भागवत कथा, दशम स्कंध,भाग-1श्रीमद्भागवत महापुराण कथा हिन्दी

श्रीमद्भागवत महापुराण कथा हिन्दीदशम स्कंध,भाग-1
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा Bhagwat Katha story in hindi
इतर राग विस्मरण पूर्वकं भगवता शक्तिं निरोध:
सांसारिक पदार्थों की विस्मृति और भगवान में आसक्ति भगवान में प्रेम उत्पन्न होना ही निरोध है |जब श्री सुकदेव जी ने भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र का अत्यंत संक्षेप में वर्णन किया तो राजा परीक्षित कहते हैं-

कथितो वंशविस्तारो भवता सोमसूर्ययो: । 
राज्ञां चोभयवंश्यानां चरितं परमाद् भुतम्।। १०/१/१

दशम स्कंध को निरोध कहते हैं |

गुरुदेव आपने चंद्रमा और सूर्य वंश में उत्पन्न होने वाले राजाओं के वंश का विस्तारपूर्वक वर्णन किया और जब मेरे आराध्य श्री कृष्ण चंद्र भगवान के चरित्र का वर्णन आया तो उसे अपने अपन संक्षेप में वर्णन किया इसलिए आप मुझे यदुवंश में उत्पन्न होने वाले भगवान श्री कृष्ण का विस्तारपूर्वक वर्णन सुनाइए |

आपने जब रोहिणी के पुत्रों का नाम लिया तो उसमें बलराम जी का नाम था और जब देवकी के पुत्रों की गणना की तो उसमें भी आपने बलराम जी के नाम का वर्णन किया तो दूसरा शरीर धारण किए बिना कोई भी पुत्र दो माताओं का कैसे हो सकता है | भगवान श्री कृष्ण गोकुल, वृंदावन ,मथुरा और द्वारिका में कितने वर्ष रहे उन्होंने कौन-कौन सी लीलाएं कि यह सब बताने की कृपा करें |

तथा यह भी बताएं भगवान के कितने विवाह हुए | श्री सुकदेव जी कहते हैं परिक्षित तीन दिन व्यतीत हो गए आज चतुर्थ दिवस है कुछ खाया नहीं कुछ खा लो अथवा जल ही पी लो |राजा परीक्षित कहते हैं-
नैषातिदु: सहा क्षुन्मां त्यक्तोदमपि बाधते। 
पिबन्तं त्वन्मुखाम्भोजच्युतं  हरिकथामृतम्।। १०/१/१३

गुरुदेव आप मुझे जो कथामृत का पान करा रहे हैं इससे मुझे भूख-प्यास बिल्कुल नहीं लग रही और गुरुदेव प्यास के कारण मुझसे एक ऋषि का अपराध हुआ था इसलिए मुझे भूख प्यास बिल्कुल नहीं सता रही | आप मुझे भगवान श्री कृष्ण चंद्र की कथा सुनाइए |श्री शुकदेव जी कहते हैं-

वासुदेव कथा प्रश्न: पुरूषांस्त्रीन् पुनाति हि। 
वक्तारं पृच्छकं श्रोतृंस्तत्पाद सलिलं यथा।। १०/१/१६
परीक्षित भगवान श्री कृष्ण के विषय में किया गया प्रश्न वक्ता, पूछने वाला और श्रोता तीनों को पवित्र कर देता है | परिक्षित जब अनेकों दैत्य राजाओं का वेश धारण कर पृथ्वी को आक्रांत करने लगे तो पृथ्वी देवी दुखी हो ब्रह्मा जी के शरण में आयी, ब्रह्मा जी पृथ्वी और देवताओं को लेकर छीर सागर के तट में पहुंचे वहां पुरुष सूक्त से भगवान की स्तुति की और उस  समय समय आकाशवाणी हुई |

जिसे ब्रह्मा जी ने सुना और देवताओं से कहा देवताओं भगवान को पृथ्वी के कष्ट का पहले से ही ज्ञान है | वे सीघ्र ही पृथ्वी का भार उतारने के लिए यदुवंश में अवतार ग्रहण करेंगे |

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इसलिए आप लोग भी उनकी लीला में सहायक बन ब्रज में जन्म ग्रहण करो ,इस प्रकार देवता और पृथ्वी को आश्वासन दे ब्रह्मा जी अपने धाम चले आए |परीक्षित- यहां शूरसेन के पुत्र वसुदेव का विवाह कंस की चचेरी बहन देवकी से हुआ, वह देवकी से अत्याधिक स्नेह करता था जब विदाई का समय आया तो उसने देवकी और वसुदेव को रथ में विठाला और स्वयं रथ हाकने लगा | इसी समय आकाशवाणी हुई-

अस्यास्त्वामष्टमो गर्भो हन्ता यां वहसेऽबुध: ।। १०/१/३४
अरे मूर्ख कंस जिस देवकी को तू रथ में बिठाकर बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी  की आठवीं संतान से तेरी मृत्यु होगी | कंस ने जैसे ही सुना घोड़ों की लगाम छोड़ दी तलवार निकाली देवकी के केस पकड़ लिए और उसे मारने का प्रयास करने लगा, वसुदेव जी ने कंस को रोकते हुए कहा- राजकुमार कंस तुम भोज वंश के यश को बढ़ाने वाले हो  यह तुम्हारी बहन स्त्री है और विवाह का पवित्र समय है इसलिए तुम इसे छोड़ दो-
मृत्युर्जन्मवतां वीर देहेन सह जायते। 
अद्य वाब्दशतान्ते वा मृत्युर्वै प्राणिनां ध्रुव:।। १०/१/३८
और कंस प्राणी के उत्पन्न होते ही उसके साथ हि उसकी मृत्यु भी उत्पन्न हो जाती है, वह आज हो अथवा सौ वर्ष बाद हो , मरना सबको है |

हितोपदेश मे कहा गया है|

आयु: कर्मञ्चवितंञ्च विद्या निधन मेव च । 
पञ्चैत्यान्यपि सृज्यन्ति गर्भस्थस्यैव  देहिन:।। 
आयु, कर्म, धन, विद्या और मृत्यु इन पांचों का निर्माण गर्भ में ही हो जाता है और कंस तुम्हें इस देवकी से तो कोई भय नहीं है ,इसकी संतान से है इसलिए जब इसे संतान होगी उसे मैं तुम्हें सौंप दूंगा | कंस वसुदेव जी के इन वचनों को सुना उसने देवकी-वसुदेव को छोड़ दिया |

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समय आने पर देवकी से कीर्तिमान नामक पहला पुत्र हुआ ,प्रतिज्ञानुसार वसुदेव जी उस पुत्र को कंस के पास लाए छोटे से निर्मल बालक को कंस ने देखा तो ममता जाग गई कहा वसुदेव जी मुझे इससे कोई भय नहीं है, इसकी आठवीं संतान से भय है|इसलिए आप इसे ले जाइए वसदेव जी उस बालक लेकर महल में आ गए, परंतु कंस पर विश्वास है नहीं हुआ क्योंकि कंस अत्यंत दुष्ट था |

यहां देवर्षि नारद आए उन्होंने एक कमल कि आठ पंखुड़ी का पुष्प उठाया और कंस से कहा- कंस बताओ इसमें से पहली और आठवी पंखुड़ी कौन सी है| उसको देखकर कंस भ्रम में पड़ गया किसे पहली कहूं किसे आठवीं कहूं | देवर्षि नारद ने कहा कंस देवता बहुत चालाक हैं |

वह सब तुम्हें मारने का षड्यंत्र कर रहे हैं ,आठवां किसे सिद्ध कर देंगे तुम पता नहीं कर सकते | कंस ने जब यह सुना देवकी वसुदेव को कारागार में डाल दिया, उग्रसेन ने विरोध किया तो उन्हें भी कारागार में डाल दिया और देवकी वस्तु के जो भी पुत्र होते हैं कंस उन्हें मार डालता है |

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छः पुत्र मारे गए जब सातवें पुत्र के रूप में, शेष अवतार बलराम जी आए, उस समय भगवान ने योग माया को आदेश दिया।
गच्छ देवि व्रजं भद्रे गोप गोभिरलड़्कृतम्। 
रोहिणी वसुदेवस्य भार्याऽऽस्ते नन्दगोकुले।। १०/२/७
हे देवी तुम गाय और गोपों से अलंकृत नंद बाबा की गोकुल में जाओ वहां वसुदेव की पत्नी रोहिणी निवास करती है, तुम देवकी के गर्भ को ले जाकर रोहणी के गर्भ मे स्थापित कर दो | देवकी  के पुत्र के रूप में मैं अवतार धारण करूंगा और तुम यशोदा के गर्भ से उत्पन्न होओ,  पृथ्वी में मनुष्य धूप दीप नैवेद्य से तुम्हारा पूजन करेंगे तुम सब की मनोकामना को पूर्ण करने वाली होगी |

दुर्गा,भद्रकाली, विजया,वैष्णवी, चंडिका और शारदा आदि तुम्हारे अनेकों नाम एवं अनेकों स्थान होंगे |भगवान के इस प्रकार आदेश देने पर योग माया ने देवकी के गर्भ को ले जाकर रोहणी के गर्भ में स्थापित कर दिया |

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यहां जैसे पूर्व दिशा पूर्ण चंद्र को धारण करती है उसी प्रकार देव रूपिणी देवकी ने भगवान श्रीकृष्ण को अपने गर्भ में धारण किया| उनके प्रकाश से कारागार प्रकाशित हो गया कंस ने जब यह देखा समझ गया अब मुझे मारने वाला उत्पन्न होने वाला है | उसने कारागार का पहरा बढ़वा दिया |

कंस ने देवर्षि नारद से सुना था कि उसे मारने बाला कृष्ण वर्ण का होगा कंस चलते-फिरते अपनी काली परछाई को देखता तो डर जाता, सोने के लिए आंख बंद करता तो काला अंधेरा दिखता तो उठ कर बैठ जाता, भोजन में काला जीरा दिख जाता तो उसे देखकर भी डर जाता , कहीं यह कृष्ण तो नहीं है |

आसीन: संविशंस्तिष्ठन् भुञ्जान: पर्यटन् महीम् । 
चिन्तयानो हृषीकेशमपश्यत् तन्मयं जगत् ।। १०/२/२४
उठते बैठते ,चलते फिरते उसे सब जगह श्री कृष्ण का दर्शन होने लगा, इसी समय रात्रि में ब्रह्मा आदि देवता आये गर्भ की स्तुति करने के लिए-
सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितं च सत्ये । 
सत्यस्य सत्यमृत सत्य नेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नार्तिहरे:।। १०/२/२६
देवता कहते हैं- प्रभु आपका संकल्प सत्य है ,देवता बड़े स्वार्थी हैं वह भगवान को याद दिला रहे हैं, प्रभु आपने प्रतिज्ञा की थी जन्म लेकर मैं कंस को मारूंगा इसलिए आप अपनी प्रतिज्ञा को भूलना मत |सत्यपरं- सत्य ही आपकी प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन है |

त्रिसत्यं- जगत की उत्पत्ति के पूर्व, प्रलय के पश्चात और जगत की स्थिति इन तीनों कालों में आप ही सत्य रूप हैं | पृथ्वी,जल,तेज,वायु और आकाश में दिखाई देने वाले सत्य रूप जो पंचमहाभूत हैं,उनके कारण भी आप ही हैं |आप उनमें अंतर्यामी रूप से विराजमान हैं | आप सत्य के भी सत्य हैं | सत्य स्वरूप परमात्मा की हम शरण ग्रहण करते हैं |

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इस प्रकार गर्भ की स्तुति कर देवकी और वसुदेव से कहा-
दिष्टयाम्ब ते कुक्षिगत: पर: पुमा- नंशेन साक्षाद्  भगवान्  भवाय न:। 
मा भूद् भयं भोजपतेर्मुमूषर्षो- र्गोप्ता यूदूनां सविता  तवात्मज:।। १०/२/ ४१
हे माता जी आपके घर में साक्षात भगवान श्री हरि पधारे हैं इसलिए आप कंस से बिल्कुल भी मत डरिएगा, क्योंकि यह कंस तो थोड़े ही दिनों का मेहमान है | आपका पुत्र सदा यदुवंशियों की रक्षा करेगा | इस प्रकार सात्वना प्रदान कर देवता वहां से चले आये यहां-
अथ सर्व गुणोपेतः कालः परमशोभनः |
यरर्ह्येवाजनजन्मर्क्षम शान्तर्क्षग्रहतारकम् ||
जब परम शोभायमान-सुहावना समय आया ग्रह नक्षत्र तारे शांत हो गए, पवित्र भाद्रपद का महीना आया , भगवान का सानिध्य प्रदान करने वाला परम शोभायमान समय आया रोहिणी नक्षत्र था | दिशाएं प्रसन्न हो गई क्यों प्रसन्न हो गई क्योंकि दिशाओं के स्वामी इंद्र,अग्नि, नैऋत्य ,वायव्य और अनंत इन्हें कंस ने अपने कारागार में डाल रखा था |

दिशाओं ने सोचा श्री कृष्ण का जन्म होने वाला है, वे कंस को मार देंगे जिससे हमारे स्वामी मुक्त हो जाएंगे ,इसलिए दिशाएं प्रसन्न हो गयी | पृथ्वी मंगलमय हो गई भगवान की दो पत्नियां हैं एक श्रीदेवी दूसरी भूदेवी भगवान सदा श्रीदेवी माता लक्ष्मी के साथ निवास करते हैं, आज अपनी दूसरी पत्नी भूदेवी के  यहां आ रहे हैं इसलिए पृथ्वी मंगलमय हो गई |

नदियों का जल निर्मल हो गया नदियों ने सोचा हमारे संबंधी आने वाले हैं, हमारी बहिन यमुना का विवाह इनसे होगा इसलिए  यह प्रसन्न हो गई | शीतल मंद वायु बहने लगी वायु देवता ने सोचा राम जन्म में मेरे पुत्र हनुमान ने भगवान की सेवा की थी अब मैं कृष्ण जन्म में स्वयं इनकी सेवा करूंगा, इसलिए शीतल वाली बहने लगी |

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ब्राह्मणों के हवन की अग्नि जो कंस के अत्याचारों से बुझ गई थी, वह स्वतः जल उठी आकाश में दुन्दुभियां बजने लगी | किन्नर और गंधर्व गान करने लगे | सिद्ध चारण स्तुति करने लगे | बादल गरजने के साथ मन्द-मन्द वृष्टि करने लगे |

जब भगवान श्री हरि सागर में निवास करते तो मेघ समुद्र के पास जाते कहते हमें भगवान का दर्शन करा दो समुद्र अपनी तरंगों से मेघों को ढकेल देता और कहता पहले परोपकार करो हमारे खारे जल को मीठा बनाकर बरसा करो तब भगवान का दर्शन कराएंगे |

आज भगवान श्री कृष्ण ने मेघों का कृष्ण वर्ण स्वीकार किया, इसलिए मेंघ मन्द-मन्द गर्जना कर रहे हैं | अथवा कहीं जोर की ध्वनि सुनकर कंस जाग न जाए इसलिए मन्द मन्द गर्जना कर रहे हैं | उस समय बुधवार का दिन था, अष्टमी तिथि में रात्रि में बारह बजे|

या निषा सर्वभूतानां तस्या जागर्ति संयमी|
जिस रात्रि में विषयी पुरुष सोते हैं, उस रात्रि में योगी पुरुष जागकर भजन करते हैं | आज भगवान श्री कृष्ण ने विषयी पुरुषों को जगाने के लिए देव रूपिणी देवकी के गर्भ से अवतार ग्रहण करते हैं |

बोलिये बालकृष्ण भगवान की जय

तमद्भुतमं बालकमम्बुजेक्षणं चतुर्भुजं शंखगदार्युदायुधम् |
श्रीवत्सलक्ष्मं गलशोभि कौस्तुभं पीताम्बरं सान्द्रपयोद सौभगम् |

वसुदेव जी ने अपने सामने एक अद्भुत बालक को देखा-

बालेसु-बालेसु कानि ब्रम्हाण्डानि यस्य एव भूतं- उस बालक के रोम रोम में अनेकों ब्रह्मांड समाए हुए हैं इसलिए यह अद्भुत बालक है| अथवा-

बालः कं ब्रम्हा यस्य- ब्रम्हा जी जिसके बालक हैं, इसलिए यह अद्भुत बालक है | यह बालक होने पर भी साक्षात ब्रह्म है इसलिए यह अद्भुत बालक है |

अम्बुजायाम् ईक्षणे यस्य- अम्बुजेक्षणम् - जन्म लेते ही अंबुजा लक्ष्मी को ढूंढ रहा है इसलिए यह अद्भुत बालक है | इसकी चार भुजाएं हैं जिसमें इन्होंने शंख,चक्र,गदा और पद्म धारण कर रखा है | ह्रदय में श्रीवत्स की सुनहरी रेखा विद्यमान है ,गले में कौस्तुभ मणि शोभायमान हो रही है और मेघ के सामान श्यामल शरीर में पितांबर फहरा रहा है , ऐसे अद्भुत बालक को वसुदेव जी ने देखा तो कहा-
विदितोसि भवान् साक्षात् पुरुषः प्रकृतेः परः 
केवलानुभवानन्दस्वरूपः सर्वबुद्धिदृक |

श्रीमद्भागवत महापुराण कथा हिन्दी

प्रभु- मैं आपको जान गया आप प्रकति से परे परम पुरुष परमात्मा हैं, केवल अनुभव और आनंद स्वरूप है तथा समस्त सिद्धियों के एकमात्र साक्षी आप हि हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूं | माता देवकी ने कहा प्रभु आप अपने इस स्वरूप को छिपा लीजिए क्योंकि कंस बहुत दुष्ट है यदि उसे यह मालूम हुआ कि आपका जन्म मेरे गर्भ से हुआ है तो वह आपको मार देगा |

 भगवान ने कहा माता जी  पूर्व जन्म में आप प्रश्मि थी और वसुदेव जी सुतपा थे |आपने घोर तपस्या कर मुझे प्राप्त किया और मुझसे मेरे ही समान पुत्र की याचना की जगत में मेरे समान कोई दूसरा नहीं है | इसलिए तीन जन्मो तक आपका पुत्र होने का मैंने वरदान दिया- पहले जन्म में मैं प्रश्मिगर्भ के नाम से विख्यात हुआ |

दूसरे जन्म में जब आप कश्यप और अदिति थे तब मैं उपेंद्र के रूप में आपके यहां उत्तीर्ण हुआ और अब मैं कृष्ण के रूप में उत्पन्न हुआ हूं |पिछले जन्म का स्मरण  दिलाने के लिए मैंने यह रूप धारण किया है |
 बोलिये बालकृष्ण भगवान की जय

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https://www.bhagwatkathanak.in/p/blog-page_24.html

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नोट - अगर आपने भागवत कथानक के सभी भागों पढ़  लिया है तो  इसे भी पढ़े यह भागवत कथा हमारी दूसरी वेबसाइट पर अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी है 

श्री भागवत महापुराण की हिंदी सप्ताहिक कथा जोकि 335 अध्याय ओं का स्वरूप है अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका है और वह क्रमशः भागो के द्वारा आप पढ़ सकते हैं कुल 27 भागों में है सभी भागों का लिंक नीचे दिया गया है आप उस पर क्लिक करके क्रमशः संपूर्ण कथा को पढ़कर आनंद ले सकते हैं |

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