राम कथा हिंदी में लिखी हुई-40 morari bapu ki ram katha hindi mein
राजा डरते डरते कैकेयी के पास गए, उनकी
दशा देखकर उन्हें बड़ा ही दुख हुआ। क्योंकि जमीन पर पड़ी हैं, पुराना मोटा कपड़ा पहने हुए, शरीर के नाना आभूषण को
उतार कर फेंक दिया है। यह देखकर राजा उसके पास जाकर प्रेम पूर्वक बोले हे प्राण
प्रिये किस लिए रूठी हो?
केहि
हेतु रानि रिसानि परसत पानि पतिहि नेवारई।
मानहुँ सरोष भुअंग भामिनि बिषम भाँति निहारई।।
दोउ बासना रसना दसन बर मरम ठाहरु देखई।
तुलसी नृपति भवतब्यता बस काम कौतुक लेखई।।
महाराज दशरथ जैसे ही रानी को स्पर्श
करते हैं वह उनके हाथ को झटक कर हटा देती हैं और ऐसे देखती हैं मानो क्रोध में भरी
हुई नागिन क्रूर दृष्टि से देख रही हो। बाबा जी लिखते हैं मानो दो वरदानों की
वासनाएं उस नागिन की दो जीभ हैं और दोनों वरदान दांत हैं। वह काटने के लिए मर्म
स्थान देख रही है। राजा होनहार के वश इसे काम कौतुक मान रहे हैं, बार-बार
कहते हैं हे सुमुखि हे सुलोचिनी, हे पिक बचनी, हे गजगामिनी अपने क्रोध का कारण तो कहो । प्रिये किसने तेरा अहित किया?
किसे दो सिर हैं? किसे यम लेना चाहता है बताओ?
किस भूप को
को रंक समान करूँ,
किस रंक को भूप समान बनाऊँ।
मन चाही बात हँसकर मांग लो। मनोहर
शरीर पर वस्त्र धारण करके इस कुवेष का शीघ्र त्याग करो, रानी
वस्त्राभूषण पहन कर उत्तर देती है। महाराज आज तक आपने कुछ दिया है? जो आज देने के लिए कह रहे हैं। हमेशा देने के लिए बोलते बस रहे हैं।
महाराज दशरथ ने कहा कि अरे रानी बोलो आज जो तुम मांगोगी वह मैं तुमको दूंगा। तभी
कैकेयी को मंथरा की बात स्मरण हो आई की राम की शपथ दे देना तब वर मांगना।
तो कैकेयी ने कहा कि अरे महाराज मैं
जो मांगूंगी आप देंगे?
महाराज दशरथ ने कहा हां मागों क्या चाहिए? रानी
कैकेयी ने कहा की महाराज विचार कर लीजिए मैं कोई चना चबैना आपसे नहीं मांगूंगी?
तीसरी बार कैकेयी ने सत्य का वास्ता दिया है की महाराज आप राम की
शपथ खाकर बोलिए की वरदान देंगे। जैसे ही महाराज दशरथ ने सत्य की चुनौती सुनी कहने
लगे हे रानी तुम यह मत भूलो।
रघुकुल
रीति सदा चलि आई। प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई।।
रघुकुल में सदा से यही रीत चली आई है
की प्राण भले ही चले जाए पर वचन नहीं जाता। पृथ्वी सब कुछ सह लेती है लेकिन झूठ
व्यक्ति का भर नहीं सह पाती क्योंकि-
नहिं
असत्य सम पातक पुंजा।
असत्य से बढ़कर के कोई पाप नहीं है।
हे देवी मैं सत्य कहता हूं जो मांगोगी वह मैं तुमको दूंगा मागो क्या मांगती हो?
सज्जनो यहाँ राजा का मनोरथ ही सुन्दर
वन है,
सुख ही सुंदर पक्षियों का झुंड है, भीलनी जैसी
कैकई ने अपना बचन रूपी भयंकर बाज छोड़ दिया, बाज पक्षियों का
नाश करता है, कैकई के बचन राजा के सुख का नाश करेंगे। बाज दो
पंखयुक्त होते हैं। कैकई के दो वर युक्त हैं। अथवा दोनों वरदान बाज के दोनों नेत्र
हैं, अब वह बाज झपट पड़ा। अब कैकई पिक वचन वाली नहीं रही,
बाज बन गई। महाराज दशरथ के गले में हाथ डालकर कहने लगी प्राणनाथ!
देखिए दर्शन कीजिए वह महाराज दशरथ के प्राण लेने जा रही है और क्या कह रही है?
सुनहु
प्रानप्रिय भावत जी का। देहु एक बर भरतहि टीका।।
पहला वरदान भरत को अयोध्या का राज्य।
यह सुनते ही कांप गए महाराज विचार करने लगे अरे यह क्या हो गया है मेरी रानी को? फिर
मन में सोचे कि चलो मेरा राम तो पहले भी यह चाहता था कि भरत राजा बने आयोध्या का।
लेकिन महाराज यह सोचकर कांप रहें हैं कि यह दूसरा वरदान क्या मांगेगी? पहला वरदान इतना भयानक है तो दूसरे की कल्पना भी नहीं कर पा रहे हैं। रानी
दूसरा वरदान बोल दो? कैकेयी बोल पड़ी-
तापस
बेष बिसेषि उदासी। चौदह बरिस रामु बनबासी।।
राजा सुनकर सहम गये कुछ कहते न बना, उनका
रंग फीका हो गया, शरीर झुलस सा गया। वे सूख गये जैसे ताड़ के
वृक्ष पर बिजली गिरने से पूरा वृक्ष झुलस जाता है वहाँ राजा की 'भूप हिय शोकू' यह मन की दशा 'नहिं कछु कहि आवा' यह बचन की 'विवरन भयउ ' यह तन की दशा
हे । महाराज दशरथ कहने लगे की हे रानी पहले वरदान में मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
लेकिन दूसरा वरदान क्या तुम मजाक कर रही हो, अरे तुमको पता
नहीं है भरत और राम मेरी दो आंखें हैं मुझे अंधा मत करो रानी। मेरा राम तो पहले भी
चाहता था कि भरत ही अयोध्या का राजा बने। मैं तुम्हारा प्रथम वरदान पूरा कर दूंगा
लेकिन दूसरा वरदान तुम वापस ले लो। महाराज दशरथ बिलख बिलख कर रोने लगे। कहने लगे
क्या तुमको वह समय याद नहीं रहा रानी जब विश्वामित्र जी राम को मांग कर ले गए थे।
कैसे मैं राम के बिना एक-एक दिन उनके वियोग में छटपटाते हुए बिताये हैं।
रानी मैं राम के बिना अपने जीवन के
एक क्षण की भी कल्पना नहीं कर सकता। राम ही मेरा प्राण धन है रानी। हे रानी मेरे
राम से कभी कोई गलती नहीं होती फिर भी अगर उससे कोई अपराध बन गया हो तो राम के
बदले उसका पिता तुमसे क्षमा मांग रहा है। अयोध्या का नरेश तुमसे क्षमा मांग रहा
है।
जासु
स्वभाव अरिः अनुकूला।
जिसके स्वभाव से शत्रु भी उसके
अनुकूल हो जाते हैं,
वह अपने मां के कैसे प्रतिकूल हो सकता है? हे
रानी मेरे प्राण मत लो। राम को वन में मत भेजो, अरे तुम तो
उसकी मां हो इतनी कठोर कैसे हो सकती हो? दुश्मन भी राम की
बडाई करते हैं।
सज्जनो जब राम रावण
का युद्ध चल रहा था। उस समय रावण एक दिन अपने भवन में आकर रो रहा था, मंदोदरी
आकर देख लेती है रावण को रोते हुए तो कहने लगी हे नाथ आप क्यों रो रहे हैं?
क्या आप युद्ध से डर गए हैं? इसलिए रो रहे
हैं! रावण और जोर-जोर रोने लगा! बोला नहीं रानी मैं युद्ध से डर कर नहीं रो रहा
हूं। मंदोदरी ने कहा महाराज तो फिर रो क्यों रहे हो? रावण ने
कहा कि हे रानी मुझे राम की याद आ रही है। मंदोदरी यह सुन कर कांप गई कि आज तक
किसी की माने नहीं, किसी की सुने नहीं राम से बैर किया हट
करके और आज इनको राम की याद आ रही है।
मंदोदरी बोली महाराज अरे वह दुश्मन
है आपके शत्रु हैं और आप उन्हें याद कर रहे हैं। रावण बोला हां रानी मुझे राम की
याद आ रही है उसके स्वभाव की याद आ रही है। रानी जानती हो आज क्या हुआ? युद्ध
के मैदान में मेरा रथ जब टूट गयां मैं बाणों की चोट से लथपथ हो गया, लहूलुहान हो गया तो राम धीरे से मेरे पास आया और कहने लगा। रावण आज तू थक
गया भैया, अब आज तू चला जा विश्राम करने कल फिर आना तैयार
होकर के तब युद्ध किया जाएगा। रावण कहने लगा रानी ऐसा दुश्मन भी किसको मिल सकता
है। मैं तो यही प्रार्थना करता हूं हे भोलेनाथ अगर दुश्मन भी देना तो मेरे राम
जैसा दुश्मन देना।
महाराज दशरथ रोते बिलखते कह रहे हैं
की हे रानी तुम उस राम को वन में भेजना चाहती हो जिसकी दुश्मन भी प्रशंसा करते हैं? मैं
तुमसे क्षमा मांगता हूं रानी दूसरा वर अपना वापस ले लो। लेकिन कैकेयी नहीं मानी
कहने लगी।
होत
प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं।
मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं।।
सवेरा होते ही मुनि का भेष धारण कर
यदि राम वन को नहीं जाते तो हे राजन मेरा यह निश्चय समझ लीजिए कि मेरा मरना होगा
और आपका अपयश होगा। महाराज दशरथ सुनते ही कांप गए। कहने लगे मैं कितनी बड़ी
गलतफहमी मे था कि कैकेयी मुझे सबसे ज्यादा प्रेम करती है। ओ बैरिन, ओ
पापिन मैं अपनी सीधी साधी कौशल्या को क्या मुख दिखाऊंगा? आज
तक उसने मुझसे कुछ नहीं कहा कुछ नहीं मांगा मैं कैसे उससे कहूंगा कि मैं तेरे बेटे
राम को वन में भेज रहा हूं? और मेरा राम वह तो बड़ा सच्चा
सीधा सरल है मैं जानता हूं कि मेरे कहने पर वह है वन में तुरंत चला जाएगा। लेकिन
उसने यदि पूछ लिया कि पिताजी मेरा अपराध क्या है बता दीजिए ताकि वन में प्रायश्चित
कर सकूं तो मैं क्या करूंगा। हे सूर्य नारायण उदित मत होना अगर उदित हो गए तो
तीन-तीन विधवा बहू का मुंह देखोगे। इस प्रकार महाराज दशरथ चिल्ला चिल्ला कर रोते
रहे। हा राम हा राम! करते हुए निस्तेज होकर पृथ्वी पर गिर पड़े कहने लगे कोई जाकर
राम से कह दे कि वह अपने पिता की आज्ञा का पालन न करे वन में न जाए। पूरी रात
महाराज दशरथ हा राम- हा राम करते हुए बिता दिए।
बोलो राम राम राम, बोलो
राम राम राम।
बोलो
राम राम राम,
बोलो राम राम राम।
सारा जग है तुझमें समाया। सकल विश्व है तेरा बनाया।।2
बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम।
बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम।
सारे जगत में तेरी ही छाया। ब्रह्म भी तू ही तू ही है माया।।
बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम।
बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम।
कैकई ने कठोर कटु कहा मानो घाव में
विष दे रही है - राम-राम रटते हुए राजा विकल हैं मन में मनाते हैं कि सबेरा न हो ।
महाराज दशरथ अनुनय विनय करते रहे लेकिन एक नहीं सुना कैकेयी मां ने। अपने वचन पर
अपने वरदान पर अडिग रही। इधर अयोध्या के नागरिक इतने प्रसन्न हैं कि उनको नींद
नहीं आ रही। कल हम राम को राजा बना हुआ देखेंगे यह उत्साह सबके मन में भरा हुआ है।
बहुत प्रसन्नता में भी नींद नहीं आती है और बहुत दुख में भी नींद नहीं आती है।
सज्जनो अत्यधिक दुख में भी आंसू आते हैं और अत्यधिक प्रसन्नता में भी आंसू आते
हैं। लेकिन दोनों आंसू आंसू में अंतर होता है प्रसन्नता के आंसू में उत्साह होता
है और दुख के आंसू में बेदना होती है।
तेहिं
निसि नीद परी नहि काहू। राम दरस लालसा उछाहू।।
अयोध्या के नागरिक पुष्पों के हार
लेकर अयोध्या के राजभवन पर राजद्वार के पास पहुंच चुके हैं। महाराज दशरथ का उनका
दर्शन नहीं हो पा रहा है। इधर राजा को विलाप करते-करते सबेरा हो गया, द्वार
पर वीणा बजी शंख ध्वनि गवैया गुणगान करने लगे सुन-सुनकर राजा के हृदय में मानो बाण
लग रहे हैं।
द्वार
भीर सेवक सचिव, कहहिं उदित रवि देखि ।
जागेहु अजहुँ न अवधपति कारनु कवन विशेषि ॥
राज द्वार पर मंत्रियों और सेवकों के
भीड़ लगी है वह सब सूर्य को उदय हुआ देखकर कहते हैं कि ऐसा कौन सा विशेष कारण है
कि अवधपति दशरथ जी अभी तक नहीं जागे?
पछिले
पहर भूपु नित जागा। आजु हमहि बड़ अचरजु लागा।।
पिछले पहर महाराज सदा जग जाते हैं, हमको
बड़ा आश्चर्य हो रहा है, सुमंत्रजी आप जाकर जगाइये और
राजाज्ञा पाकर काम शुरू कीजिये । सुमंत्रजी उस घर में गये जहाँ महाराज और कैकई थीं
जय जीव कहकर माथा नवाया और बैठे राजा की दशा देखकर सूख गये । शोक से विकल थे
पृथ्वी पर पड़े हुए हैं जैसे कमल की जड़ उखाड़ दी गई हो। तब अशुभ से भरी हुई कैकई
बोली।
परी
न राजहिं नींद निशि, हेतु जान जगदीश ।
राम-राम रट भोर किय कहइ न मरम महीश ॥"
राजा को रात भर नींद नहीं आई इसका कारण जगदीश्वर ही जाने, इन्होंने राम राम रटकर सवेरा कर दिया। अतः रामजी के बुलाने में शीघ्रता करो जितनी देर होगी उतनी ही पीड़ा अधिक होगी, रामजी को साथ लेकर लौटने पर समाचार पूछना ।