F राम कथा हिंदी में लिखी हुई-27 ram katha in hindi pdf - bhagwat kathanak
राम कथा हिंदी में लिखी हुई-27 ram katha in hindi pdf

bhagwat katha sikhe

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-27 ram katha in hindi pdf

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-27 ram katha in hindi pdf

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-27 ram katha in hindi pdf

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-27 ram katha in hindi pdf

यदि मैं प्रण छोड़ता हूं तो पुण्य नष्ट होता है। चाहे मेरी पुत्री को कुमारी ही क्यों न रहना पड़े मैं अपना प्रण नहीं त्याग सकता। अगर मैं ऐसा जनता की पृथ्वी वीरों से शून्य है तो यह प्रण करके उपहास का पात्र ना बनता। जैसे ही महाराज जनक ने यह वचन कहे लक्ष्मण जी तमतमा उठे, उनकी भौवें टेढ़ी हो गई, होंठ फड़फड़ाने लगे और उनके नेत्र क्रोध से लाल हो गए। वह सभा के मध्य खड़े हो गए और कहने लगे-

रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न कोई।।

हे महाराज जनक रघुवंशियों में कोई भी जहां होता है उस सभा में ऐसे वचन किसी के कहने की हिम्मत नहीं होती और आप ऐसे अनुचित वचन रघुकुल शिरोमणि श्री राम जी के उपस्थित होने पर भी कहे हैं। लक्ष्मण भैया राघव जी के चरणों में सिर झुकाते हुए कहते हैं कि हे राघव भैया। 

जौ तुम्हारि अनुसासन पावौं। कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं।।
काचे घट जिमि डारौं फोरी। सकउँ मेरु मूलक जिमि तोरी।।
तव प्रताप महिमा भगवाना। को बापुरो पिनाक पुराना।।

यदि मैं आपकी आज्ञा पाऊँ तो मैं ब्रह्मांड को गेंद की तरह उठा लूं और उसे कच्चे घड़े के समान फोड़ डालूं। मैं सुमेरु पर्वत को भी मूली की तरह तोड़ सकता हूं। हे भगवन मैं यह अभियान से वचन नहीं कह रहा हूं यह मैं आपके प्रताप और महिमा से कह रहा हूं। यह पुराना जीर्ण धनुष कौन सी चीज है। 

सुनें राम रघुवंशमणि रघुनन्दन रघुवीर !

इस महान् अपमान ने मुझको किया अधीर ॥

मेरा स्वभाव ही ऐसा है अपमान न मुझे गवारा है।

है कृपा गुरु के चरणों की, बल और प्रताप तुम्हारा है ॥

अभिमान त्यागकर कहता हूँ, आदेश तुम्हारा पाऊँ मैं

तो धन्वा की क्या है बिसात, सारा ब्रह्माण्ड उठाऊँ मैं ॥

फिर कच्चे घड़े समान उसे दमभर में फोड़ फाड़ डालूँ ।

या गाजर मूली की नाईं चुटकी में तोड़ ताड़ डालूँ ॥

थल को जल, जल को थल कर दूँ लाऊँ उतार कर तारों को ।

सुरमे की तरह पीस डालूँ पृथ्वी को और पहाड़ों को ॥

फिर धनुष पुराना घिसापिटा तिनके-सा, किस गिनती में है।

सैकड़ों कोस तक ले दौड़ इतना तो बल उँगली में है ॥

भगवन यदि आप आज्ञा दें तो मैं खेल ही खेल में इस धनुष को कमल की डंडी की तरह चढ़ाकर उसे सौ योजन तक दौड़ा लिए चला जाऊं। इसे बरसाती छत्ते की तरह तोड़ दूं और यदि ऐसा मैं ना करूं तो प्रभु के चरणों की शपथ है फिर मैं कभी धनुष और तरकस हांथ में नहीं लूंगा। 

ज्यों ही लक्ष्मण जी के ऐसे क्रोध वचन निकले। पृथ्वी डोलने लग गई, दिग्गज (दिशाओं के हाथी) कांप गए, सभी राजा लोग डर गए। सीता जी के हृदय में प्रसन्नता हुई और महाराज जनक सकुचा गए। गुरु विश्वामित्र जी और रघुनाथ जी तथा सभी मुनिजन मन में प्रसन्न हुए। श्री रामचंद्र जी ने इशारे से लक्ष्मण जी को कहा कि हे अनुज आप क्रोध न करें और प्रेम सहित अपने पास उन्होंने उनको बिठा लिया। 

बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी।।
उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा।।

तब विश्वामित्र जी ने देखा की शुभ समय आ गया है तब वे स्नेहमय वाणी से श्री राम जी से बोले राम उठो। इस समय रघुवीर सुजान नहीं कहा उसमें इतना रस नहीं जितना केवल राम संबोधन में है। क्योंकि- भवभय भंजन नाम प्रतापू तुम्हारे राम नाम के प्रताप से भवभय भंग होता है अतः भवचाप को तुम भंग करो। शिव जी के धनुष तोड़ने की आज्ञा देकर सारी  जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हूं। 

सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा। हरषु बिषादु न कछु उर आवा।।
ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ। ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ।।

गुरुदेव विश्वामित्र जी के वचनों को सुनकर श्री राम जी उनके चरणों में सिर नवाए हैं। उनके मन में ना हर्ष हुआ ना विषाद और वह सहज स्वभाव से ही उठ खड़े हुए। राघव जी के खड़े होने पर सभी संत मुनि प्रसन्न हो गए। मानो मंच रूपी उदयाचल पर श्री रघुनाथ रूपी बाल सूर्य के उदय होते ही संत रूपी कमल खिल उठे। नेत्र रूपी भंवरे हर्षित हो उठे और राजाओं की आशा रूपी रात्रि नष्ट हो गई। 

 

राघव जी अपने श्रेष्ठ चाल से सभी स्त्री पुरुषों को मोहित कर दिया। उनको देखकर सभी नगर भर के नर नारी अपने-अपने ईष्ट देवताओं का स्मरण करके प्रार्थना करने लगे कि हमारे कुछ भी पुण्य हों तो हे प्रभु यह है राघव जी इस शिव धनुष को कमल की डंडी की भांति तोड़ डालें। इधर सीता जी की मैया दुख से भरे हृदय से अपने सखियों से कहने लगीं। 

हे सखी, नृपति को कोई भी इस समय नहीं समझाता है।

यह बालक इस हठ-योग्य कहाँ जो धनुष उठाने जाता है ॥

रावण - वाणासुर से योद्धा - हारे जब धनुष धनुष उठाने में।

फिर नष्ट समय क्यों करते हैं-बच्चों को खेल खिलाने में ?

अब तक बदनामी हुई बहुत, अब फिर क्यों हँसी कराते हैं।

योद्धा तो मत्थे रगड़ चुके, अब बच्चे धनुष उठाते हैं ॥

इससे तो यह ही अच्छा है-उत्सव समाप्त अब कर डालें ।

प्रण अपना छोड़, योग्य वर से वैदेही की भाँवर डालें ॥

तब एक चतुर सखी ने कहा वह राम जी की महिमा को जानने वाली थी वह बोली हे रानी होनी की गति को कौन जानता है? कहां घड़े से उत्पन्न होने वाले मुनि अगस्त और कहां अपार समुद्र? लेकिन उन्होंने विशाल समुद्र को आचामन भर में पान कर लिया। सूर्य दिखने में छोटा दिखाई पड़ता है लेकिन उसके उदय होते ही तीनो लोकों का अंधकार समाप्त हो जाता है। मंत्र देखने में छोटे होते हैं लेकिन उससे ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि सभी देवता वश में हो जाते हैं। विशाल हाथी को छोटा सा अंकुश वश में कर लेता है इसलिए इनको साधारण मत समझिए। और हे रानी मेरे हृदय में तो यह पूर्ण विश्वास है कि जिस कार्य को बड़े-बड़े वीर और योद्धा नहीं कर पाए वह कार्य रामचंद्र जी अवश्य करेंगे। 

राघव जी को धनुष की ओर बढ़ते देखकर माता जानकी भयभीत हृदय से देवताओं से विनय करती हैं कि आप मुझ पर प्रसन्न होइये  इस धनुष के भारीपन को हरण कर लीजिए। इस प्रकार रघुनाथ जी की ओर देख-देख कर सीता जी धीरज धरकर देवताओं को मना रहे हैं उनके नेत्रों में प्रेम के आंसू भरे हैं और शरीर रोमांचित है। 

यहां लक्ष्मण भैया ने देखा कि रघुकुल मणि श्री रामचंद्र जी ने शिव जी के धनुष की ओर देखा है तो वह शरीर से पुलकित हो ब्रह्मांड को चरणों से दबाकर वे कहने लगे। हे दिग्गजों, हे कच्छप, हे शेष,हे वाराह धीरज धरकर पृथ्वी को थामे रहो जिससे यह हिलने ना पावे क्यों

रामु चहहिं संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु मोरा।।

मेरे राघव भैया शिव जी के धनुष को तोड़ना चाहते हैं मेरी आज्ञा सुनकर सब सावधान हो जाओ इस प्रकार लक्ष्मण जी ने सबको सचेत किया। यहां प्रभु राघव ने जब जानकी जी को देखा तो उन्हें बहुत व्याकुल जाना। सीता जी का एक एक क्षण कल्प के समान बीत रहा था। तब श्री रामचंद्र जी ने विचार किया। 

का बरषा सब कृषी सुखानें। समय चुकें पुनि का पछितानें।।

सारी खेती के सूख जाने पर वर्षा हो तो फिर वह किस काम की। समय बीत जाने पर फिर पछताने से क्या। राघव जी ने गुरुदेव भगवान के तरफ देखकर के मन ही मन विश्वामित्र जी को प्रणाम किया है। 

गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा।

और बड़ी फुर्ती से राघव जी ने उस महान शिव धनुष को जिसे किसी ने हिला भी नहीं पाया। धनुष को उठा लिया जब उसे हाथ में लिया तब वह धनुष बिजली की तरह चमका और फिर आकाश में मंडलाकार हो गया। 

लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें।

राघव जी ने कब धनुष को हाथ में लिया, कब उठाया और कब चढ़ाया, कब खींचा इसका किसी को पता ही नहीं लगा। तो लोगों को कब पता चला

तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।।

सब देखते हैं कि रामजी खड़े हैं। इसी समय उन्होंने बीच से धनुष को तोड़ दिया। बीच से तोड़ने का भाव- धनुष अभियान रूपी है। वह अभिमान मनुष्य मात्र में बीच में ही- तन, मन, धन आदि का मध्य आयु में ही अधिक होते हैं। अर्थात उस अवस्था में मध्य में जिसने अभियान जीत लिया है उसका जीवन सार्थक हो जाता है। तथा कोई यह न कह सके की धनुष के पतले भाग को तोड़ा इसीलिए मध्य में जो मोटा भाग होता है वहां से तोड़ चाप खंड पृथ्वी पर डाल दिए। 

छंद
भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले।।
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारही।।

धनुष के टूटने का घोर कठोर शब्द से पूरा संसार भर गया। सारे लोग उस शब्द से गूंज गए, सूर्य के घोड़े मार्ग छोड़कर चलने लगे। दिग्गज चिन्घाडने लगे, धरती डोलने लगी, शेष, वाराह और कक्षप कलमला उठे। देवता राक्षस और मुनि यह घनघोर ध्वनि सुनने के बाद सबको निश्चय हो गया किसी राम जी ने धनुष को तोड़ डाला और उसी समय सब प्रभु राघवेंद्र सरकार की जय जयकार करने लगे। 

बाल्मीकि रामायण में लिखा है कि मुनि श्रेष्ठ श्री विश्वामित्र जी, श्री जनक जी और श्री राम लक्ष्मण को छोड़कर शेष जितने लोग वहां खड़े थे वह सब धनुष टूटने के भयंकर शब्द से मूर्छित होकर गिर पड़े। 

निपेतुश्च नराः सर्वेतोन शब्देन मोहिता।

वर्जयित्वा मुनिवरं राजनं तौ च राघवौ।।

धनुष टूटते ही सीता जी के शरीर में आनंद के कारण रोमांच हो आया। ब्रह्मादिक देवता प्रार्थना करते हैं। फूल बरसाने लगे, अनेक प्रकार के बाजे बजने लगे। सारे ब्रह्मांड में जय जयकार की धुनि छा गई। 

सतानंद तब आयसु दीन्हा। सीताँ गमनु राम पहिं कीन्हा।।

सतानंद जी के आज्ञा से माता सीता हाथ में वरमाला लिए हुए अपनी सखियों के साथ श्री राघव जी की तरफ जाने लगीं। सखियां सुंदर मंगल गीत गा रही हैं। सखियों के बीच में सीता जी ऐसे शोभित हो रही हैं जैसे बहुत से छवियों के बीच में एक महाछवि हो दिव्य छवि हो। माता जानकी चलते चलते राघव जी के समीप आ गईं सखियों ने कहा- हे सुहावनी जयमाला पहनाओ रघुवर के गले में। लेकिन सज्जनों हमारे राघव जी लंबाई में बड़े हैं, मैया जानकी थोड़ी छोटी। अब माला पहनाए तो पहनायें कैसे? राघव जी झुक नहीं रहे हैं और माता जानकी के हाथ वहां तक जा नहीं रहे तो उसी समय सखियों ने राघव जी से बड़ा सुंदर भाव निवेदित किया। 

झुक जइयो तनक रघुवीर सिया मेरी छोटी है

सिया मेरी छोटी लली मेरी छोटी,
तुम हो बड़े बलवीर सिया मेरी छोटी है
झुक जइयो तनक रघुवीर सिया मेरी छोटी है

जय माला लिए कब से है ठाड़ी,
दूखन लागों शरीर सिया मेरी छोटी है,
झुक जइयो तनक रघुवीर सिया मेरी छोटी है

तुम तो हो राम जी अयोध्या के राजा,
और हम है जनक के गरीब सिया मेरी छोटी है,
झुक जइयो तनक रघुवीर सिया मेरी छोटी है

लक्ष्मण ने भाभी की दुविधा पहचानी,
राम जी के चरणो में वो झुक गए है ज्ञानी,
सब कहे जय जय रघवीर,
प्रभु जी क्या जोड़ी है सिया मेरी छोटी है

झुक जइयो तनक रघुवीर,
सिया मेरी छोटी है सिया मेरी छोटी,
लली मेरी छोटी तुम हो बड़े बलवीर सिया मेरी छोटी है,
झुक जइयो तनक रघुवीर सिया मेरी छोटी है। 

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-27 ram katha in hindi pdf

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3