श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कंध भाग-3/ bhagwat mahapuran katha hindi PDF

भागवत कथा, पंचम स्कंध भाग-3
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा Bhagwat Katha story in hindi
नरकों का वर्णन-
राजा परीक्षित श्री सुकदेव जी से पूछते हैं, इस भूमंडल का विस्तार कहां तक और कितना है तथा इसका क्या लक्षण है | श्री सुकदेव जी कहते हैं परीक्षित इस भूमंडल में नवद्वीप हैं जिस देश में हम रहते हैं वह जंबूद्वीप है इस जम्मूद्वीप में भी नव-नव हजार योजन विस्तार वाले-इलावर्त,वभद्रास्व,हरिवर्ष, केतुमाल,रम्यक, हिरण्यमय, उत्तरकुरु, किम पुरुष और भारत नामक नववर्ष है | 

इलावर्त वर्ष में भगवान शंकर मां पार्वती के संग निवास करते हैं वहां जो भी पुरुष जाता है वह स्त्री बन जाता है | भद्रास्व वर्ष में भगवान हयग्रीव के ग्रुप में | हरिवर्ष में नरसिंह रूप में |केतुमाल वर्ष में कामदेव रूप में | रम्यक वर्ष में मत्स्य रूप में | हिरण्यमय वर्ष में कच्छप रूप में |

उत्तर कुरु वर्ष में वराह रूप में | किमपुरुष वर्ष में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के रूप में और भारत वर्ष में भगवान नर नारायण की रूप में निवास करते हैं |

इस भारतवर्ष में भी-  मलय, वयनाक, श्रीशैल,चित्रकूट और गोवर्धन नामक अनेकों पर्वत तथा गंगा,गोदावरी,नर्मदा,कावेरी,सरयू आदि अनेकों पुण्य पवित्र नदियां विराजमान हैं, जिनके दर्शन स्पर्श और स्नान से अनेकों आप ताप संताप निवृत्त हो जाते हैं | इस भारत वर्ष की महिमा का गान करते हुए देवता कहते हैं---
( 5.19.21 )
अहो इस बात वर्ष में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों ने ऐसा कौन सा पवित्र साधन किया है ,जिसके कारण उनका जन्म इस भारत भूमि में हुआ है |
न यत्र वैकुण्ठकथा सुधा पगा
        न साधवो भागवतास्तदाश्रयः |
न यत्र यज्ञेशमखा महोत्सवा:
        सुरेशलोकोपिन वै स सेव्यताम् ||
( 5.19.24 )
जहां भगवान श्री हरि की अमृतमयी कथा सरिता प्रवाहित नहीं होती जहां भगवान के भक्त साधु महात्मा निवास नहीं करते जहां यज्ञ आदि महोत्सव नहीं होते यदि देवलोक भी हो तो वहां नहीं निवास करना चाहिए , यदि स्वर्ग का सुख भोगने के पश्चात हमारे कुछ शेष पुण्य बचे हो तो हम भगवान से प्रार्थना करते हैं हमारा जन्म भारत भूमि में हो , जिससे हम भगवान का गुणगान कर सकें उन्हें प्राप्त कर सकें |
कवि गया प्रसाद जी कहते हैं----
वृक्षों में चंदन बड़ा और नागों में जैसे शेष |
नदियों में गंगा बड़ी और देशों में भारत देश ||
       ( बोलिए भारत भूमि की जय )
राजा परीक्षित श्री सुकदेव जी से पूछते हैं- प्रभो नरक नाम के लोक इसी त्रिलोकी में है अथवा इसके बाहर हैं | उनकी कितनी संख्या है और किस प्रकार की यातना दी जाती है वहां |

श्री सुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित नरक नाम के लोक इसी त्रिलोकी में है दक्षिण दिशा की ओर है उनकी संख्या विशेष रूप से 28 बताई गई है | नाम है -- तामृष्य,अन्धतामृष्य,रौरव,महारौरव,कुम्भीपाक,कालसूत्र,असिपत्रवन,सूकरमुख,अन्घकूप,कृमिभोजन,सन्दस्य,तप्तसूर्मी,वज्रकण्टक,(शाल्मली) वैतरणी,पुयोद,प्राणरोध,विशषन,लालाभक्ष,सारमेयादन,अवीचि और अयः पान इनके शिवा क्षारकर्दम,रक्षोगण भोजन,शूलप्रोत,दन्तशूक,अवटनिरोधन,पर्यावर्तन और सचीमुख  |ये सब मिलकर 28 नरक हैं | 

जो मनुष्य दूसरों का धन संतान और स्त्रियों का हरण करता है वह तामृष्य नामक नरक में जाता है वहां यमदूत इसे भूखा प्यासा रखते हैं कोड़ों से पीटते हैं और अनेकों प्रकार के भय दिखाते हैं |

जो मनुष्य मांस भक्षण करता है पशु पक्षियों का वध करता है वह कुंभीपाक नरक में जाते हैं वहां यमदूत खोलते हुए तेल में डालकर पका देते हैं |

जो मनुष्य अपने माता पिता की सेवा नहीं करते ब्राह्मण और वेद का विरोध करते हैं वे कालसूत्र नामक नरक में में जाते हैं,वहां यमदूत इसे तांबे की तपी हुई भूमि पर छोड़ देते हैं जहां यह पीड़ा के मारे अनेकों बार बेहोश हो जाता है |

जो मनुष्य वैदिक मार्ग को छोड़कर पाखंडपूर्ण धर्मो का आश्रय लेते हैं भूत-प्रेतादिकों की सिद्धि करते हैं और वे असिपत्र वन नामक नरक में जाते हैं वहां यम के दूत इन्हें  कोडो से पीटते हैं उससे बचने के लिए जब वह भागते हैं तो तालवन के तलवार के समान पैने पत्तों से इनके अंग छिन्न-भिन्न हो जाते हैं, कट जाते हैं |

जो मनुष्य शराब पीते हैं इसके अलावा गुटका तंबाकू बीड़ी सिगरेट आदि मद्य पदार्थों का सेवन करते हैं वे अयः पान नरक में जाते हैं वहां यम के दूत इसे पृथ्वी में गिरा देते हैं इसकी छाती में पैर रखकर गलाया हुआ गरम लोहा इसके मुंह में भर देते हैं तब यह पीडा के कारण चिल्लाता है और बेहोश हो जाता है |

परीक्षित इस प्रकार नरकों में अनेकों यातनाओं को भोग मनुष्य पुनः अपने कर्मों के अनुसार पृथ्वी में जन्म लेता है,यदि पूण्य करता है तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है पाप करता है तो नर्क की प्राप्ति होती है |

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भागवत महापुराण,पंचम स्कंध संपूर्णम्

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