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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-33 ram katha pdf in hindi

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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-33 ram katha pdf in hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-33 ram katha pdf in hindi

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-33 ram katha pdf in hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-33 ram katha pdf in hindi

जनकपुर वासियो़ ने कहा कि हम सब बड़े पुण्यवान है जो जगत में जन्म लेकर के जनकपुर के निवासी हुए और जिन्होंने आज श्री रामचंद्र और जानकी जी के सुंदर छवि को देखा है वह तो विशेष रूप से भाग्यशाली हैं। उनके जैसा पुण्यात्मा कौन होगा? एक सखी ने दूसरे से कहा कि हे सखी जैसे श्री राम और लक्ष्मण जी की जोड़ी है वैसे ही दो कुमार राजा के साथ और भी हैं वह भी एक श्याम और दूसरे गौर वर्ण के हैं। उनके भी सब अंग बहुत सुंदर है जो लोग उनको देखे हैं वह बस यही कहते हैं।

भरतु रामही की अनुहारी। सहसा लखि न सकहिं नर नारी।।
लखनु सत्रुसूदनु एकरूपा। नख सिख ते सब अंग अनूपा।।

श्री भरत जी राघव जी की तरह दिखते हैं और लक्ष्मण शत्रुघ्न एक जैसे दिखते हैं चारों भाइयों का इतना सुंदर स्वरूप है कि उनकी उपमा योग्य कोई तीनों लोकों में है ही नहीं।

उपमा न कोउ कह दास तुलसी कतहुँ कबि कोबिद कहैं।
बल बिनय बिद्या सील सोभा सिंधु इन्ह से एइ अहैं।।
पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन सुनावहीं।।
ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल गावहीं।।

चारों भ्राता बल, विनय, विद्या, शील और शोभा के समुद्र हैं। जनकपुर की सभी माताए - स्त्रियां भगवान के सामने अपने आंचल फैला करके उनसे यही वर मांगती हैं विनती पूर्वक की हे भगवान इन चारों भाइयों का विवाह इसी नगरी में हो जाए और हम सुंदर इनके विवाह में मंगल गीत गावें।

श्रेष्ठ दिन और लगन को सोध करके ब्रह्मा ने विचार किया। उसे नारद के हाथ भेज दिया, राजा जनक के ज्योतिषियों ने भी निश्चय किया था दोनों का मिलान ठीक बैठा तब वे कहने लगे यहाँ के ज्योतिषी भी ब्रह्मा ही हैं। सतानंद जी के निर्देशानुसार सारी तैयारी कर ली गई और सभी अयोध्या वासियों से निवेदन किया गया कि महाराज अब आप सब पधारें। उनके निवेदन करने पर महाराज दशरथ कुल धर्मानुसार कुल विधि करके साधु समाज के साथ चले। देवताओं ने सुमंगल का अवसार जान आकाश से फूल वर्षाये ये शिव ब्रह्मादि देवगण झुंड के झुंड विमानों पर चढ़े हुए हैं हृदय में उत्साह, शरीर में पुलकित हो राम का विवाह देखने जनकपुर को देखा तो अपने-अपने लोक सबको छोटे जँचने लगे।

चितवहिं चकित बिचित्र बिताना। रचना सकल अलौकिक नाना।।
बिधिहि भयह आचरजु बिसेषी। निज करनी कछु कतहुँ न देखी।।

वह चकित होकर विचित्र मंडप देखने लगे। नाना प्रकार की अलौकिक रचना देख ब्रह्मा को आश्चर्य हुआ, उन्हें अपनी करणी कहीं कुछ भी दिखाई नहीं पड़ी। तब शिव जी ने सब देवताओं को समझाया कि तुम लोग आश्चर्य में मत पडो हृदय में धीरज धरकर विचार तो करो कि यह भगवान की महिमामयी निज शक्ति श्री सीता जी का और अखिल ब्रह्मांडों के परमेश्वर साक्षात भगवान श्री रामचंद्र जी का विवाह है।

जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं। सकल अमंगल मूल नसाहीं।।
करतल होहिं पदारथ चारी। तेइ सिय रामु कहेउ कामारी।।

जिसका नाम लेते ही संसार में सब अमंगल का मूल नष्ट हो जाता है, चार पदार्थ हाथ में आ जाते हैं ये वही सीताराम हैं। नख से शिख तक श्रीराम के सुंदर रूप को बार-बार देखने से उमा और पुरारि को पुलक हो उठा और आँखों को अश्रु छलछला उठे। उस समय उनको अपनी पन्द्रह आँखें बड़ी प्यारी लगीं । नयन पंचदस अति प्रिय लागे। विष्णु ने जब प्रेम सहित राम को देखा तो रमापति, रमा के सहित मोहित हो गये । ब्रह्मा छवि देख प्रसन्न तो हुए पर आठ आँखें होने से पछिताने लगे। देवताओं के सेनापति कार्तिकेय को हृदय में बड़ा उत्साह कि उन्हें ब्रह्मा के नेत्रों से ड्योढ़ा लाभ मिल रहा है।

दोनों ओर से दुंदुभियाँ बड़े जोर से बज रही हैं। रानियाँ सुहागिन स्त्रियों को बुलाकर परिछन के लिये मंगल साज सजाकरप्रसन्न होती होई गजगामिनी चलीं। सची शारदा रमा भवानी देववधू माया से स्त्री का वेष बनाकर सब रनिवास में जाकर उन्हीं में मिल गयीं, कौन किसे जानता है सब आनंद में विभोर हैं। राम को दूल्हा वेष में देख सीता की माता के मन में जो सुख हुआ उसे सहज सरस्वती और शेष नहीं कह सकते। सभी प्रसन्न मन से परिछन कर रही हैं, वैदिक और कुल व्यवहार सभी ने भली प्रकार किया। महाराज दशरथ समाज के साथ विराजमान हुए, रामजी मंडप में आये अर्घ्य देकर आसन पर बैठाया।

बामदेव आदिक रिषय पूजे मुदित महीस।
दिए दिब्य आसन सबहि सब सन लही असीस।।

कौशलपति की पूजा राजा ने की उन्हें शिव के समान जानकर कोई दूसरा भाव उनके मन में नहीं था। हाथ जोड़कर विनती व स्तुति की, अपने भाग्य को सराहा। माया से श्रेष्ठ ब्राह्मणों का वेष बनाए हुए जो देव कौतुक देख रहे थे उनको देवता के समान जानकर जनक ने पूजन किया, और बिना पहचाने ही उन्हें सुंदर आसन दिये। समय देखकर वशिष्ठजी ने सतानंद को बुलाकर कहा- आप राजकुमारी को जल्द ले आइये, मुनि की आज्ञा पाकर प्रसन्न होकर चले –

रानी सुनि उपरोहित बानी । प्रमुदित सखिन समेत सयानी॥

सुमंगल साजकर सुंदर सखियाँ आदर के साथ सीताजी को मंडप के लिये ले चलीं ।

चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं।
नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनीं।।
कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं।
मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गती बर बाजहीं।।

स्वभाव से ही शोभायमान सीताजी स्त्री समूह में ऐसी सुशोभित हैं जैसे छवि रूपी स्त्रियों के बीच परम शोभारूप स्त्री सुशोभित हो । सबने मन ही मन प्रणाम किया, रामजी को देखकर सफल मनोरथ हुए, पुत्रों सहित दशरथ प्रसन्न हो गये। सीताजी के मंडप में आते ही मुनिराज प्रमुदित होकर शांति पाठ करने लगे, उस समय वैदिक विधि और लौकिक व्यवहार तथा आचार दोनों ओर के कुलगुरुओं ने सम्पादन किये ।

आचार करके गुरूजी गौरी और गणपति की पूजा करा रहे हैं देवता प्रकट होकर पूजा ले रहे हैं आशीर्वाद दे रहे हैं उन्हें अत्यंत सुख की प्राप्ति हो रही है। होम के समय शरीर धारण करके अग्नि अत्यंत प्रेम से आहूति ग्रहण करते हैं, ब्राह्मण के वेष में वेद भी विवाह की विधि कहे दे रहे हैं। सुनयना और जनक ने रामजी के चरण धोये, प्रेम से शरीर में पुलावली हो गई ।

लागे पखारन पाय पंकज प्रेम तन पुलकावली।
नभ नगर गान निसान जय धुनि उमगि जनु चहुँ दिसि चली।।
जे पद सरोज मनोज अरि उर सर सदैव बिराजहीं।
जे सकृत सुमिरत बिमलता मन सकल कलि मल भाजहीं।।

जिन चरणों का स्पर्श पाकर गौतम मुनि की स्त्री अहिल्या ने परम गति पाई। जिन चरणकमल का मकरंद रस गंगा जी शिव जी के मस्तक पर विराजमान हैं। जिसको देवता पवित्रता के सीमा बताते हैं मुनि और योगिजन अपने मन को भंवरा बनाकर जिन चरण कमलों का सेवन करके मनोवांक्षित गति प्राप्त करते हैं। उन्हीं चरणों को बड़भागी जनक जी धो रहे हैं यह सब देखकर सब लोग जय जयकार कर रहे हैं।

वर और कन्या सुंदर भांवरी दे रहे हैं, सब आदर पूर्वक उनका दर्शन कर अपना जीवन सफल कर रहे हैं।

(विवाह गीत)
सिया रघुवर जी के संग पड़न लागे हरे हरे,
पड़न लागे हरे हरे,
पड़न लागे भांवरिया।
कुअँरि कुअँरि कल भावँरि देहीं। नयन लाभु सब सादर लेहीं।।
जाइ न बरनि मनोहर जोरी। जो उपमा कछु कहौं सो थोरी।।
राम सिया के छवि के आंगे, नाचत कोटि अनंग।
पड़न लागे हरे हरे, पड़न लागे हरे हरे,
पड़न लागे भांवरिया।
सिया रघुवर जी के संग पड़न लागे हरे हरे,
गाओ रि सब मगंल गाओ री। २
राम सिया के दर्शन करके, सब सुख पाओ री।
गाओ रि सब मगंल गाओ री।
सिया रघुवर जी के संग पड़न लागे भांवरिया।

रामजी सीता के सिर में सिंदूर दे रहे हैं।

राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि केहीं।।

फिर वशिष्ठ जी ने आज्ञा दी तब दूल्हा और दुल्हन एक आसन पर बैठे। इसके बाद सखियां सब भगवान को लेकर के चली गई कोहबर में।

बैठे बरासन रामु जानकि मुदित मन दसरथु भए।
तनु पुलक पुनि पुनि देखि अपनें सुकृत सुरतरु फल नए।।
भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा।
केहि भाँति बरनि सिरात रसना एक यहु मंगलु महा।।

श्री राम और जानकी जी को देखकर दशरथ जी मन में बहुत आनंदित हुए। अपने सुकृत कल्पवृक्ष में नए फल आए देखकर उनका शरीर बार-बार पुलकित हो रहा है। चौदहों भुवनों में उत्साह भर गया सब ने कहा श्री रामचंद्र जी का विवाह हो गया। जीव एक ही है और यह मंगल महान है फिर प्रभु श्री रामचंद्र जी के विवाह का वर्णन कैसे समाप्त किया जा सकता है कहकर ?

रामजी का विवाह हो गया। श्री जनक जी वशिष्ठ मुनि की आज्ञा पाकर मांडवीका भरत जी से, जानकी की छोटी बहिन उर्मिला का लक्ष्मण जी से और श्रुतिकीर्ति का शत्रुघ्न से विवाह कर दिया। धर्मशास्त्र की आज्ञा है कि "सहोदर भाइयों का सहोदर बहिनों से व्याह नहीं हो सकता।" यहाँ लक्ष्मण और शत्रुघ्न सहोदर थे और मांडवी, श्रुतिकीर्त सहोदर बहने थी, इसी कारण से सांडवी का व्याह भरत जी के साथ और श्रुतकीर्ति का शत्रुघ्न के साथ हुआ। "

भरतजी के चार गुण = बल,शील, गुण और भक्ति। और मांडवी में भी चार गुण= गुण, शील, सुख और शोभा। अत: वर दुलहिन अनुरूप हैं।
लक्ष्मणजी तेज निधान हैं, उर्मिला सकल सुंदर शिरोमणि है अत: यह जोड़ी अनुरूप है।

श्रुतिकीर्ति के तीन गुण कहे- रूप,शील और निपुँता
सब गुन आगरी, रूप शील उजागरी॥”
इसी तरह शत्रुघ्न जी के तीन गुण कहे गये हैं।
सूर सुशील भरत अनुगामी।
अत: यह वर दुलहिन अनुसार हैं। दहेज स्वरूप महाराज जनक जी ने इतना भेंट किया है की पूरा भवन मणि और स्वर्ण से भर गया। लेकिन महाराज दशरथ ने सब जो जिसको चाहिए था वह याचकों में बंटवा दिये। फिर विविध भाँति के स्वादिष्ट पकवानों, मिठाइयों, फलों, अर्थात् षटरसों से पूर्ण जेवनार हुई जब बरात भोजन करने लगी तो-

जेवंत देहिं मधुर धुनि गारी । लै लै नाम पुरुष और नारी ॥”

राजा जनक, उनके भाई, उनके परिवार के पुरुषों का नाम लेकर उनके साथ कौशल्या, कैकेई, सुमित्रा इत्यादि रानियों का जोड़ा मिलाकर गाती थीं। 

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