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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-25 full ram katha in hindi

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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-25 full ram katha in hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-25   full ram katha in hindi

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-25 full ram katha in hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-25 full ram katha in hindi

श्री राघव सरकार जिस दिशा से जानकी जी आ रही हैं उसी दिसा पर एकटक देख रहे हैं। सीता जी के मुखरूपी चंद्रमा को निहारने के लिए उनके नेत्र चकोर बन गए हैं। पलक झपकना भी बंद हो गए। निमि यह जनक जी के पूर्वज हैं और इन्हीं महाराज निमि का वास सबकी पलकों में माना जाता है। इस कारण पलक हमारे खुलते हैं और बंद हो जाते हैं।

आज भगवान एकटक देख रहे हैं मानो आज लड़की दामाद के मिलन प्रसंग को देखना उचित नहीं इस भाव से सकुचाकर पलकें छोड़ दी। पलकों में रहना छोड़ दिया जिससे पलकों का गिरना रुक गया। माता सीता जी की शोभा ऐसी है उनका सौंदर्य ऐसा है कि वह सुंदरता को भी सुंदर करने वाली हैं, वाणी के द्वारा जानकी जी के सौंदर्य का वर्णन करना संभव नहीं।

प्रभु श्री रामचंद्र जी ने लखन लाल जी को बताया है की यह वही जानकी हैं जिनके लिए धनुष यज्ञ हो रहा है। यह गौरी पूजन के लिए आई हैं और फुलवारी को प्रकाशित करते हुए घूम रहे हैं। हे भैया लक्ष्मण स्वभाव से ही पवित्र मेरा मन आज इनके अलौकिक सौंदर्य को देखकर के छुब्ध हो गया है। इसका कारण तो विधाता जानें? किंतु मेरे मंगलदायक दाहिने अंग फड़क रहे हैं। यहां पर सज्जनो एक बात ध्यान देने योग्य है। भगवान ने सीता जी के किस सौंदर्य को देखा है किस सुंदरता को देखा है? लौकिक सुंदरता की बात नहीं कर रहे यहां पर बाबा जी लिख रहे हैं भगवान राघवेंद्र सरकार माता जानकी के अलौकिक सौंदर्य को देखकर के प्रसन्न हो गए कैसा अलौकिक सौंदर्य?

आदि शक्ति जेहिं जग उपजाया।

यह वही आदिशक्ति हैं जिससे सारा जगत उत्पन्न होता है। जो सब जगह है व्याप्त रहने वाली हैं। आद्यां जगत व्यापनीम्।

माता सीता ने जैसे ही प्रभु राघव के दिव्य स्वरुप को निहारा है।

देखि रूप लोचन ललचाने। हरषे जनु निज निधि पहिचाने।

उनके रूप को देखकर नेत्र ललचा उठे।वह ऐसे प्रसन्न हुए मानो उन्होंने अपना खजाना पहचान लिया। रघुनाथ जी की छवि को देखकर सीता जी के पलकों ने भी गिरना छोड़ दिया। अधिक स्नेह के कारण शरीर विह्वल हो गया।

लोचन मग रामहि उर आनी। दीन्हे पलक कपाट सयानी।।

सीता जी ने श्री रामचंद्र जी को आंखों के मार्ग से ले जाकर हृदय में प्रवेश कराया है। उसके बाद मन में विचार आया कि जो आंखों के मार्ग से आ सकता है तो वह जा भी सकता है। इसीलिए उन्होंने क्या किया-

दीन्हे पलक कपाट सयानी।।

माता जानकी ने अपने दोनों नेत्रों को बंद कर ली हैं।

सिया राम के मधुर मिलन से, फुलवारी मुस्काये।
कोयलिया कजरी गाये।कोयलिया कजरी गाये।

तोड़ रहे थे फूल राम जी ,गिरिजा पूजन चली जानकी।
तोड़ रहे थे फूल राम जी ,गिरिजा पूजन चली जानकी।
पायल के झनकार से उनके। 2
रोम रोम हर्षाये। कोयलिया कजरी गाये।
कोयलिया कजरी गाये रे।

सिय मुख चंदा देख सामने, भुला दिया सब शान राम ने।
सिया मुख चंदा देख सामने भुला दिया सब शान राम ने।
नैन बैन सबने गति छोडी।2
मन बिन मोल बिकाये कोयलिया कजरी गाये।
कोयलिया कजरी गाये रे।

सिया राम के मधुर मिलन से,सिया राम के मधुर मिलन से,
फूलवारी मुस्काये,कोयलिया कजरी गाये।
कोयलिया कजरी गाये रे।

छबि देखि ऐसी मिथिला में, राम सिया में सिया राम में।
छबि देखि ऐसी मिथिला में, राम सिया में सिया राम में।
अति आनंद समाये,अति आनंद समाये ,
सखियों का मन ललचाये।कोयलिया कजरी गाये।
कोयलिया कजरी गाये रे।

सिया राम के मधुर मिलन से,सिया राम के मधुर मिलन से,
फूल बगिया मुस्काये,कोयलिया कजरी गाये रे।
कोयलिया कजरी गाये रे।

सज्जनों एक और बात यहां माता जानकी जी ने जब प्रभु को देखा है तो उन्होंने पाया कि उनके मस्तक पर पसीने की बूंद है। तो एक सखी रहती है कि अरे यह इतने सुकुमार हैं कि इनको फूल तोड़ने पर पसीने की बूंद झलक आई है तो इनसे वह कठोर धनुष किस प्रकार टूटेगा? इस प्रकार बातें करते कुछ समय बीतने पर सखियों ने कहा कि अब हमें चलना चाहिए बड़ी देर हो गई है। तब माता जानकी प्रभु राघव का स्वरूप अपने हृदय पर धारण करके उनका ध्यान करते हुए अपने को पिता के अधीन जान करके लौटने लगीं।

देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।
निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि।। 234।।

राघव जी की छवि को निहारने के लिए माता जानकी मृग पक्षी और वृक्षों को देखने के बहाने से बार-बार घूम जाती हैं। चलते समय सीता जी मन में विचार कर रही हैं कि शिव जी का वह कठोर धनुष और यह सुकुमार रघुनाथ जी उसे कैसे तोड़ेंगे? पिता के प्रण की स्मृति से उनके हृदय में छोभ था ही इसलिए मन में वह विलाप करने लगीं। फिर भगवान के बल का स्मरण आते ही वह हर्षित हो गई और प्रभु के सांवली सूरत को मन में धारण करके वहां से चलीं।

रघुनाथ जी की लीला बड़ी विचित्र है। समझ से परे है। देखिए यहां पर रघुनाथ जी पुष्प वाटिका में फूल तोड़ने आए हैं। पुष्प चुनने में उनके माथे से पसीने की बुंदे निकल आई। वह पुष्प जिसको एक छोटा सा बच्चा भी बड़ी सरलता से तोड़ लेता है वही पुष्प तोड़ने में भगवान को पसीना आ गया और वह शिव धनुष जिसको दस हजार राजा भी मिलकर नहीं उठा पाए उस महान शिव धनुष को पल भर में इन्होंने तोड़ दिया।

तो इस एक प्रसंग पर एक संत का बड़ा सुंदर भाव है। देखिए जो यह धनुष है यह अहंकार का प्रतीक है और भगवान अहंकार को पल भर में तोड़ देते हैं। उनको उस अहंकार को तोड़ने में तनिक भी समय नहीं लगता और यह फूल कोई साधारण फूल नहीं हैं। यह भक्त के भक्ति रूपी बगिया के फूल हैं। भक्त की भावनाओं के फूल हैं। भगवान अहंकार को तो क्षण भर में तोड़ देते हैं लेकिन भगवान को भक्तों के भावनाओं को तोड़ने में पसीना आ जाता है वह उसे नहीं तोड़ पाते।

सीता जी माता गिरजा के मंदिर में गई हैं उनके चरणों की वंदना करके हाथ जोड़कर के स्तुति करतीं हैं। सज्जनों यहां पर जो माता गौरी की स्तुति दी गई है उसका बड़ा प्रभाव है जीवन में। अगर कोई प्रेम पूर्वक इस स्तुति चौपाई का नित्य प्रति पाठ करता है उसके जीवन के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। इसका पाठ करने से मां जगदंबा की विशेष कृपा हो जाती है तो आइए हम सब भी माता जानकी के साथ मइया गौरी की स्तुति करें।

जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।।
जय अम्बे मां, जय गौरी माँ, अटल सुहागन जय गौरी मां।
ओ मइया श्रगांर तेरा लाल है।
श्रगांर तेरा लाल है। श्रगांर तेरा लाल है।
जय गौरी माँ श्रगांर तेरा लाल है। जय गज बदन षड़ानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।।
मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें।।
जय अम्बे मां, जय गौरी माँ, अटल सुहागन जय गौरी मां।

सीता जी माता गिरजा से निवेदन करती हैं की हे मां जगदंबा आपकी सदा ही जय हो। आपसे तो कुछ भी नहीं छिपा है आप जगत जननी हैं सब कुछ जानने वाली हैं। आप मेरे मनोरथ को भली भांति जानती हैं इसीलिए मैं उसको प्रकट नहीं करती हूं। आप मुझ पर कृपा कीजिए और माता गिरिजा के चरणों को सीता जी पकड़ लेती हैं।

बंधु माताओं ध्यान दीजिए बहुत लोग कहते हैं की पत्थर को क्यों पूजते हैं? पत्थर पूजने से क्या होता है? वैसे हम सब सनातनी पत्थर नहीं पूजते क्योंकि हम हम सब मूर्ति विग्रह में विधिवत प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा उसमें प्राण स्थापित करवाते हैं तब पूजन करते हैं। लेकिन सज्जनों यहां पर ऐसे कहने वालों के लिए प्रमाण है कि अगर श्रद्धा सुमन पूर्वक पत्थर की मूर्ति को भी पूजा जाए तो वह पत्थर मूर्ति भी भक्ति के चलते पिघल जाती है और आशीर्वाद देने लगती है। गिरिजा सीता जी के विनय और प्रेम के वश में हो गईं उनके गले की माला की खिसक पड़ी और मूर्ति मुस्कुराई गौरी जी हर्ष से भरकर के बोलीं।

सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।

हे सीता जी हमारा सत्य आशीर्वाद है कि तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। नारद जी का वचन सदा पवित्र और सत्य है। जो वर तुम्हारे मन में बसा है तुमको वही वर प्राप्त होगा।

छंद
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।

जब सीता जी ने माता गिरजा के वचन सुनी हैं तो वह अत्यंत प्रसन्न हो गई और बार-बार उन्हें प्रणाम करके राजमहल को लौट चलीं। इधर हमारे राघव जी भैया लक्ष्मण जी के साथ गुरु जी के पास आ गए हैं और श्री रामचंद्र जी ने विश्वामित्र जी से सब कुछ कह दिया क्योंकि उनका सरल स्वभाव है छल तो उन्हें छू भी नहीं सकता है। यहां जब गुरु जी को प्रणाम किया है तो गुरुदेव विश्वामित्र जी ने भी आशीर्वाद प्रदान किया।

सफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे।

दिन के ढलते ही पूर्व दिशा में सुंदर चंद्रमा उदय हुआ। श्री रामचंद्र जी ने उसे सीता जी के मुख सामान देखकर बड़ा सुख पाया और फिर मन मे विचार करने लगे की यह चंद्रमा सीता जी के मुख सामान नहीं है। क्योंकि चंद्रमा में भी बहुत दोष हैं। पहले तो खारे समुद्र में इसका जन्म हुआ और विष इसका भाई है। दिन में तो यह निस्तेज हो जाता है। रात्रि में उदय भी होता है तो काले दागों से युक्त रहता है तो यह बेचारा चंद्रमा सीता जी के मुख की बराबरी कैसे पा सकता है? इस प्रकार चंद्रमा के बहाने सीता जी के मुखछवि का वर्णन करके राघव जी सोचने लगे अरे बड़ी देर हो गई तो रघुनाथ जी गुरु जी के पास जाते हैं। मुनि के चरणकमलों की सेवा करके उन्हें प्रणाम करके आज्ञा पाकर उन्होंने विश्राम किया।

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