भागवत कथा दशम स्कंध,भाग-2

श्रीमद्भागवत महापुराण कथा हिन्दी 
दशम स्कंध,भाग-2
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा Bhagwat Katha story in hindi
यदि कंशाद विभेशित्वम् तरही गाम गोकुलं मया|
यदि आपको कंस का भय है तो आप मुझे मैया यशोदा के पास गोकुल में छोड़ दो और उनकी कन्या को अपने साथ ले आइए ऐसा कह भगवान ने प्राकृत शिशु का रूप धारण कर लिया |

वसुदेव जी ने जैसे ही श्रीकृष्ण को शिरोधार्य- सिर में धारण किया सारे बंधन खुल गए , द्वारपाल सो गए | वर्षा के कारण यमुना का जल बढ़ा हुआ था जैसे यमुना ने भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों का स्पर्श किया | जैसे समुद्र ने भगवान श्रीराम को मार्ग दे दिया था उसी प्रकार यमुना ने वसुदेव जी को मार्ग दे दिया |

वसदेव जी ने कन्हैया को मैया यशोदा के पास सुलाया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए जैसे ही कारागार में पहुंचे समस्त बंधन पहले के ही समान बंध गए कन्या ने जोर से रोना प्रारंभ किया |

जिससे सारे द्वारपाल जाग गए दौड़े-दौड़े कंस के पास आए कहा महाराज है गयो- है गयो, कंस  गिरता पड़ता कारागार में आया देवकी के हांथ से उस कन्या को छीन लिया देवकी ने बहुत अनुनय विनय किया भैया आपने मेरे छह पुत्रों को मार दिया अंतिम यह कन्या है इसे छोड़ दो ,कंस ने देवकी की एक बात नहीं मानी , उस कन्या को उठाकर जैसे वह पृथ्वी पर पटकने लगा वह कन्या हाथ से छूटकर आकाश में चली गई अष्टभुजी देवी के रूप में प्रकट हो गई |

बोलिए योगमाया देवी की जय

कहा मूर्ख कंस मुझे मारने से तुझे क्या मिलेगा तुझे मारने वाले ने तो कहीं और जन्म ले लिया, अब तू व्यर्थ में निरपराध बालकों की हत्या मत कर |
नन्द गोपगृहे जाता यशोदा गर्भ सम्भवा । 
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचल निवासिनी ।।
ऐसा आदेश दे वह कन्या विंध्यांचल पर्वत में चली आई और विंध्यवासिनी देवी के रूप में विख्यात हुई |

 बोलिए विंध्यवासिनी मैया की जय

हे देवकी और वसुदेव मैंने देवताओं की बात में विश्वास कर आपके निरपराध बालकों की हत्या कर दी आप मेरे इस अपराध को क्षमा कीजिए | देवकी और वसुदेव ने कंस को क्षमा कर दिया, रात्रि में कंस ने पूतना, सकटासुर आदि दैत्यों को बुलाया और उन्हें आदेश दिया आज से दस दिन के जो बालक हैं उन सब को मार डालो | कंस अनेकों प्रकार की योजना बनाता है, उसे योजना बनाने दीजिए और हम सभी गोकुल की ओर चलते हैं- ( नंदोत्सव )
नन्दस्त्वात्मज उत्पन्ने जाताह्लदो महामना:। 
आहूय विप्रान् वेदज्ञान् स्नात: शुचिरलड़्कृत:।। १०/५/१
नंद बाबा की जब चतुर्थ अवस्था आ गई और उनकी कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने ब्रजवासी ब्राह्मणों से अनुष्ठान कराया ब्रजवासी ब्राह्मण दिन में अनुष्ठान करते रात्रि में भांग खाकर रबड़ी छानते और भगवान से प्रार्थना करते प्रभु नंद बाबा को एक प्यारो सो लाला दे दो |

भगवान ने ब्राह्मणों की प्रार्थना को सुना, जब यशोदा मैया गर्भवती थी तो नंदबाबा उनकी सेवा के लिए अपनी बहन सुनंदा को ले आए | जब प्रसव का समय निकट आया, नंद बाबा यमुना के किनारे बैठ कर जप करने लगे |
अभी तो भयो नाय जाने कब होएगो-अभी तो भयो नाय जाने कब होएगो |

इसी समय सुनंदा बुआ की आंख खुली और उन्होंने यशोदा के पास एक नीलमणि से बालक को देखा पड़े हुए | तो यशोदा को जगाया और दौड़ी-दौड़ी नंद बाबा के पास आई कहा बाबा है गयो- है गयो | बाबा ने कहा कहा भयो,  सुनंदा बुआ ने कहा ऐसे ना बताऊंगी पहले नव लखा हार लूंगी |

बाबा ने कहा दियो , सुनंदा ने कहा बाबा लाला भयो, प्रसन्नता के कारण नंदबाबा यमुना जी में छलांग लगा दी | सुनंदा बुआ ने थाली पीट पीट कर सारे ब्रज वासियों को जगा दिया |

नंद बाबा ने ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराया , जात कर्म संस्कार करवाया और ब्राह्मणों को दो लाख गाय देने का संकल्प किया | सभी बृजवासी गोप गोपियां सज धज कर नंद बाबा के प्रांगण में आई | वहां दिव्य नंदोत्सव होने लगा,  गोपियां सज धज कर आती और कन्हैया को आशीर्वाद देती-

 चिरं पाहीति बालिके- यशोदा तेरे लाला चिरंजीवी होवे | जब से कन्हैया का जन्म ब्रज में हुआ ब्रज सब प्रकार से रिद्धि-सिद्धिओं से युक्त हो गया | ब्रज की भूमि माता लक्ष्मी की क्रीड़ा स्थली बन गई|

एक संत कहते हैं- जब कन्हैया का जन्म हुआ तो नंद बाबा इतने प्रसन्न हो गए कि वे अपने भवन के चारों द्वार खोल दिए और खजाना लूटाने लगे | पूर्व द्वार वाले चांदी लूट कर जा रहे थे तो सोना लिए हुए पश्चिम द्वार वाले मिले उन्होंने कहा तुम यह क्या चांदी ले जा रहे हो पश्चिम द्वार में सोने की लूट मची है |

चांदी वाले ने चांदी वही फेंकी और पश्चिम द्वार की ओर दौड़े इसी समय उत्तर द्वार से हीरा लिए हुये लोग हुए स्वर्ण वालों को मिले कहा तुम लोग यह स्वर्ण कहां लिए जा रहे हो उत्तर द्वार की ओर जाओ वहां हीरे जवाहरात मिल रहे हैं, स्वर्ण वालों ने सोना वही फेंका और उत्तर द्वार की ओर दौड़े | नंद बाबा ने इतना धन लुटाया की संपूर्ण ब्रज वसुंधरा दिव्य आभूषणों से ढक गई |

इस प्रकार नंदोत्सव हो रहा था कुछ दिनों के पश्चात नंदबाबा गोकुल की रक्षा का भार अन्य लोगों को सौंप | स्वयं कंस का वार्षिक कर चुकाने मथुरा चले आए, जब उन्होंने कंस का वार्षिक कर दे दिया और वसुदेव जी को मालुम हुआ कि नन्दबाबा आए हैं |

तो वे नंद बाबा से मिलने आए नंद बाबा ने जैसे ही वसुदेव जी को देखा ह्रदय से लगा लिया दोनों ने एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछी | वसुदेव जी ने कहा भैया नंद कंस का वार्षिक कर दे दिया | अब आपको अधिक देर मथुरा में नहीं ठहरना चाहिए | क्योंकि आजकल गोकुल में अनेकों उत्पात  हो रहे हैं |

नंद बाबा ने जैसे यह सुना छकडा,जूता लिए और गोकुल की यात्रा की | मार्ग में विचार करने लगे वसुदेव जी का कहा हुआ झूठा नहीं हो सकता |अतः उत्पाद की आशंका से भगवान का ध्यान करने लगे |
कंसेन प्रहिता घोरा पूतना बालघातिनी। 
शिशूंश्चचार निघ्नन्ती पुरग्राम व्रजादिषु।। १०/६/२
यहां कंस की भेजी हुई पूतना नाम की राक्षसी जो छोटे छोटे बालकों को मारती हुई नगर, गांव मे घूम रही थी | आकाश मार्ग से गोकुल मे उसने उत्सव होते हुए देखा तो | माया से सुंदर स्त्री का रूप धारण कर वहां पहुंच गई | वह इतनी सुंदर थी कि ब्रज वासियों ने उसे देखा तो समझा साक्षात लक्ष्मी कन्हैया का दर्शन करने आई हैं |

किसी ने भी उसे रोका नहीं पूतना पालने में पड़े हुए कन्हैया को गोद में उठा लिया | कन्हैया ने जैसे ही पूतना को देखा अपने दोनों नेत्र बंद कर लिए |

नेत्र क्यों बंद किए- इस विषय में विद्वानों ने अनेकों मत दियें हैं |
एक विद्वान कहते हैं- पूतना ने माया से सुंदर स्त्री का रूप धारण कर रखा था|कन्हैया के सामने माया टिकती नहीं उन्होंने सोचा यदि मैंने नेत्र खोल दिए तो इसका राक्षसी रूप प्रकट हो जाएगा ,जिसे देखकर मइया डर जाएंगी |इसलिए नेत्र बंद कर लिए |

अथवा- कन्हैया ने सोचा मेरी प्राप्ति विना किसी साधन के नहीं हो सकती, इसने इस जन्म मे तो नहीं लेकिन पूर्व जन्म मे जरूर कोई साधन किए होंगे उसे देखने के लिए कन्हैया नेत्र बंद करलिया|
एक विद्वान कहते हैं- कन्हैया ने सोचा मैं गोकुल में माखन मिश्री खाने आया था परंतु यहां तो छठवें दिन ही विष पीने का अवसर आ गया , विष पीने का अभ्यास मेरा नहीं भगवान भोले बाबा का है, इसलिए भगवान शंकर का ध्यान करने के लिए नेत्र बंद कर लिए कि प्रभु आप आइए और बिष पी लीजिए फिर बाद में बचा हुआ दूध मैं पी लूंगा |
किसी ने कहा- भगवान विराट के दाया नेत्र सूर्य और बाया नेत्र चांद है , मानो सूर्य चंद्र प्रभु से कह रहे हैं प्रभु आप इस राक्षसी को  कोई गति दे दो परंतु हम इसे अपने मार्ग से नहीं जाने देंगे |

अथवा- कन्हैया ने सोचा इसने बाहर से माता का रूप धारण कर रखा है , परंतु इसके ह्रदय में क्रूरता भरी हुई है, ऐसी स्त्री का मुख नहीं देखना चाहिए ,इसलिए प्रभु ने नेत्र बंद कर लिए |

पूतना ने इधर कन्हैया को उठा लिया और अवसर पाकर एकांत में विष से सना हुआ स्तन कन्हैया के मुख्य में लगा दिया , कन्हैया दूध के साथ साथ उसके प्राणों को भी पीने लगे | तब वह घबरायी वहां से भागी उसका राक्षशी रूप प्रगट हो गया | कहने लगी-
सा मुञ्च मुञ्चालमिति प्रभाषिणी निष्पीडयमानाखिल जीवमर्मणि। 
विवृत्य नेत्रे चरणौ भुजौ मुहु: प्रस्विन्नगात्रा क्षिपती रूरोद ह|१०/६/११
बाल संहिता में ऐसा उपाख्यान आता है ,जब बालकों को पूतना नाम का ग्रह लग जाता है तो, बालकम् मुन्च मुन्च पूतने |
इस मंत्र से झाडा लगाया जाता है , परंतु आज पूतना को हि एक बालक लग गया इसलिए वह कहती है कि मुन्च-मुन्च, कन्हैया छोड़ दो - छोड़ दो | कन्हैया ने कहा मौसी जिसे हम एक बार पकड़ते हैं फिर उसे कभी नहीं छोड़ते |

पीडा़ के कारण पूतना का शरीर फटने लगा वह पृथ्वी में धड़ाम से गिर गई | उसके नेत्र बाहर निकल आए और उसका प्राणान्त हो गया |गिरते समय उसने कंस के छ: कोश के बाग को कुचल डाला|

एक पंडित जी कहते हैं- पूतना का शरीर इतना बडा़ था जहां उसकी अलकें गिरी वहां अलीगढ़ हो गया और जहां उसका गला गिरा वहां आगरा हो गया, जहां हांथ गिरा हांथरस हो गया |  गोपियों ने पूतना के छाती में खेलते हुए कन्हैया को देखा तो उन्हें वहां से तुरंत उतारा, गोमूत्र से स्नान कराया गोरज लगाई और भगवान के 12 नामों से उनकी रक्षा की |

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नोट - अगर आपने भागवत कथानक के सभी भागों पढ़  लिया है तो  इसे भी पढ़े यह भागवत कथा हमारी दूसरी वेबसाइट पर अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी है 

श्री भागवत महापुराण की हिंदी सप्ताहिक कथा जोकि 335 अध्याय ओं का स्वरूप है अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका है और वह क्रमशः भागो के द्वारा आप पढ़ सकते हैं कुल 27 भागों में है सभी भागों का लिंक नीचे दिया गया है आप उस पर क्लिक करके क्रमशः संपूर्ण कथा को पढ़कर आनंद ले सकते हैं |

भागवत कथा Bhagwat katha

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