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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-38 ram katha kahani in hindi

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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-38 ram katha kahani in hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-38 ram katha kahani in hindi

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-38 ram katha kahani in hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-38 ram katha kahani in hindi

ऐसा विचार मन में लाकर और सुदिन तथा सुअवसर पाकर प्रेम से पुलकित और प्रसन्न मन होकर गुरू वशिष्ठ से जाकर कहा-

कहइ भुआलु सुनिअ मुनिनायक। भए राम सब बिधि सब लायक।।
नाथ रामु करिअहिं जुबराजू। कहिअ कृपा करि करिअ समाजू।।

भगवान श्री रामचंद्र जी अब सब प्रकार से योग्य हो गए हैं। सेवक मंत्री सब नगर वासी और जो हमारे शत्रु मित्र या उदासीन हैं सभी को रामचंद्र जी वैसे ही प्रिय हैं जैसे वह मुझको हैं। अब मेरे मन में एक ही अभिलाषा है हे नाथ वह आपके ही अनुग्रह से पूरी होगी। अगर आपकी आज्ञा हो तो राम को युवराज पद प्रदान कीजिए। महाराज दशरथ जी के वचनों को सुनकर गुरु वशिष्ठ बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे की हे राजन आपका विचार सर्वोत्तम है।

बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।
सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।

अब देर ना कीजिए शीघ्र सब सामान सजाओ, शुभ दिन और सुंदर मंगल तभी है जब रामचंद्र जी युवराज हो जाएं। उनके अभिषेक के लिए सभी दिन शुभ और मंगलमय है। राजा आनंदित होकर महल में आए और उन्होंने सेवकों तथा मंत्री सुमंत्र को बुलवाया उन लोगों ने जय जय कहकर सिर नवाया। तब राजा ने सुंदर मंगलमय वचन श्री राम जी को युवराज पद देने का प्रस्ताव सुनाए और कहा यदि पंचों को यानी आप सबको यह मत अच्छा लगे तो हृदय से हर्षित होकर आप लोग रामचंद्र का राजतिलक कीजिए। इस प्रिय वाणी को सुनते ही मंत्री ऐसे आनंदित हुए मानो उनके मनोरथ रूपी पौधे पर पानी पड़ गया हो, मंत्री हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि हे जगतपति आप करोड़ों वर्ष जिए क्योंकि-

जग मंगल भल काजु बिचारा। बेगिअ नाथ न लाइअ बारा।।

आपने जगत भर का मंगल करने वाला भला काम सोचा है। हे नाथ शीघ्रता कीजिए देर ना लगाइए। महाराज दशरथ बहुत प्रसन्न हुए मंत्रियों के ऐसे वचन सुनने के बाद। हर्षित हो मुनिजी ने मृदुवाणी से सभी सुंदर तीर्थों का जल, औषध मूल, फूल, पान, फल और अनेक मंगल वस्तुओं के नाम गिनाकर लाने को कहा। मनोहर मणियों के सुंदर चौक पुरवाये, और बाजार को जल्दी सजाने के लिये कहा गणेश गौर और कुलदेव की पूजा करो और सब विधि से ब्राह्मणें की सेवा करो, रामजी के अभिषेक की सुहावनी खबर सुनते ही अवध में बँधावे के बाजों की धूम मच गई। रनिवास आनंदित हो उठा, फिर ग्राम के देवी देवता और नागों की पूजा की।

यहाँ महाराज दशरथ ने वशिष्ठ जी को बुलाकर राम जी के महलों में शिक्षा देने के लिये भेजा, गुरू का आगमन सुनते ही राम द्वार पर आकर उनके चरणों में सिर नवाकर अर्घ्य देकर घर लाकर षोडसोपचार पूजन करके सम्मान किया। तत्पश्चात् सीता के सहित पाँव छुये और करकमल जोड़कर बोले सेवक के घर स्वामी का आगमन सब मंगलों का मूल है अमंगलों का नाश करने वाला है। आज यह घर पवित्र हुआ, आज्ञा करिये गुरुदेव सेवक को स्वामी सेवा का लाभ हो ।

गुरु वशिष्ठ जी बोले हे राघव महाराज दशरथ राज्याभिषेक की तैयारी कर लिए हैं, वह आपको युवराज पद देना चाहते हैं। इसीलिए आप उपवास हवन आदि विधिपूर्वक सब संयम कीजिए जिससे विधाता कुशल पूर्वक इस काम को सफल करें। गुरुजी शिक्षा देकर राजा दशरथ जी के पास चले गए। श्री रामचंद्र जी के हृदय में यह सुनकर इस बात का बड़ा खेद हुआ। उनके नेत्र सजल हो गए माता जानकी देखी हैं प्रभु को इस अवस्था में तो पूछती हैं की हे भगवन आप दुखी क्यों है? किस बात का खेद राघव जी आपको? राघव जी कहने लगे जानकी-

बिमल बंस यहु अनुचित एकू। बंधु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू।।

राघव जी कहते हैं सारी परंपरा रघुकुल की श्रेष्ठ है मैं भाग्यशाली हूं कि मेरा जन्म रघुवंश कुल में हुआ लेकिन एक परंपरा मुझे बहुत दुख देती है। हम चारों भाई एक साथ ही जन्मे, एक साथ ही खाए, सोए, एक साथ खेले कूदे, एक साथ हमारे यज्ञोपवीत, विवाह आदि संस्कार हुए लेकिन इस निर्मल वंश में यही एक अनुचित बात हो रही है कि और सब भाइयों को छोड़कर राज्याभिषेक एक मेरा ही हो रहा है।

जनमे एक संग सब भाई। भोजन सयन केलि लरिकाई।।
करनबेध उपबीत बिआहा। संग संग सब भए उछाहा।।
बिमल बंस यहु अनुचित एकू। बंधु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू।।

हम चारों भाइयों में जितना प्रेम है किसी की नजर ना लगे ऐसा प्रेम यदि हो जाए भाई-भाई में संसार में तो यह संसार स्वर्ग बन जाए और कुछ फिर करने की जरूरत नहीं है और सब को छोड़कर केवल में बड़ा हूं इसलिए मुझे राजा बनाया जाए यह परंपरा मुझे स्कूल की अच्छी नहीं लगी पिताजी को इस पर विचार करना चाहिए क्योंकि राम को कोई प्रश्न आता नहीं है कि राम को अयोध्या का राजा बनाया जाना चाहिए और है जानकी जी मैं अपने हृदय की बात बोलूं राम को तो तब प्रसन्नता होगी जब अयोध्या की गाड़ी पर राम नहीं राम का छोटा भाई भरत राजा बनाकर के बैठेगा तब राम प्रसन्न होगा।

यह है राम यह है राघव जी का हमारे स्वभाव प्रेम यह है त्रेता के भाई जो भाई के सुख की कामना कर रहे हैं और कलयुग के भाई आपस में ही मुकदमा लड़ते हैं और अखंड रामायण का पाठ करते और करवाते हैं। तो हमको इस चरित्र से सीख लेनी चाहिए कि भाई-भाई का प्रेम कैसा होना चाहिए यह राम कथा का यह चरित्र हमें हर पल उपदेश करता है।

लोगों में राजतिलक के लिये बड़ा उत्साह पर कुचाली देवता विघन की अवस्था में लगे हैं अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये सबके आनंद के मार्ग में रोड़ा अटकाने की चिंता में हैं इसी से कवि ने उनको 'कुचाली' कहा । सरस्वती को बुलाकर विनय कर रहे हैं कि माता हमारी बड़ी विपत्ति को देखकर आप वही उपाय करो जिसमें रामजी राज्य छोड़कर वन में जायँ जिससे सब देवताओं का कार्य सिद्ध हो।

सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिं बार पाय लै परहीं।।

देवताओं ने बार-बार सरस्वती के चरण पकड़ संकोच में डाला, तब वह देवताओं की बुद्धि भली नहीं ऐसा विचार कर चली।

ऊँच निवासु नीचि करतूती। देखि न सकहिं पराइ बिभूती।।

ऐसे लोगों का यही दोष होता है, अहंकारी अभिमानी व्यक्ति का यही दोष है कि उसको दूसरों का भैभव अच्छा नहीं लगता। वह दूसरों को कभी बढ़ता हुआ देखकर प्रसन्न नहीं होता। माता सरस्वती विचार करती हैं इनका निवास तो ऊँचा है पर करतूति इनकी नीच है, ये दूसरे का ऐश्वर्य नहीं देख सकते।

सज्जनो आज का ज्यादातर व्यक्ति दुखी क्यों है? आज का संसार दुखी क्यों है? वह अपने दुख से दुखी नहीं है आज का संसार दूसरों के सुख से दुखी है। यही विडंबना है और इसका कोई इलाज नहीं है। मनुष्यता यह है कि हम दूसरों के सुख में सुखी हो और दूसरों के दुख में दुखी हों।


इधर माता सरस्वती ने विचार किया कि श्री राम जी के वन जाने से राक्षसों का वध होगा जिससे सारा जगत सुखी हो जाएगा। चतुर कवि श्री राम जी के वनवास के चरित्रों का वर्णन करने के लिए मेरी कामना करेंगे ऐसा विचार कर सरस्वती हृदय में हर्षित होकर दशरथ जी की पूरी अयोध्या में आई। सरस्वती का अयोध्या में कैसे आना हुआ? बाबा जी लिखते हैं-

जनु ग्रह दसा दुसह दुखदायी।

मानो भयंकर दुख देने वाली कोई ग्रह दशा आई हो। सरस्वती जी अयोध्या में आकर विचरण कर रही हैं और मन में विचार कर रही हैं किसकी बुद्धि बिगाड़ूं? क्योंकि सरस्वती जी विचार कर रही हैं कि मैं जानकी जी जहां विराज रही हैं ऐसी अयोध्या में आई हूं और जानकी जी की कृपा क्या है?

जनक सुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुणा निधान की।।
ताके जुग पद कमल मनाऊं। जासु कृपा निर्मल मति पांऊ।।

जहां जानकी जी बैठी हैं जिनकी कृपा को प्राप्त कर सब निर्मल मति को पाते हैं वहां पर मैं किसकी बुद्धि बिगाड़ूं। सरस्वती जी ने विचार किया जिनका जन्म अयोध्या की पवित्र मिट्टी में हुआ है, जिन्होंने सरयू जी के पवित्र जल का पान किया है उसकी बुद्धि मैं नहीं बिगाड़ सकती। सरस्वती जी खोज रही हैं कोई बाहर का मिलना चाहिए तभी उनकी दृष्टि एक पैर पड़ गई। किसपर?

नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकेइ केरि।
अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि।।

कैकेई मैया की दासी मथंरा को देखा है। उसकी बुद्धि पलटकर सरस्वती चली गई, भाव यह कि अयोध्या में राम विमुख, विरोध रखने वाली एक मंथरा मंदमति सुस्त टेड़ी एवं नीच यही थी । दूसरा कोई न था। मंदमति ही शीघ्र फिरती है दिव्य बुद्धि नहीं फिरती उस पर भी ये चेरी- दासी है नीच है, इससे उसकी ही मति फेरी ।

सज्जनो यह मंथरा कोई साधारण नहीं है, इसको साधारण समझने की भूल मत करिएगा। रामचरितमानस की सबसे ताकतवर प्राणी अगर कोई है तो वह मंथरा। अब आप पूछेंगे क्यों वह कैसे ताकतवर है? तो सुनिए मंथरा इसलिए ताकतवर है कि उसने अयोध्या जैसे विशाल राज्य को समाप्त कर दिया, महाराज दशरथ को मरने के लिए मजबूर कर दिया। महारानियों को विधवा कर दिया। भगवान को भवन से निकालकर वन में पहुंचा दिया। कैकेई मां को कनक भवन से निकलवा कर कोप भवन में पहुंचा दिया। सारी अयोध्या वासियों को खून के आंसू रुला दिया इसने। और इस मंथरा का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया 14 वर्ष तक भगवान के वन जाने के बाद भी अयोध्या में मंथरा रही और 14 वर्ष बाद भगवान के राज्याभिषेक के समय भी वह मंथरा वहां पर थी।

मंथरा कौन है यह दहेज का समान है, माता कैकेई के ब्याह में दासी के रूप में आई थी। देखिए सज्जनो दहेज दो प्रकार का होता है। मानस में भी दहेज शब्द का वर्णन है। पर्वतराज हिमाचल ने भी अपनी पुत्री पार्वती का विवाह भगवान शिव से किया तो उन्होंने बहुत सा दहेज दिया। महाराज जनक भी अपने पुत्री को विदा करते समय बहुत साथ दहेज दिए। लेकिन यहां मानस में जिस दहेज का वर्णन है यह पुत्री के पिता के प्रसन्नता वाला दान है।

लेकिन आज कल जो दहेज चल रहा है वह समाज में एक बड़ी समस्या के रूप में देखा जाता है। यह जो बेटे की बेचने की परंपरा चल रही है बेटों का दाम लगाया जा रहा है, जो जितनी बड़ी नौकरी पर है उसका उतना दाम बोला जाता है यह हमारे समाज में बड़ी निकृष्ट बात है। पहले संबंध बनते थे और अब सौदे होते हैं। पहले समधी कैसे बनते थे? सम- मतलब बराबर। धी- मतलब बुद्धि। जिसकी बराबर बुद्धि मिल गए तो बन गए समधी और अब यह है की बुद्धि मिले या ना मिले सौदा मिल जाए तो बन गए समधि।

हम सब लोगों को कथा से शिक्षा लेनी चाहिए और दहेज मांगने वाली जो बुराई है इसका त्याग करना चाहिए। आप सब एक बात और समझ लीजिए कि जब से दहेज मांगने की यह बुराई समाज में आ गई है तब से घर गृहस्ती में सुख शांति छिन कर क्लेश ने अपने पैर जमा लिए हैं। अगर अपने घर गृहस्ती सुखपूर्वक खुशहाली से जीना चाहते हैं। कलह से बचना चाहते हैं तो इस बुराई का त्याग करना ही होगा।

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