F राम कथा हिंदी में लिखी हुई-77 ramayan kathanak notes pdf - bhagwat kathanak
राम कथा हिंदी में लिखी हुई-77 ramayan kathanak notes pdf

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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-77 ramayan kathanak notes pdf

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-77 ramayan kathanak notes pdf

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-77 ramayan kathanak notes pdf

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-77 ramayan kathanak notes pdf

सज्जनों अंगद ने नाना प्रकार की नीति कही, पर उसकी मृत्यु निकट थी उसने एक न मानी, शत्रु के मद का मंथन करके प्रभु का सुयश सुनाकर अंगद चले आये। वाली के पुत्र बलपुंज अंगद ने प्रसन्न होकर श्री राम के चरण कमलों को पकड़ा। संध्या समय रावण विलखकर महल में आये तब मंदोदरी ने उस राक्षस को 'चौथी बार' समझाकर कहा- हे कंत! मन में समझकर कुमति को छोड़ दो तुम्हारे और रघुवीर के बीच की लड़ाई शोभा नहीं देती

लाँघी गई न आपसे, लक्ष्मण की धनुरेख ।
अब सुत बध लंका दहन नित्य रही हूँ देख ॥

ऐसा तुम्हारा पुरुषार्थ है। सूर्य के साथ खद्योत का युद्ध कैसा? क्या तुम उन्हें युद्ध में जीत लोगे जिनके दूत की ऐसी करणी है, खेल में ही समुद्र लाँघकर कपि केसरी बेडर चला आया । रखवारों को मार बन को उजाड़ डाला । तुम्हारे आँख के सामने अक्षय कुमार को मार डाला, लंका को जला छार कर दिया तब तुम्हारे बल का अभिमान कहाँ रह गया ?

एक पुत्र प्रशस्त को बालि कुमार मार गया, उसका पैर तक कोई उठा न सका, अब झूठी डींग न हाँको । मेरा कहा कुछ मन में विचारो विराध अमर था, खरदूषण तुम्हारे समान बलवान थे सो उन्होंने खेल में ही सबको मार गिराया। सभा के बीच में ही अंगद ने तुम्हारे बल को मथ डाला जैसे हाथियों के झुंड में सिंह। अंगद और हनुमान जिसके सेवक हैं उनका पुरुषार्थ तुम देख ही चुके हो, ये रण में बड़े कुशल अत्यंत वीर बाँके हैं फिर उनके स्वामी के रण कौशल का तो कहना ही क्या है।

तुमने रामजी से विरोध किया, कालवश हो जाने से मन में ज्ञान उत्पन्न नहीं हो रहा है, काल किसी को लाठी लेकर नहीं मारता वह धर्म, बल, बुद्धि और विचार को हरण कर लेता है, हे स्वामी! जिसके निकट काल आता है उसे तुम्हारी ही भाँति भ्रम हो जाता है । बाण के समान स्त्री के बचन सुनकर रावण सबेरा होते ही सभा में चला गया, अति अभिमान से सब भय भूल गया और सिंहासन पर फूलकर जा बैठा।

इधर राम जी की संपूर्ण सेना लंका नगरी के चारों तरफ पहुंच गई, पूरी लंका नगरी को घेर लिया। लंका में भारी कोलाहल हो गया, अत्यंत अहंकारी रावण ने सुना, बंदर काल की प्रेरणा से यहाँ आ गये हैं मेरे राक्षस भूखे हैं, घर बैठे ब्रह्मा ने आहार भेज दिया। योद्धाओं चारों दिशाओं में जाकर बंदरों को पकड़-पकड़ कर खा जाओ वे सभी परिधि, शूल, कृपाण, परशु और गिरखंड लेकर दौड़ पड़े। राक्षस बलवीर रण धीर हैं अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित हैं, दुर्ग के कँगूरों पर चढ़े हुए हैं और वानर अस्त्रहीन शस्त्रहीन दुर्ग के नीचे खड़े हैं यह विषम स्थिति इन बंदर - भालुओं की है, बानरी सेना की जब ऐसी स्थिति राक्षसों ने देखी तो उतर कर लड़ने का साहस हुआ रावण के कथानुसार बाज की भाँति झपटे तो पर बंदरों को देख ऐसे ठंडे पड़े कि उनकी ओर देखते नहीं बनता, पर फिर भी उधर से रावण और इधर से राम की दोहाई देते हुए जय-जय कार करके लड़ाई प्रारम्भ हो गई। कुछ ही देर में बंदरों का पराक्रम देखकर राक्षस गण भागने लगे।

रोगी, लड़के, स्त्रियाँ रो रही हैं और सब मिलकर रावण को गाली देने लगे कि राज्य करते हुए यह मृत्यु को आह्वान लाया, अपने दल का भागना सुनकर रावण बिगड़ा तो भागते हए योद्धा लौट पड़े। उनसे रावण ने कहा जो भी लड़ाई से भागेगा उसे मैं स्वयं मार दूँगा, अतः वे प्राणों का लोभ छोड़ परिधि और त्रिशूलों से मारकर भालू बंदरों को व्याकुल कर दिया, भय से आतुर बंदर भागने लगे और अंगद, हनुमान कहाँ हैं? बलवान नल नील और द्विबिद कहाँ हैं? ऐसा कहने लगे।

बहुत भीषण युद्ध हुआ भगवान श्री राम की वानर सेना और राक्षसों में दोनों तरफ के कई योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए। रावण का एक बलशाली पुत्र मेघनाथ वह अपने पिता से आज्ञा लेकर के युद्ध भूमि पर आता है।

मेघनाद युद्ध

मेघनाद वाणों की घोर वर्षा करता है, यह देख सभी बानर दल उधर ही आ जाते हैं।

सो कपि भालु न रन में देखा । कीन्हींसि जेहि न प्रान अवसेषा ॥

तब हनुमानजी ने एक बड़ा भारी पर्वत मेघनाद पर फेंक दिया, पहाड़ आते देख वह आकाश में चला गया पर रथ, सारथी व घोड़े समाप्त हो गये, हनुमान बार-बार ललकारते हैं पर वह मर्म जानता है इसलिये निकट नहीं आता। वहीं आकाश से नाना प्रकार की माया करने लगा, जिसकी प्रबल माया के विवस शिव विरंचि तथा सभी छोटे-बड़े हैं उसे मंदबुद्धि निशाचर अपनी आसुरी माया दिखला रहा है। उसकी माया से बंदर तो घबड़ाये। यह देख श्रीरामजी ने एक ही बाण से सब माया काट दी और बानर भालुओं को कृपादृष्टि से देखा जिससे वे इतने उत्साहित हो गये कि वे रोके नहीं रुकते थे तब लक्ष्मणजी ने राम से कहा-

मेघनाद खल प्रबल अति, विकल किये कपि भालु।
रण हित आज्ञा दीजिये, राघव दीनदयालु।।

अंगदादि बानरों के साथ अत्यंत क्रुद्ध होकर लक्ष्मणजी धनुषबाण हाथ में लिये चले। लक्ष्मण मेघनाद का घोर युद्ध होता है लक्ष्मण मेघनाद को रथ से नीचे गिरा देते हैं और उस पर ऐसा प्रहार किया कि उसमें प्राण मात्र शेष रह गया।

रावन सुत निज मन अनुमाना। संकठ भयउ हरिहि मम प्राना।।
बीरघातिनी छाड़िसि साँगी। तेज पुंज लछिमन उर लागी।।
मुरुछा भई सक्ति के लागें। तब चलि गयउ निकट भय त्यागें।।

तब उसने वीरघातिनी शक्ति लक्ष्मण जी पर चलादी वह तेज की पुंज थी । वह शक्ति लक्ष्मण के हृदय में लगी जिससे लक्ष्मण मूर्च्छित हो गये, तब निकट आया, वह जानता था कि लक्ष्मण अजेय हैं, वीर घातिनी शक्ति भी इनका घात नहीं कर सकी अत: मूर्च्छा टूटने से पहले इन्हें लंका में ले जाकर बंदी कर लेना चाहिए, अत: उठाने लगा पर नहीं उठा सका।

मेघनाद सम कोटि सत, जोधा रहे उठाय।
जगदाधार शेल किमि, न उठय चले खिसियाय ॥

पहले अकेले ने उठाना चाहा नहीं उठने पर अनेकों योद्धा सहायता में लग गये पर लक्ष्मणजी को हिला तक नहीं सके, लक्ष्मणजी जगदाधार साक्षात शेष हैं। अनंत हैं उठ नहीं सकते, शांत पदार्थ ही हिल डोल सकता है, लक्ष्मणजी अवतार अवस्था में भी स्वरूप में ही स्थित हैं।

संध्या होते ही दोनों सेनाएँ लौटीं तो अपनी-अपनी सेना को सँभालने लगे, व्यापक ब्रह्म अजेय सम्पूर्ण भुवनों के ईश्वर करुणाकर श्रीराम ने पूछा कि लक्ष्मण कहाँ हैं? तब तक हनुमानजी उन्हें ले आये। भाई को देखकर प्रभु श्री रघुनाथ जी बहुत ही दुखी हो गए।

लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप

सब वानर सेनापति इकट्ठे हुए तथा लक्ष्मण को बचाने के उपाय सोचने लगे। हनुमान जी सुषेण वैद्य को घर सहित उठाकर के ले आए। हे रघुनाथ लक्ष्मण जी के प्राण केवल संजीवनी बूटी ही बचा सकती है।

किसी हेतु यदि हो गया, रघुवर प्रातः काल।
तो फिर लक्ष्मण का कठिन, बचना दीन दयाल।।

सुषेण वैद्य के परामर्श पर हनुमान जी हिमालय से संजीवनी बूटी लाने के लिए चल पड़े। लक्ष्मण को गोद में लिटाकर राम व्याकुलता से हनुमान जी की प्रतीक्षा करने लगे।

अर्ध राति गई कपि नहिं आयउ । राम उठाइ अनुज उर लायउ ।।

सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ। बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ ||

मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता ।।

सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुनि मम बच बिकलाई ।।

जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू । पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू ।।

लक्ष्मण जी को निहारते हुए श्रीराम जी सामान्य मनुष्य के समान विलाप करते हुए कहने लगे कि आधी रात बीत गई है। अभी तक हनुमान नहीं आए। उन्होंने लक्ष्मण को उठाकर सीने से लगाया। वे बोले कि " तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख पाते थे। तुम्हारा स्वभाव सदैव कोमल व विनम्र रहा। मेरे लिए ही तुमने माता-पिता को त्याग दिया और जंगल में ठंड, धूप, तूफ़ान आदि को सहन किया। हे भाई! अब वह प्रेम कहाँ है ?

तुम मेरी व्याकुलतापूर्ण बातों को सुनकर उठते क्यों नहीं। यदि मैं यह जानता होता कि वन में तुम्हारा वियोग सहना पड़ेगा तो मैं पिता के वचनों को भी नहीं मानता और वन में नहीं आता ।

बंधु माताओं लक्ष्मण जी ने श्री राम जी के लिए अपने माता-पिता को ही नहीं, अयोध्या का सुख-वैभव त्याग दिया। ऐसा प्रेम दुर्लभ होता है कि भाई के लिए दूसरा भाई अपने सब सुख त्याग देता है। राम जी भी लक्ष्मण की मूर्च्छा मात्र से व्याकुल हो जाते हैं।

सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा ।।
अस बिचारि जिय जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता ।।

सज्जनों श्रीराम जी व्याकुल होकर कहते हैं कि संसार में पुत्र, धन, स्त्री, भवन और परिवार बार-बार मिल जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं, किंतु संसार में सगा भाई दुबारा नहीं मिलता। यह विचार करके, हे तात, हे लक्ष्मण! तुम जाग जाओ।

जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु पनि करिबर कर हीना ।।

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही । जौं जड़ दैव जिआवै मोही ।।

जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई । नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई ।।

जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी, मणि के बिना साँप, सूँड के बिना हाथी अत्यंत दीन-हीन हो जाते हैं, उसी प्रकार तुम्हारे बिना मेरा जीवन व्यर्थ है । हे भाई! तुम्हारे बिना यदि भाग्य मुझे जीवित रखेगा तो मेरा जीवन भी पंखविहीन पक्षी, मणि विहीन साँप और सूँड़ विहीन हाथी के समान हो जाएगा। राम जी चिंता करते हैं कि वे कौन-सा मुँह लेकर अयोध्या जाएँगे? लोग कहेंगे कि पत्नी के लिए प्रिय भाई को खो दिया। मैं पत्नी के खोने का अपयश सहन कर लेता, लेकिन भाई का खोना नहीं सहन कर पाऊंगा।

लक्ष्मण जी के होश में न आने पर राम जी विलाप करते हुए कहते हैं, हे तात! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र हो तथा उसके प्राणों के आधार हो । उसने सब प्रकार से सुख देने वाला तथा परम हितकारी जानकर ही तुम्हें मुझे सौंपा था। अब उन्हें मैं क्या उत्तर दूँगा ? तुम स्वयं उठकर मुझे कुछ बताओ। इस प्रकार राम जी अनेक प्रकार से विलाप किया और उनके कमल रूपी सुंदर नेत्रों से आँसू बहने लगे।

शिवजी कहते हैं- हे उमा ! श्री रामचंद्र जी अद्वितीय और अखंड हैं। भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान ने मनुष्य की दशा दिखाई है। प्रभु का विलाप सुनकर वानरों के समूह व्याकुल हो गए।

इसी बीच में एक रावण का भेदिया ने बानरी सेना में प्रविष्ट होकर ये सब बातें देखीं सुनीं, रावण के यहाँ जाकर सब भेद बतला दिया कि सूर्योदय से पहले यदि संजीवनी बूँटी मिल जाये तो लक्ष्मण जी सकते हैं।

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