर्वक पकड़ने के लिए दौड़ती हैं। राघव जी शरीर पर धूल लपेटे हुए दौड़ करके राजमहल में जब आते हैं महाराज दशरथ उनको देखकर हंसने लग लगे और उनको गोद में बिठाकर दुलार करने लगे। वह राघव जी को भोजन पवाने लगे लेकिन छोटे हैं चित्त चंचल है अवसर पाकर के मुंह में दधि भात लगाये ही किलकारी मारते हुए इधर-उधर वह भागने लगते हैं। वह चरित्र सबको बड़ा आनंदित करने वाला होता है। ऐसा कौन होगा जो राघव जी के इन बाल चरित्र को सुनने के बाद, बाल लीलाओं को सुनने के बाद आनंदित ना हो। बाबा जी कहते हैं कि जो मनुष्य उनके चरित्र को सुनकर हर्षित नहीं होता वह नितांत भाग्यहीन है।

सज्जनो जो भक्त होते हैं वह भगवान की इन्हीं लीलाओं पर रम रहते हैं।
इसलिए जो भक्त होते हैं वह भगवान से मोक्ष भी नहीं चाहते। श्रीमद्भागवत में भी हमने श्रवण किया की भगवतभक्तों ने भगवान का साक्षात्कार हो जाने पर भी मोक्ष की याचना नहीं की। महाराज प्रभु भगवान को सामने पाकर भी यही कहते हैं कि- हे प्रभु मेरी यही प्रार्थना है कि मुझे दस हजार कान दे दीजिए जिससे मैं आपकी लीला गुणों को ही सुनता रहूं।
विधत्स्व कर्णायुतमेष मे वरः।। 4-20-24
वीर शिरोमणि दैत्यराज वृत्तासुर भी भगवान से यही कहता है-

न नाकपृष्ठं न च पारमेष्ठ्यं, न सार्वभौमं न रसाधिपत्यम्।
न योगसिद्धीरपुनर्भवं वा, समञ्जस त्वा विरहय्य काङ्छे।।
भा-६-११-२५

वृत्तासुर ने विभिन्न प्रकार के सिद्धियों को, ऐश्वर्य को, राज्य को ठुकराते हुए बस भगवान से यही निवेदन किया कि आप का स्मरण मुझे हमेशा बना रहे, मैं आपको हमेशा याद करूं नाथ मुझे यही चाहिए। सज्जनो भक्ति का रंग ऐसा ही होता है। चाहे भक्त हो अथवा भगवान दोनों की दशा एक हो जाती है। 

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