राम कथा हिंदी में लिखी हुई-39 ram ki katha in hindi
अच्छा यह मंथरा कौन
है? यह
कुसंग है और कुसंग को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए। और अगर कुसंग से बचाना है तो
क्या करना चाहिए जीवन में सुनिए।
सत्संगति से प्यार
करना सीखो जी
जीवन
का उद्धार करना सीखो जी
तन धन दाम संग ना जावयए
सुत दारा कोई काम ना आवये –
ममता का संघार करना सीखोजी
जीवन का उद्धार करना सीखोजी
॥ सत्संगति से प्यार करना...॥
यह जाग मोहनी नीद का सपना
नही कोई गैर नही कोई अपना
सत्य असत्य विचार करना सीखोजी
जीवन का उद्धार करना सीखोजी
॥ सत्संगति से प्यार करना...॥
हरि का भजन नित्य प्रति कीजे
अंतःकरण शुद्ध कर लीजे
आत्म साक्ष करना सीखोजी
जीवन का उद्धार करना सीखोजी
॥ सत्संगति से प्यार करना...॥
भिक्षु कहे सुनो मन मेरो
नर तन भव भरिढ़ कहु बेरो
भव से बेड़ा पार करना सीखोजी
जीवन का उद्धार करना सीखोजी
॥ सत्संगति से प्यार करना...॥
सत्संगति से प्यार करना सीखोजी
जीवन का उद्धार करना सीखोजी
कुसंग से बचने का मात्र एक ही उपाय
है सत्संग सरस्वती जी ने मंथरा की बुद्धि बिगाड़ दी। वह भरत की माँ के पास मुँह
लटकाती गई,
रानी ने हँसकर पूछा क्यों उदास हैं, कुछ उत्तर
नहीं देती लम्बी साँसें ले रही है और त्रिया चरित्र करके आँसू बहा रही है, भयभीत हो रानी ने कहा कहती क्यों नहीं? तब उसने कहा –
"अहो
स्वामिनी आपने,
सुना नहीं क्या हाल ?
राजतिलक
श्रीराम का होगा प्रातः काल
विधाता कौशल्या के अनुकूल हो गये हैं, आप
जाकर शोभा देखिये, जिसे देखकर मेरा मन चंचल हो रहा है,
बेटा विदेश में है तुम्हें उसकी चिंता नहीं है समझती हो कि पति मेरे
वश में हैं तुम्हें तो नींद और तोषक तकिया बड़ा प्रिय है, राजाकी
कपट चतुरता तुम्हें सूझती ही नहीं प्रिय बचन सुनकर रानी कैकई बिगड़ उठी कि बस अब
चुप रह, घर फोरी, यदि अब तूने ऐसी बात
कही तो पकड़ कर तेरी जीभ खिचवा डालूँगी क्योंकि काने, लंगड़े
और कूबड़े कुटिल और कुचाली होते हैं फिर तिस पर स्त्री और फिर दासी ऐसा कहकर भरत
की माँ ने मुस्करा दिया बोली-
अहो
भाग्य तूने दिया, समाचार सुख सार ।
आ समीप पहनाऊँगी तुझे गले का हार ॥
जैसे ही माता कैकेयी ने सुना की मेरा
राम राजा बनने जा रहा है,
इतनी प्रसन्न हो गई कि उन्होंने अपने गले का हर मंथरा के गले पर डाल
दिया मंत्र को लगा कि अरे हम तो इनको भड़काने आए थे और यही नाम दे रही हैं तब
मंत्र चिकनी चुपड़ी बातें करने लगी अरे रानी तू बड़ी भोली है बड़ी सीधी है। और
किसी को ठगना हो तो यही चापलूसी के शब्द बोलना चाहिए। अरे आप, अरे आपका क्या कहें, आप जैसे कोई है ही नहीं। ऐसी
चिकनी चुपड़ी बातें मीठी मीठी जो बोलना शुरू कर दे तो समझ लीजिए धीरे से काटने की
तैयारी कर रहा है। तो यहां पर वह यही काम मंथरा भी करने लगी।
हे रानी तू बड़ी सीधी है और वह
कौशल्या वह बड़ी चतुर चालाक है। जैसे ही मंथरा ने कहा कैकेयी चिल्ला कर बोली अरे
मंथरे खबरदार अगर ऐसा बोली तो तेरी जवान खींच लूंगी। मेरी कौशल्या को तू चतुर चलाक
कह रही है?
मंथरा ने कहा वो रानी तुम्हारे पास क्या प्रमाण है कि कौशल्या चतुर
चालाक नहीं हो सकती?
कैकई माता ने कहा अरे मंथरा सुन मेरे
पास प्रमाण है- अगर कौशल्या चतुर चालाक होती तो उसके गर्भ में राम जैसा बेटा आ ही
नहीं सकता था। राम की मां कभी चतुर चालाक नहीं हो सकती वह तो सरल सुशील है। इतना
करने पर भी जब मंथरा की दाल नहीं गली तब मंथरा ने त्रिया चरित्र प्रारंभ करना शुरू
कर दिया। देखिए त्रिया चरित्र को लेकर बाबा तुलसीदास पर कुछ अज्ञानी लोग टिप्पणी
करते हैं कि उन्होंने स्त्रियों के विषय में ऐसा बोला बाबा तुलसीदास जी तो ऐसी
स्त्री के विषय में बोले हैं जिनकी बुद्धि मंथरा के जैसे है। जो कुसंग की मूर्ति
है उसके विषय में ऐसा कहा गया।
नारि
चरित करि ढारयि आंसू।
मंथरा बड़े-बड़े आंसू से रोने लग गई, यह
देखकर के माता कैकेयी ने मंथरा का कंधा पकड़ लिया। अरे मंथरा तू इतना दुखी क्यों
होती है? सज्जनों कुसंग मे इतना आकर्षण होता है कि उसके निकट
जाएंगे तो वह तुरंत खींच लेगा। सत्संग में उतना आकर्षण नहीं होता। हां अति हरि
कृपा हो जाए तो बात अलग है। अगर कहीं पर कथा हो रही है तो चार बार कहने पर लोग
तैयार हो जाएं चलने के लिए तो बड़ी बात है और वहीं पर कहीं नाच गाना हो रहा हो तो
आपसे पहले ही जिनको बुलाना चाहते हैं वह वहाँ पहुंच चुके होते हैं।
जैसे ही माता कैकेयी ने मंथरा को
पकड़ कर प्रेम पूर्वक पूंछा है वैसे ही मंथरा अपने बातों में फंसाकर कैकेयी माता
की मकि को हर लेती है। और कहने लगी-
प्रिय
सिय रामु कहा तुम्ह रानी। रामहि तुम्ह प्रिय सो फुरि बानी।।
रहा प्रथम अब ते दिन बीते। समउ फिरें रिपु होहिं पिंरीते।।
हे रानी तुमने जो कहा कि मुझे
सीताराम प्रिय हैं और राम को तुम प्रिय हो यह बात सच्ची है। परंतु यह बात पहले थी
वह दिन अब बीत गए। समय फिर जाने पर मित्र भी शत्रु हो जाते हैं। देखो जो सूर्य कमल
के समूह का पालन करता है परंतु वही जब जल ना हो तो सूर्य अपनी प्रखर किरणों से कमल
को जलाकर नष्ट कर देता है।
हे रानी तुम महाराज को अपने वश में
हुआ जानती हो,
लेकिन उनके स्वभाव को नहीं जानती? वह मन के
मैले और मुंह के मीठे हैं। तुम तो बड़ी सीधी हो कपट चतुराई जानती नहीं हो और राम
की माता कौशल्या बड़ी चतुर है। उसकी कोई थाह नहीं पा सकता। उसने सारी योजना बनाकर
राजा से कहकर भरत को ननिहाल भेज दिया और इधर राम के राज्याभिषेक की सारी योजना बना
ली गई। इसमें सारी सलाह राम की माता कौशल्या की ही समझो। हे रानी राम का राज तिलक
हो यह रघुकुल के लिए उचित ही है। यह बात सभी को सुहाती है और मुझे तो बहुत ही
अच्छी लगती है। परंतु जो आगे की बात विचारती हूं तब डर लगता है क्योंकि फिर
तुम्हारी स्थिति दासी के सिवा कुछ नहीं रहेगी। इस तरह बहुत से कुटिलपन की बातें
गढकर मंथरा ने कैकेयी को उल्टा सीधा समझा दिया और सैकड़ों सौतन की कहानी इस प्रकार
बना बनाकर कहीं जिस प्रकार विरोध बढ़े। उसने बात बनाते हुए कहा यदि कल राम का
राजतिलक हो गया तो समझ लेना तुम्हारे लिए विधाता विपत्ति का बीज बो दिया।
मैं यह बात लकीर खींच कर बलपूर्वक
कहती हूं कि तुमको अब राजभवन से इस प्रकार निकाल दिया जाएगा जैसे दूध में पड़ी हुई
मक्खी को निकाल कर फेंक देते हैं। जैसे ही इस प्रकार मंथरा की बातों को कैकेयी ने
सुना कांप गयी।
कैकयसुता
सुनत कटु बानी। कहि न सकइ कछु सहमि सुखानी।।
तन पसेउ कदली जिमि काँपी। कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी।।
कैकेयी मंथरा की कड़वी वाणी सुनते ही
डर कर सुख गई। कुछ बोल नहीं सकी शरीर में पसीना हो आया और वह केले की तरह कांपने
लगी। तब कुबडी मंथरा ने अपनी जीभ दातों तले दबाई क्योंकि उसे भय हुआ की कहीं रानी
कि इस स्थिति से उनके हृदय की गति ना रुक जाए कि सारा काम बिगड़ जाए। तब उसने कपट
की कई कहानियां कहकर रानी को खूब समझाया और धीरज धराया।
कहने लगी जिसने तुम्हारी बुराई चाही
है वह परिणाम में यह बुराई रूप फल पाएगी। हे रानी मैं जब से यह कुमत सुना है तब से
मुझे ना तो दिन में कुछ भूख लगती है और ना रात में नींद आती है। मैंने ज्योतिषियों
से पूछा तो उन्होंने रेखा खींचकर निश्चय पूर्वक कहा कि भरत ही राजा होंगे। यह सत्य
बात है। हे रानी लेकिन उसके लिए तुमको एक उपाय करना होगा। तुम करो तो उपाय मैं
बताऊं ?
कैकेयी ने कहा कि अरे मंथरे मैं तेरे
कहने से कुएं में गिर सकती हूं पुत्र और पति को भी छोड़ सकती हूं। तू बता तो सही
मुझे क्या करना होगा जल्दी बता? कैकई कहने लगी हे रानी-
दुइ
बरदान भूप सन थाती। मागहु आजु जुड़ावहु छाती।।
तेरे पास महाराज दशरथ के दो वरदान
सुरक्षित हैं और आज उचित समय आ गया है दोनों को मांग कर अपने छाती को ठंडक दे दो।
और यही दो मांग सब समस्याओं का समाधान है तो क्या मांगना है मंथरा बोल रही है।
सुतहि
राजु रामहि बनवासू। देहु लेहु सब सवति हुलासु।।
दो वरदान तेरे पास सुरक्षित है मांग
ले रानी। पहले में पुत्र को राज्य दूसरे में राम को वनवास और मांगना कैसे है यह भी
सुन लो। कोप भवन में जाओ और यह श्रृंगार और कपड़े उतारो और मैले कुचैले कपड़े पहन
लो। धरती पर लेट जाओ,
केस खोल लो और राजा जब तुमको मनाने आएंगे तब अपने दोनों वरदान मांग
लेना और ऐसे ही नहीं मांगना पहले शपथ ले लेना।
देखिए कुसंग का प्रभाव कैकेई को कनक
भवन से निकाल कर कोप भवन में पहुंचा दिया है। श्रृंगार के कपड़े को उतरवा कर विकार
के कपड़ों को पहनवा दिया है। केश खुलवाकर धरती पर लेटवा दिया है। जो राम कैकई के
हृदय भवन पर बसते थे उसी राम को वन गमन के लिए भेज दिया। यह है कुसंग का परिणाम।
संध्या के समय राजा दशरथ आनंद के साथ
कैकई के महल में गए। मानो साक्षात स्नेह ही शरीर धारण कर निष्ठुरता के पास गया हो।
महाराज दशरथ देखते हैं कि भवन के बाहर मंथरा बैठी है। तो सज्जनों जिसके भवन के
बाहर ही कुसंग बैठा हो वह क्या मार्गदर्शन करेगा? महाराज दशरथ ने
पूंछा है कैकेयी मंथरा कहां है? तो मंथरा ने कहा कि महाराज
कोप भवन में हैं। बंधु माताओं कुसंग सदैव कोप भवन का रास्ता दिखलाता है और सत्संग
आपको राम के भवन का मार्ग दिखलाता है। जैसे ही महाराज दशरथ को यह पता चला कि
कैकेयी कोप भवन पर हैं यह सुनते ही राजा सहम गए।
कोपभवन
सुनि सकुचेउ राउ। भय बस अगहुड़ परइ न पाऊ।।
महाराज दशरथ इतने भयभीत हो गए कि उनके पांव आगे को नहीं बढ़ रहे। स्वयं देवराज इंद्र जिनकी भुजाओं के बल पर राक्षसों से निर्भय होकर बसते हैं। और संपूर्ण राजा लोग जिनका रुख देखते हैं वही राजा दशरथ स्त्री का क्रोध सुनकर सूख गए। कामदेव का प्रताप और महिमा तो देखिए जो त्रिशूल, वज्र और तलवार आदि की चोट अपने अंगों पर सहने वाले हैं वह कामदेव के पुष्प बांण से मारे गए।