F राम कथा हिंदी में लिखी हुई-36 ram ji katha hindi - bhagwat kathanak
राम कथा हिंदी में लिखी हुई-36 ram ji katha hindi

bhagwat katha sikhe

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-36 ram ji katha hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-36 ram ji katha hindi

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-36 ram ji katha hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-36 ram ji katha hindi

( अयोध्या कांड )

सज्जनों बालकांड रामायण रूपी कल्पवृक्ष का जड़ है। वृक्ष के दो महत्वपूर्ण अंग होते हैं जड़ और तना, जड़ जितनी गहरी और तना जितना मजबूत होगा वह वृक्ष उतने ही ज्यादा वर्षों तक रहता है सबको फल व छाया देता रहता है। और हम सब अब बालकांड के बाद अयोध्या कांड में प्रवेश किए हैं तो यह अयोध्या कांड रामायण रूपी कल्पवृक्ष का तना है।

और सज्जनों ध्यान देने वाली बात यह है कि यह दोनों कांड सभी कांडों में बड़े भी हैं। पहले बाल कांड उसके बाद अयोध्या कांड। तो यह राम कथा कल्पवृक्ष मैं बालकांड रुपी जडें बहुत गहरी हैं व अयोध्या कांड रूपी तना बहुत सशक्त है। इसीलिए यह सतत सभी जनमानस के तापत्रय विनाश कर आराम रूपी छाया व राघव जी के परम पद रूपी फल की प्राप्ति कराता आ रहा है।

नीलाम्बुल श्यामल कोमलांगं, सीता समारोपित वाम भागं ।
पाणौ महा सायक चारूचापं, नमामि रामं रघुवंश नाथम् ॥

नीलकमल की तरह जिसके अंग श्यामल और कोमल हैं, सीताजी जिनके वाम भाग में शोभित हैं, दोनों हाथों में जिनके बड़े प्रभावशाली वाण और सुन्दर धनुष हैं उन रघुवंश नाथ श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूँ। इस श्लोक के चार चरणों में समग्र रामचरित की झलक दिखाते हुए श्रीरघुनाथजी की वंदनाकी है, यथा-
(१) नीलाम्बुज श्यामल कोमलांग = इससे बालरूप राम की बंदना जिसमें जन्म और बाल लीला क्योंकि कोमल अंगजन्म और बाल्यकाल में ही होते हैं ।
(२) सीता समारोपित बाम भागं = इससे सीता को बाम भाग में विराजमान कहकर विवाह लीला, दूल्हे रूप राम की वंदना करके बालकांड का चरित समाप्त किया।
(३) पाणौ महासायक चारूचापं = राम के वीर रस की वंदना यानी वनवासी रूप की वंदना हुई इसमें रण लीला, अयोध्या कांड से लंकाकांड का चरित्र आ गया।
(४) नमामि रामं रघुवंशनाथं = इसमें राज्यासीन राजा राम की वंदना, रावण वध के बाद रामजी राज्य पर बैठे, यह रघुवंशनाथ से जनाया, इससे उत्तरकाण्ड सूचित किया ।

बालकाण्ड के मंगलाचरण के सात श्लोक क्रमशः सात काण्डों के प्रतिनिधि हैं, इस अयोध्या कांड में तीन श्लोक मंगलाचरण में दिये, इसका कारण यह कहा जाता है कि अवध से श्रीसीता, राम, लक्ष्मण ये तीन बन को गये और तीनों साथ रहे। आगे अरण्यकाण्ड में सीताहरण होने पर केवल राम-लक्ष्मण दो ही मूर्ति रह गये, इससे अरण्य और किष्किंधा में दो-दो श्लोकों में ही मंगलाचरण है। इससे आगे सुन्दरकाण्ड में सीताजी का पता लग गया अत: वहाँ से फिर तीन श्लोकों में मंगलाचरण किया गया। इस क्रम में गुसाईंजी की गुह्य उपासना का अनूठा और गूढ़ रहस्य प्रदर्शित कर रहा है।

 

 

* मंगलाचरण *

श्रीगुरूचरण सरोज रज, निज मनमुकुर सुधारि ।
वरनउँ रघुवर विमल यश, जो दायकु फल चारि ॥ '

बंधु माताओं यहां पर बाबा जी श्री गुरु जी के चरण कमल की रज से अपने मन रूपी दर्पण को साफ करने की बात कर रहे हैं। क्योंकि वह गुरु ही होता है जो शिष्य का हाथ पकड़ कर के राघव जी के हाथ में पकड़ा देता है।
गुरू चरण सर्वश्रेय देने वाले हैं- कल्पवृक्ष के समान सुन्दर मानव-तन पाकर उसके कल्याणमय अवसर का सदुपयोग कर ! कल्याण-मार्ग में हिम्मत, श्रद्धा, प्रेम और भक्ति ग्रहण करके वैराग्यवान सद्गुरु की शरण लो।

कल्पवृक्ष : मानवतन

दृष्टान्त —एक स्थान पर कल्पवृक्ष लगा था । एक थका-मांदा मनुष्य उसके नीचे गया और सोचने लगा कि यहां एक स्वच्छ सरोवर होता तो मैं उसमें जल पीता और स्नान करता। इतने में वहां सरोवर दिखाई दिया । वह आश्चर्य चकित हो गया और जाकर सरोवर में जल पीया, स्नान किया और पुनः वृक्ष के नीचे आ बैठा ।

उसे भूख लगी थी। उसके मन में कल्पना उठी कि यहां एक थाली उत्तम व्यंजन होता तो क्या पूछना था! इतने में वह भी उपस्थित हो गया । उसने व्यंजन जीम लिया और कल्पना करने लगा कि यहां गद्दा तकिया के सहित पलंग होता तो मैं उस पर आराम करता । इतने में क्या देखता है कि उसके सामने मनवांछित शय्या तैयार है। वह उस पर लेट गया और कल्पना करने लगा कि एक सुन्दरी नवयुवती होती और मेरे पैर दाबती तो क्या आनन्द आता! वह कल्पवृक्ष था ही, एक सुन्दरी उपस्थित हो गयी और उसके पैर दाबने लगी। वह आश्चर्यचकित था । इतने में उसके मन में कल्पना उठी कि जिसकी यह पत्नी है वह आकर कहीं मुझे पीटने न लगे। फिर तो कल्पना की देरी थी, एक मनुष्य आकर उसे पीटने लगा ।

यह दृष्टांत कल्पित है; क्योंकि कल्पवृक्ष अन्य कहीं नहीं । यह मानव-शरीर ही कल्पवृक्ष है । इसमें जैसी वासना रखी जाय, वैसे उत्थान - पतन, पाप-पुण्य तथा सुख-दुख जीव को प्राप्त होंगे। अतएव कल्याण की वासना रखकर कल्याण ही प्राप्त करना चाहिए। मानव - शरीर का अवसर अनोखा है ।

जे गुरू चरन रेनु सिर धरहीं। तेजनु सकल विभववश करहीं ॥

सज्जनो ज्ञान, विराग दो लोचन हैं उनमें से ज्ञान रूपी नेत्र पहले निर्मल हुआ "ज्ञान विराग नयन उर गारी ॥ " उर-ग- अरि= उरमें, मन में बैठे हुए काम, क्रोध और लोभ ये तीन महामूल शत्रु हैं अब तक ये मन दर्पण पर रहे तो भी काम चला, अब विराग की प्राप्ति करके परम विरागी राम सेवकों के चरित्र तथा त्याग-विरागमय श्रीरामचरित का वर्णन करना है। विषयासक्ति रूपी काई मन पर जम गई है उसे गुरुचरण कमल रज से साफ कर प्रेम भक्ति जल से मन दर्पण को धो-धोकर मनरूपी दर्पण को स्वच्छ = निर्मल करते हैं।

प्रेम भगति जल बिनु रघुराई । अभिअंतर मल कबहु न जाई।।

रज-धूलि से साफ करने पर भी निर्मल जल से धोये बिना मन साफ नहीं हो पाता है। वह गुरू सद्गुरू रूपी शंकर जी की कृपा से ही हो सकता है क्योंकि वे "वैराग्याम्बुज भास्कर" हैं। विरागरूपी कमल को प्रफुल्लित करने वाले सूर्य हैं।"गुरूदेव शिव साक्षात् ॥" मन दर्पण पूर्ण निर्मल, पूर्ण वैराग्य सम्पन्न होने पर त्याग - विराग सम्पन्न वैराग्य दायक चरित्र का वर्णन करने की कुछ पात्रता होगी।

गुरु मेरी पूजा, गुरु गोविंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत...

गुरु मेरा देव, अलख अभेवो, सर्व पूज.. चरण गुरुसेवो,
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोविंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत...

गुरु का दरशन, वेख-वेख जीवां, गुरु के चरण.. धोये-धोये पीवां,

गुरु बिन अवर, नहीं मैं थाऊं, अनगिन जपहुं, गुरु-गुरु नाऊं..

गुरु मेरी पूजा, गुरु गोविंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत...

गुरु मेरा ज्ञान, गुरु हृदय ध्यान, गुरु गोपाल, तुरत भगवान,
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोविंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत...

धर्माचरण करने पर गुरूकृपा से पूर्ण विरति होगी, विरति से योग, योग से ज्ञान, ज्ञान से मोक्ष रूपी चौथा फल मिलता है पर ये सब बातें गुरू कृपा से ही प्राप्त होती हैं।


( राज्याभिषेक-प्रसंग )

भगवान राघव जी सहित चारों भैया विवाहित होकर के अयोध्या में आए हैं। अयोध्या में एक अलग ही उत्सव है उत्साह है। पूरी अयोध्या में एक अलग ही परिवर्तन नजर आ रहा है। सज्जनों अयोध्या कांड की यह जो प्रारंभिक चौपाइयां है यह अत्यंत मांगलिक हैं। जीवन को मंगलमय बनाने वाली यह चौपाइयां हैं। यह चौपाइयों का जो गान करता है श्रद्धापूर्वक उसके घर में सतत मंगल ही मंगल होता है। इसके नियमित पाठ से तो जीवन की दरिद्रता गरीबी मिट जाएगी और प्रभु की कृपा सदैव बनी रहेगी। आइए हम सब मिलकर के अयोध्या कांड की इन मंगलमय चौपाइयों का गान करें।

जब ते राम ब्याह घर आये । नित नव मंगल मोद बँधाए ।
भुवन चारिदस भूधर भारी । सुकृत मेघ बरषहिं सुखवारी ॥
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।।

जब से श्री रामचंद्र जी विवाह करके घर आए तब से अयोध्या में नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के बधावे बज रहे हैं। चौदहों लोक रूपी बड़े भारी पर्वतों पर पुण्य रूपी मेघ सुख रुपी जल बरसा रहे हैं। सज्जनों यह पुण्य रूपी मेघ जो अब बरस रहे हैं यह मेघ छाए कब थे? याद करिए पूर्व प्रसंग पर हमने इसको जाना था।

जा दिन ते हरि गर्भहिं आये। सकल लोक सुख संपति छाये।।

भगवान जब आए थे मां कौशल्या के गर्भ में तब यह बादल छाए थे और आज यह बरस पड़े। मेघ जल बरसाते हैं पर सुकृत मेघ सुखरूपी जल को बरसाते हैं। जल बहुत गिरा इससे नदी में बाढ़ आ गई, गंगाजी ने समुद्र को भरा उसकी साथी दो नदियाँ यमुना और सरस्वती हैं यहाँ भी तीन नदी रिद्धि, सिद्धि और सम्पत्ति रूपी नदियाँ उमग कर अबध समुद्र में गिरी थीं।

जिमि सरिता सागर में जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नांही ।

जैसे मणि यद्यपि समुद्रजल में है पर जल का उसमें प्रवेश नहीं, इस भाँति अवधपुर वासी सुख सम्पत्ति में डूबे हुए हैं फिर भी निर्लेप हैं । अयोध्या में सब लोग सभी प्रकार से सुखी हैं यही राम राज्य का स्वरूप है। लेकिन इतने सुख में भी- रामचंद मुख चंदु निहारी। सुख में सब राम जी को ही निहार रहे हैं, राम जी को ही सुन रहे हैं, राम जी को ही गा रहे हैं। यहां पर एक दिव्यता का दर्शन करिए की अयोध्यावासी सभी सुखी होने पर भी केवल तन मन से राम जी के लिए समर्पित है। लेकिन हम सांसारियों का हाल क्या है हम भगवान को सुख में कितना याद करते हैं यह हम सब जानते हैं।

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