F राम कथा हिंदी में लिखी हुई-70 ramayan katha notes hindi me - bhagwat kathanak
राम कथा हिंदी में लिखी हुई-70 ramayan katha notes hindi me

bhagwat katha sikhe

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-70 ramayan katha notes hindi me

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-70 ramayan katha notes hindi me

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-70 ramayan katha notes hindi me

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-70 ramayan katha notes hindi me

सीता जी ने उठाकर हर्षित होकर उसे हाथ में ले लिया, अत्यंत सुंदर राम नाम से अंकित मनोहर अँगूठी को देख पहचानकर आश्चर्य से चकित, हर्ष तथा विषाद से हृदय में आकुल हो उठीं । यह यहाँ कैसे आ गई ? यह तो प्रभु के हाथ में थी मुंदरी मिलने का हर्ष, और यहाँ कैसे आई, इस बात का विस्मय। श्रीरघुनाथ जी अजेय हैं, उन्हें कौन जीत सकता है, और माया से ऐसी अंगूठी बनाई नहीं जा सकती, सीता मन में अनेक विचार करने लगीं। तब हनुमानजी मधुर बचन बोले जो सीता को ही सुनाई पड़े, रामचन्द्र जी के गुणों का वर्णन हनुमानजी करने लगे, उनके गुण वर्णन मात्र से परिताप की शान्ति होती है।

लागी सुनै श्रवन मन लाई। आदिहु ते सब कथा सुनाई।।

रामजी के जन्मोत्सव से प्रभु द्वारा मुद्रिका देने तक की सारी कथा सुनाई, अपने प्रभु का परम उदार चरित सुनकर माता सब दुःख भूल गईं और कहने लगीं जिसने कानों के लिये अमृत के समान कथा कही है हे भाई वह प्रकट क्यों नहीं होता ? तब हनुमानजी पास चले गये। बानर रूप देखकर मुँह फेर कर बैठ गयीं, मन में विस्मय हुआ कि बंदर मनुष्य की बोली कैसे बोलता है? निश्चय यह रावण है जो फिर मुझे दुःख देने आया है। अथवा-

एक बार बिलोकि मम ओरा"

इस अभिलाषा की पूर्ति हेतु आया है। तब हनुमानजी कहने लगे-

राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की।।
यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी।।

हे माता मैं करुणानिधान की सपथ खाकर सत्य कहता हूँ, हे माता इस अँगूठी को जो श्रीराम ने निशानी हेतु भेजी है मैं ही लाया हूँ। तब सीता ने पूछा कि नर और बानर का साथ कैसे हुआ? इस पर हनुमानजी ने 'मारुति मिलन प्रसंग, पुनि सुग्रीव मिताई, और बालि प्राण कर भंग" ये प्रसंग सब कहकर सुनाये। कवि के प्रेम युक्त बचन सुनकर मन में विश्वास उपजा कि ये मनसा वाचा कर्मणा राम जी का दास है सप्रेम बचन से‘बचसा’ सपथ से'मनसा' अँगूठी देने से 'कर्मणा' । अर्थात् समझ लिया कि यह कृपासिंधु का परम प्रेम पात्र है। बोली हे तात मैं तो विरह समुद्र में डूब रही थी तुम मेरे लिये जहाज हो गये, मैं बलिहारी जाती हूँ अब छोटे भाई सहित खरारी की कुशल सुनाओ, हनुमान बोले-

मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता।।
जनि जननी मानहु जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना।।

माता सीता बोलीं-आपके पास क्या प्रमाण है कि प्रभु का प्रेम मुझसे दूना है? हनुमान जी बोले- हाँ है प्रमाण क्यों नहीं देखिये। आपने पर्वत पर पट फेंके वह सुग्रीव ने लाकर रामजी को दिये, प्रभु रो पड़े और उसे बार-बार अपने हृदय से लगाकर अत्यंत शोक किया। रामजी ने वहाँ दो काम किये, आपका वस्त्र पाया तो हृदय से लगाया, और अत्यन्त शोक किया, और मैं प्रभु की अंगूठी लाया जिसको पाकर और पहचानकर तथा यह जानकर कि रामजी अजेय हैं, माया से ऐसी मुद्रिका रची नहीं जा सकती फिर भी आपने उसे एक बार भी हृदय से नहीं लगाया बल्कि अकुलानी हो गयीं इसी से माँ मैं कहता हूँ कि रामजी का प्रेम आपके प्रेम से दूना है।

माता जानकी दुखी होकर कहने लगी हे पुत्र क्या स्वामी ने मुझ दासी को भुला दिया जो अब तक मुझे लेने नहीं आए? हनुमान जी ने कहा हे माता मैं आपको अभी यहां से लिवा जाऊं पर श्री रामचंद्र जी की आज्ञा नहीं है।

कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं।।

हे जननी आप कुछ दिन धीरज धारण करें श्री रामचंद्र जी वानरों सहित आएंगे और राक्षसों को मार कर आपको ले जाएंगे। ऋषि मुनि लोग तीनों लोकों में उनके सुयश का गान करेंगे। सीताजी ने हनुमान से पूछा क्या सब बंदर तुम्हारे जैसे ही हैं? राक्षस तो अति भट बलवान हैं यह मेरे हृदय में बड़ा भारी संदेह है। यह सुनकर हनुमानजी ने अपनी देह प्रकट की-

कनक भूधरा कार शरीरा । समर भयंकर अति बल धीरा ॥
सीता मन भरोस तब भयऊ । पुनि लघुरूप पवनसुत लयऊ ॥

और कहने लगे हम पेड़ की डाल पर रहने वाले मृग हैं, हमें विशाल बल बुद्धि नहीं होती। परंतु प्रभु के प्रताप से सर्पगण गरुड़ के भक्ष्य हैं परंतु प्रभु के प्रताप के योग से मुझमें इतना सामर्थ्य आ गया है कि अपनी जाति में औरों से छोटा होता हुआ भी राक्षसों का नाश कर सकता हूँ। भक्ति, प्रताप, तेज और बल से सनी हुई हनुमानजी की वाणी सुनकर सीताजी के मन में संतोष हुआ, रामप्रिय जानकर आशीर्वाद दिया।

अजर अमर गुण निधि सुत होहू । करहु बहुत रघुनायक होहू ॥

सुत सम्बोधन करके बेटा मान लिया । सज्जनों इस पूरे प्रसंग में एकादश रुद्रावतार हनुमानजी ने भगवती सीता के लिये ७ सात बार माता और ४ बार जननी कुल ११ बार सम्बोधित किया है। हनुमान जी बोले- माँ सुनो! यहाँ सुंदर फल देखकर मुझे अत्यंत भूख लगी है। सीता ने कहा- बेटा बड़े सुभट राक्षस इसकी रखवाली करते हैं पुन: हनुमानजी ने कहा आप सुख मानें तो इनका भय मुझे कुछ भी नहीं है, कपि को बुद्धि और बल में निपुण देखकर जानकी ने कहा जाओ और रघुपति के चरणों को हृदय में धारण करके मीठे फल खाओ।

सीताजी को सिर नवाकर हनुमानजी बाग में घुस गये फल खाये और वृक्ष तोड़ने लगे, वहाँ पर बहुत से भट रखवाले जो थे उनमें से कुछ को मार डाला और कुछ ने जाकर रावण दरबार में पुकार की । हे नाथ! एक भारी बन्दर आया है उसने अशोक वाटिका उजाड़ डाली, फल खाये और वृक्षों को उखाड़ डाला और राक्षसों को मसल-मसल कर पृथ्वी पर फेंक दिया सुनकर रावण ने नाना प्रकार के भट भेजे, उन्हें देख हनुमानजी गर्जे, सब राक्षसों को मारकर कुछ अधमरे पुकार करते हुए भाग खड़े हुए, फिर रावण ने अक्षयकुमार भेजा, वह असंख्य सुभटों को लेकर चला उसे देख हनुमानजी ने पेड़ की चोट से उसे मार दिया । महाघोर गर्जना की जिससे रावण तक शब्द पहुँच जाय-

कछु मारेसि कछु मर्देसि, कछु मिलि एसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे, प्रभु मर्कट बल भूरि ॥

पहले आते ही सरदार अक्ष को मार दिया। अब सेना की ओर झुके तो कुछ को मार डाला, कुछ को मसल डाला, कुछ को धूल में मिला दिया, उनके अवयवों का भी पता न चला, अपार सुभट आये थे पर यहाँ आकर कुछ हो गये । चार बार कुछ शब्द का प्रयोग है इससे सिद्ध होता है कि रावण की सेना एक चौथाई मारी गयी, जो वहाँ आए थे उनमें से एक चौथाई मर्दे गये, एक चौथाई धूल में मिल गये और एक चौथाई भाग निकले। मारा पेड़ से, मर्दा शरीर से और धूल में मिलाया हाथ से, किसी का सामर्थ्य नहीं कि रावण से जाकर कहे कि अक्ष मारे गये, अत: बचे खुचे ने जाकर पुकार लगाई कि बंदर बलवान हैं इसका अर्थ यही है कि अक्षय कुमार मार डाले गये। पुत्र का वध सुनते ही रावण क्रोधित हो बलवान मेघनाद को भेजा, कहा उसे मार न डालना, उसे बाँधकर लाना देखा जाय कि वह कैसा और कहाँ का है।

इन्द्र को जीतने वाला अतुल योधा चला भाई का मरना सुन क्रुद्ध हो उठा, हनुमान ने देखा कि दारून भट आ गया सो कटकटाए गर्जे और उसकी ओर दौड़े और एक बड़ा भारी पेड़ उखाड़कर उससे लंकापति के बेटे का रथ तोड़ डाला। उसके साथ भी महाभट थे उन्हें पकड़-पकड़ अपने शरीर से मर्दन करने लगे, उन सबों को मारकर मेघनाद से भिड़ गये मानो दो गजराज भिड़ गये हों, मेघनाद को एक जोर का घूँसा मारकर एक पेड़ पर जा बैठे। उसे एक क्षण के लिये मूर्छा आ गई फिर उठकर मेघनाद ने बहुत सी माया की पर प्रभंजन वायु के पुत्र जीते नहीं जा सके तब-

ब्रह्म अस्त्र ते साँधा, कपि मन कीन्ह विचार ।
जो न ब्रह्म सर मानहुँ, महिमा मिटइ अपार ॥

अतः बँध गये, वह मेघनाद नागपाश से बाँध कर ले गया। क्योंकि ब्रह्मास्त्र से मूर्छित होकर गिर गये थे, यहाँ शिवजी भवानी को फिर सावधान करते हैं कहते हैं हे भवानी सुनो ! जिसका नाम जपकर ज्ञानी भवबंधन को काट डालते हैं उनका दूत कहीं बंधन में आ सकता है? प्रभु के कार्य हेतु रावण के पास जाने के लिये स्वयं अपने को बँधा लिया ।

रावण- प्रबोध प्रसंग

बंदर का बँधा जाना सुन राक्षस तमाशा देखने सभा में आ गये, हनुमान ने दशासन की सभा देखी, वहाँ देवता, दिकपाल हाथ जोड़े बड़ी नम्रता से भय सहित सब रावण की भौंह ताक रहे हैं, पर हनुमान डरे नहीं, नि:संक ही रहे। रावण ने हनुमान से कहा तूने राक्षसों को किस अपराध से मारा?

रे सठ बतला तुझे प्राण की बाधा नहीं है, हनुमान बोले- हे रावण सुन- जिसका बल पाकर माया सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समूहों को रचना करती है, जिसके बल से ब्रह्मा, विष्णु महेश सृष्टि का सर्जन, पालन, संहार करते हैं जो बल से सहस्त्र मुख वाले शेषजी पर्वत और बन के सहित समस्त ब्रह्माण्ड को सिर पर धारण करते हैं। जो देवताओं की रक्षा करने वाला अनेक प्रकार के शरीरों को धारण करता है। जो तुमसे सठों को सिखावन देने वाला है। जिसने खर दूषन त्रिसरा बाली का बध किया-

जाके बल लवलेश ते, जितेउ चराचर झारि ।
तासु दूत मैं जाकरि, हरि आनेहु प्रिय नारि ।।

उन्हीं के बल का लव ब्रह्मा, शिवजी में हैं जिन्होंने तुम्हें वरदान दिया है "मैं ब्रह्मा मिलि तेहि वर दीन्हा" और उनके बल का लेश तुम्हारे में है इसलिये लवलेश कहा, ब्रह्मा, शिव में लवलेश का प्रमाण-

"जेहि सुख सुधा सिंधु सीकर ते शिव विरंचि प्रभुताई॥”

उस लवलेश बल से तुमने चराचर जीत लिया, जिसकी प्रिय स्त्री को हरण करके लाए हो उन्हीं का मैं दूत हूँ। मैंने तुम्हारी प्रभुता केवल कान से ही नहीं सुनी है मेरी व्यक्तिगत जानकारी है, सहस्त्रार्जुन से लड़ाई ठनी थी क्या जीत गये? लड़ाई ठान देना ही तुम्हारी प्रभुता है, यह भी यश हुआ कि रावण बाली से लड़ गये, छ: महीने तक बगल में पड़े रहे, भावकि तुम्हें बलाबल का परिज्ञान नहीं है, भला आज तक कोई योद्धा प्रतिद्विन्दी की कोख तले रहा हो यह यश अकेले तुमने पाया है।

अत्यन्त भूख में फल तोड़कर खा लेना अपराध नहीं है, भूख लगी थी फल खाये बानरी स्वभाव से वृक्ष तोड़े, तुम्हारे निशाचर कुमार्गगामी हैं, डाँटा भी नहीं सीधे मारना शुरू कर दिया, आप तो महिष, मानषु, धेनु खा जाते हैं मुझे फल खाने पर ही मारने लगे। मुझ शस्त्रविहीन पर अस्त्र-शस्त्र से प्रहार करने लगे, आश्चर्य। मैंने भी उनको मारा, देह तो सबको परमप्रिय है, जिसने मुझे मारा, उसे मैंने मारा, मैं निरपराध हूँ आप प्रभु हैं, वेदों के भाष्यकार हैं स्वयं वेद कहता है।

"योऽस्मान धूर्त यति तंवयंधूर्तयामः"

जो हमें मारता है उसे हम मारते हैं। तुम्हारे बेटे मेघनाद ने न्याय की अपेक्षा करके मुझे बाँध कर अपराध किया है, मुझे बँध जाने में लज्जा नहीं है क्योंकि लज्जा तो जुगुप्सित कर्म करने से होती है स्वामी के कार्य सम्पादन के प्रयत्न में बाँधा जाना शोभा है। मैं नागपाश के बंधन में नहीं हूँ, स्वामी का कार्य करना चाहता हूँ इसीलिये बँधा हुआ आया हूँ-दूसरे उपाय से तुम्हारे तक पहुँच शायद न होती।

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-70 ramayan katha notes hindi me

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3