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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-42 ram katha hindi me

bhagwat katha sikhe

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-42 ram katha hindi me

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-42   ram katha hindi me

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-42 ram katha hindi me

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-42 ram katha hindi me

बड़भागी बनु अवध अभागी। जो रघुबंसतिलक तुम्ह त्यागी।।

हे राघव वह वन बहुत भाग्यशाली है जिसे तुमने स्वीकार किया है और यह अवध अभागी है जिसे तुमने त्याग दिया है। आज अयोध्या का भाग्य फूट गया यह कहकर माता कौशल्या फूट-फूट कर रोने लगी हैं। प्रभु राम ने डाढस बंधाया मां बस 14 वर्ष की तो बात है, यह थोड़ा सा समय जल्द ही व्यतीत हो जाएगा। सज्जनो ये है प्रभु राघव की विशेषता। ऐसे चिकित्सक हैं मेरे प्रभु की बड़े से बड़े रोग को हल्का बती कर उसके दुख को कम करना चाहते हैं। माता कौशल्या कहती हैं पुत्र! यदि मैं कहूं कि मुझे भी साथ ले चलो तो तुम्हारे ह्रदय में संदेह होगा की माता इस बहाने मुझे रोकना चाहती है। इसलिए मैं यह भी नहीं कह सकती कि मुझे साथ में ले चलो। बस यही कहती हूं कि हे लाल इस 14 वर्ष की अवधि में तुम अपनी मां कौशल्या को मत भूल जाना।

बंधु माताओं यह है भारत की माता का हृदय। इतनी तेजस्विता, इतनी बलिदान की भावना, इतनी त्याग की भावना और कहीं नहीं पाई जा सकती यह केवल और केवल इस देश की इस भूमि की महिमा है। और यह दिव्यता क्यों ना हो, क्योंकि यह हमारे प्रभु राम की माँ हैं। स्वभाव सरल है। भारी धीर धारण कर बोलीं 'पिता की आज्ञा सब धर्मों का टीका है, तुमने राज्य का टीका छोड़कर धर्म का टीका स्वीकार किया। हे पुत्र राज्य देने को कहकर वन दे दिया। इसका मुझे दुःख नहीं है तुम्हारे बिना भरत को, महाराज को और प्रजा को प्रचंड क्लेश होगा । हे पुत्र तुम सभी को परम प्रिय हो प्राण के प्राण हो जीवन के जीवन हो, सो तुम कहते हो कि माँ मैं बन जाऊँ मैं हठ नहीं करती, मैं बलैँया लेती हूँ तुम माता का नाता मान मुझे भूल न जाना।

उस समय यह समाचार पाकर सीताजी व्याकुल हो उठीं आकर सास के चरणों की वंदना करके सिर नीचा किये हुए बैठ गयीं। प्राणनाथ बन को जाना चाहते हैं देखें किस सुकृत से इनका साथ होगा शरीर और प्राण दोनों के साथ होगा कि केवल प्राण से ही होगा सुंदर चरण के नख से पृथ्वी पर लिख रही हैं, सुंदर नेत्रों से आँसू बहाते हुए देखकर राम की माता बोलीं बेटा सुनो। मेरी सीता ने पलंग, पीढ़ा, और हिंडोला छोड़कर कठिन पृथ्वी पर पाँव रखा ही नहीं, दीये की बत्ती को बढ़ाने या टारने की बात नहीं कही किसी ने इसे। संजीवनी बूँटी की भाँति सावधानी से इसकी रक्षा करती चली आई। वही सीता अब साथ में बन में जाना चाहती है, हे रघुनाथ इसके लिये क्या आज्ञा देते हो?


राम जी सीता मैया को समझाने लगे की हे जानकी सुनो मैं अपने माता के प्राणों को तुम्हारे साड़ी के पल्लू में बांधकर जा रहा हूं 14 वर्ष के बाद लौट करके आऊंगा, मेरे माता के प्राणों को सुरक्षित रखना। और जब भी मेरी मां को मेरी याद आए तो मेरे बारे में अनेक चरित्र कहकर इनको धीरज धराना। और जानकी सुनो वन में जाने की ना सोचो वहां बड़ा भयानक घोर जंगल है, अनेकों प्रकार के हिंसक जीव वहां पर निवास करते हैं। ना तो रहने का कोई ठिकाना और ना ही खाने की कोई व्यवस्था। जेठ की कड़कती दोपहर, माघ की भयानक ठंड, सावन भादों की वर्षा यह सब तुमसे नहीं सहा जाएगा। इसलिए तुम आराम से यहीं माता के साथ रुको। जानकी जी के नेत्रों से जल की धारा चल पड़ी यह सुनते ही और वह कहने लगी की हे नाथ आप मुझे यह क्या समझा रहे हैं? हे रघुवर इस संसार में आपके अतिरिक्त मेरा कोई नहीं। आपके होने से सभी रिश्ते हैं। अगर आप ही वन को चले जाएंगे तो आपके बिना मेरे प्राण कभी नहीं रह सकते। राम ने सीता से कहा –

सह धर्मिणी शांत रहो घर में, बन जाने की क्यों तुम बात विचारी ।
पिता-माता की पूजा करो रुचि से, सर्वोपरि धर्म यही सुखकारी ॥
कुश कंटक तीक्ष्ण विछे मग में, चलना पड़ता नित ही पद चारी ।
फल मूल मिलैं जहाँ भोजन को, वह भी नहीं नित्य समै अनुसारी ॥
चलै शीतल वायु प्रचंड कभी, रवि आतप से तपता तन भारी ।
वृक केहरि व्याघ्र भुजंग तथा, रजनीचर खात फिरें नर-नारी ॥
मृग लोचनि भीरू स्वभाव से हो, किमि कानन कष्ट सहौ सुकुमारी |
सिखमानि हमारी रहो घर में, वन में दुःख पाओगी राजदुलारी ॥

हे सीते इसलिये अपना और मेरा भला चाहती हो तो मेरा बचन मानकर घर रहो, मेरा आदेश सास की सेवकाई के लिये है आदर के साथ सास-ससुर के चरणों की पूजा से बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं है। यह सुन सीता जी बोलीं। सुविधा के कारण मैं अपने प्राण धन को छोड़कर अयोध्या में रहूँ। सास ससुर की सेवा करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मैं जंगल इसलिए ना जाऊं कि वहां पर मुझे बहुत कष्ट होगा। जानकी जी कहने लगी हे नाथ सुनिए और सभी लोग सुन लें। हे भगवन यदि आपके बिना संसार के सारे सुख साधन मुझे मिल जाए तो वह मेरे लिए केवल दुखदाई ही होगा और जंगल में भी, कठिनाइयों में भी अगर मेरे प्रभु राम मेरे साथ होंगे तो मुझे वन में भी इंद्र के स्वर्ग से बढ़कर के मेरे लिए सुख होगा। श्री जानकी जी सास के पैर लगकर हांथ जोड़कर कहने लगी हे माता मेरी इस बड़ी भारी ठिठाई को क्षमा कीजिए। मुझे प्राणपति ने वहीं शिक्षा दी है जिससे मेरा परम हित हो। परंतु मैंने मन में समझ कर देख लिया कि पति के वियोग के समान जगत में कोई दुख नहीं है।

मातु पिता भगिनी प्रिय भाई। प्रिय परिवारु सुह्रद समुदाई।।
जहँ लगि नाथ नेह अरु नाते। पिय बिनु तियहि तरनिहु ते ताते।।

हे प्राणनाथ आपके बिना स्वर्ग भी मेरे लिए नर्क के समान है। माता-पिता, बहन, भाई, परिवार, सास ससुर, गुरुजन, स्वजन जहां तक जितने नाते हैं। पति के बिना स्त्री को सभी सूर्य से भी बढ़कर तपाने वाले हैं। शरीर, धन-घर, पृथ्वी, नगर और राज्य पति के बिना स्त्री के लिए है सब शोक समाज हैं। हे रघुकुल नाथ आप मुझे साथ ले लीजिए यहां ना छोड़िए आप तो अंतर्यामी हैं सब कुछ जानने वाले हैं। यदि आपने मुझे यहां छोड़ दिया तो जान लीजिए कि मेरे प्राण नहीं रहेंगे।

हे नाथ इस दासी को मत त्यागिये। छिन छिन में आपके चरण कमल को देखते रहने से मुझे मार्ग में चलने से थकावट ना होगी। हे प्रियतम मैं सभी प्रकार से आपकी सेवा करूंगी, आपके पैर धोकर पेड़ों की छाया में बैठकर मन में प्रसन्न होकर हवा करूंगी। भूमि पर घांस और पेड़ों के पत्ते बिछाकर यह दासी रात भर आपके चरण दबाएगी ऐसा कहकर सीता जी बहुत ही व्याकुल हो गईं। तब कृपालु श्री रामचंद्र जी ने कहा हे जानकी यह विसाद करने का अवसर नहीं है तुरंत वन गमन की तैयारी करो। भगवान श्री रामचंद्र और जानकी माता जी का आशीर्वाद लेते हैं। जाते-जाते माता बस यही कहती है बेटा जल्दी लौटकर के आना। हे विधाता फिर मैं कब अपने नेत्रों से इस मनोहर जोड़ी को देख पाऊंगी।

हे लाल रघुपति कहकर मैं फिर कब तुम्हें बुलाकर हृदय से लगाऊंगी यह बोलते बोलते माता कौशल्या अधीर हो जाती हैं। सज्जनों उस स्नेह और समय का वर्णन नहीं किया जा सकता। चलते समय माता जानकी जी सास के पांव छूती हुई यही कहती हैं कि हे माता मैं बड़ी ही अभागिन हूं आपकी सेवा करने के समय दैव ने मुझे वनवास दे दिया। कर्म की गति बड़ी कठिन है। बस अपने इस पुत्री पर कृपा हमेशा बना कर रखिएगा। माता कौशल्या सीता जी को बार-बार हृदय से लगती है और आशीर्वाद देती है की पुत्री जब तक गंगा जी और यमुना जी में जल की धारा है तब तक तुम्हारा सुहाग अचल रहे।
सज्जनों यहां जैसे ही लक्ष्मण जी ने समाचार पाया कि भगवान राघव वन को जा रहे हैं, व्याकुल होकर, उदास हो दौड़े दौड़े आए हैं।

समाचार जब लक्ष्मन पाये । व्याकुल विलख बदन उठि धाये ॥

मोकहुँ काह कहब रघुनाथा । रखहिं भवन कि लेंहहि साथा ||

सज्जनों लक्ष्मण जी का पूरा शरीर कांप रहै है। नेत्रों से आंसुओं की धारा चल रही है। उन्होंने बड़ी दृढ़ता से राम जी के चरण पकड़ लिए। रामजी ने भाई लक्ष्मण को चरण पकड़ते और हाथ जोड़े हुए देह गेह सब की उपेक्षा तृन के समान किये हुए देखा तो नीति में निपुण शील स्नेह सरलता और सुख के सागर कहने लगे कि हे तात! प्रेम के वश होकर धैर्य न छोड़ो। जो स्वभाव से माता-पिता गुरू और स्वामी की शिक्षा सिरोधार्य करते हैं उनका ही जन्म सुफल है। भरत शत्रुघ्न घर पर नहीं हैं। महाराज वृद्ध हैं, मेरे वन गमन से उनका मन बड़ा दुखी है। अगर इस अवस्था में मैं तुमको साथ लेकर के जाऊंगा भाई तो अयोध्या सभी प्रकार से अनाथ हो जाएगी।

इसलिए हे लक्ष्मण तुम यहीं रहो माता-पिता गुरु की सेवा करो। लक्ष्मण जी व्याकुल होकर राम जी के चरण पकड़ लिए और कहने लगे हे नाथ मैं तो आपका दास हूं आप स्वामी हैं अतः आप मुझे छोड़ ही दें तो मैं क्या कर सकता हूं? हे नाथ आप मेरा विश्वास करें मैं आपको छोड़कर गुरु, पिता, माता किसी को भी नहीं जानता।

गुर पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू।।
मोरें सबइ एक तुम्ह स्वामी। दीनबंधु उर अंतरजामी।।

लक्ष्मण जी ने कहा कि हे भगवन मैं किसी को नहीं जानता, हे स्वामी दीनबंधु उर प्रेरक मेरे तो सब कुछ आप ही हैं। करुणा सिंधु रामजी ने जाना कि यह सुबन्धु हैं। अत: व्याकुलता मिटाने के लिये अपने कलेजे से रामजी ने लगा लिया और बोले- हे भाई माता से आज्ञा' विदा माँग जल्दी आओ और बन चलो। प्रसन्न हो माता सुमित्रा के पास आए मानों अंधे को फिर से आँख मिल गई हों जाकर माता के चरणों में सिर नवाया, परंतु मन तो राम-जानकी के साथ था। मलिन मन देखकर माता ने पूछा तब लक्ष्मणजी ने सब कथा कह सुनाई, कठोर बचन सुनकर माता सहम गई। कुछ कहते सुनते न बना चारों ओर आग ही आग दिखाई पड़ी। (१) पति वियोग (२) पुत्र वियोग (३) राम-सीता वियोग (४) राज्यनाश । उनकी वही दशा हुई जो चारों ओरवन में आग देखकर मृगी की हो जाती है। लक्ष्मण जी ने कहा मां पिता की आज्ञा से प्रभु श्री राम, माता जानकी वन को जा रहे हैं और मां सुनो उनके साथ मैं भी जा रहा हूं। माता ने कहा तो फिर यहां तू क्यों आया है? लक्ष्मण जी ने कहा कि भगवान श्री रामचंद्र ने कहा है कि अपनी मां से अनुमति लेकर के आओ। सुनते ही सुमित्रा मां ने कहा कौन मां? किसकी मां? सुमित्रा मां बोली लक्ष्मण यह देह वाली मां है, कोई 60 वर्ष कोई 70 वर्ष कोई 100 वर्ष साथ देती है। यह धरोहर की मां है कोई वस्तु किसी के पास धरोहर के रूप में रख दी जाए तो उस पर उसका अधिकार नहीं होता है। केवल उसका संरक्षण करना उसका कर्तव्य होता है। तो मैं वही तेरी धरोहर वाली मां हूं, मैं तेरी मां नहीं हूं।
यह सुनकर लक्ष्मण जी को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह कहने लगे आप मेरी मां नहीं हैं? तो कौन है मां मेरी? कौन है मेरे पिता? तो सुमित्रा माता लक्ष्मण जी को वास्तविक माता-पिता का परिचय प्रदान कर रही हैं।

तात तुम्हारि मातु बैदेही। पिता रामु सब भाँति सनेही।।
अवध तहाँ जहँ राम निवासू। तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू।।

हे लक्ष्मण तेरे माता-पिता तो श्री सीताराम जी हैं। और सज्जनों वास्तविक माता-पिता से परिचय कराना ही सभी माता-पिता का धर्म है।
अवध तहाँ जहँ राम निवासू। इस चौपाइ के प्रथम चरण में 'बन' और 'वास' शब्द नहीं है' निवासू' शब्द है भाव यह कि जिस हृदय में सीता सहित रामजी दीर्घकाल तक सतत निवास करेंगे वहाँ ज्ञान-विज्ञान रूपी भानु आपसे ही उदय करेगा और अविद्या अज्ञान भ्रम संदेह रूपी अँधेरा नष्ट होकर वहाँ सुख का सुप्रकाश फैलेगा और वह हृदय पुरी अयोध्यापुरी बसेगी वहाँ अविद्या सूपर्णखा, राग-द्वेष खर दूषण, मोह रावण, अहंकार कुंभकरण, काम-इन्द्रजीत कोई कुछ न कर पायेगा। राम के यहाँ से चले जाने पर यहाँ का आनंद चला जायेगा और उसके वहाँ बसने से जंगल में आनंद मंगल होगा। और हे लक्ष्मण एक बात और सुनो? तुमको क्या लगता है कि कैकेयी के कारण राम वन में जा रहा है? लक्ष्मण जी ने कहा- मां बोल तो सब यही रहे हैं। तब सुमित्रा माता ने कहा नहीं लक्ष्मण। राम सिर्फ तुम्हारे कारण वन में जा रहे हैं।

तुम्हरे हि भाग्य राम वन जाहीं। दूसर हेतु तात कछु नाहीं।।

सुमित्रा माता लक्ष्मण जी को समझाना चाह रही हैं की श्री राम करुणा निधान हैं तू जानता नहीं है। तू शेषनाग का अवतार है धरती तेरे शीश पर है और धरती का भार पाप से भारी हो चुका है और तू उसे भार को धारण करने में अक्षम हो रहा है। तुझे धरती के भार को उठाने में कठिनाई हो रही है तो करुणा निधान प्रभु श्री राम तेरे सर के भार को हल्का करने के लिए ही वन में जा रहे हैं।

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