श्रीमद्भागवत महापुराण साप्ताहिक कथा
दशम स्कंध भाग-3
दशम स्कंध भाग-3

इन्द्रियाणि हृषीकेश: प्राणान् नारायणोऽवतु ।
श्वेतद्वीप पतिश्चित्तं मनो योगेश्वरोऽवतु।। १०/६/२४
ऋषिकेश भगवान इंद्रियों की रक्षा करें ,नारायण प्राणों की ,श्वेत दीप के अधिपति वाराह भगवान चित्त की और योगेश्वर भगवान मन की रक्षा करें | जिन बालकों को नजर लग जाती है, रोग ग्रस्त रहते हों, उनके लिए यहां आठ श्लोक दिए हुए हैं , दशम स्कंध के आठवें अध्याय के 22 में श्लोक से 29 तक इसका पाठ किया जाए तो बालक स्वस्थ हो जाता है |
जब मथुरा से लौटकर नंदबाबा वहां आए उन्होंने पूतना को मरा हुआ देखा तो कहने लगे वसुदेव जी की वाणी सत्य हुई उन्होंने जो कहा वही उत्पात यहां देखने को मिला, वसुदेव जी के रूप में निश्चित ही किसी योगेश्वर ने जन्म लिया है |
नंद बाबा की आज्ञा से पूतना के शरीर के कई टुकड़े किए गए और अनेकों चिताओं में रखकर उसे जला दिया परंतु उसके शरीर से दुर्गंध नहीं सुगंध आ रही थी ,क्यों ना हो आखिर कन्हैया ने उसके स्तनों का पान जो किया था|
सकट भंजन लील
परीक्षित जब भगवान श्रीकृष्ण तीन महीने की हो गए और उन्होंने पहली बार करवट बदला तो मैया यशोदा ने सभी गोप गोपियों को एकत्रित किया, ब्राह्मणों से स्वस्ति वाचन कराया, कन्हैया को स्नान कराया, अच्छे-अच्छे वस्त्र पहनाए, गोपियां बधाई गाने लगी |
मैया ने देखा कन्हैया को नींद आ रही है तो उन्होंने एक छकड़े (बैलगाड़ी) के नीचे पालना डालकर कन्हैया को सुला दिया, इसी समय एक सकटासुर नाम का दैत्य |
जो पूर्व जन्म में हिरण्याक्ष का पुत्र उत्कच था | उसे अपने शरीर का बड़ा अभिमान था एक दिन उसने लोमस ऋषि के आश्रम के वृक्षों को अपने पैरों से कुचल दिया, जिससे लोमस ऋषि को क्रोध आ गया उन्होंने श्राप दे दिया जा तू देह रहित हो जा |
जब उत्कच ने अनुनय विनय किया तो लोमस ऋषि ने कहा वैवस्वत मन्वंतर में द्वापर युग में श्री कृष्ण के चरण का स्पर्स जब तुझे प्राप्त होगा तब तू मुक्त हो जाएगा |
वही उत्कच सकटासुर बनकर आया और कन्हैया को छकड़े से दबाकर मारना चाहता था परंतु कन्हैया ने अपने नन्हे नन्हे चरण कमलों से उसमे ऐसा प्रहार किया कि वह आकाश में उड़ गया और धड़ाम से आकर पृथ्वी में गिर गया, उसमें रखे हुए सारे मार मटकी फूट गए | सकटासुर का गोविंदाय नमो नमः हो गया |
छकडे के गिरने की आवाज जब गोपियों ने सुना दौड़े-दौड़े आए खेलते हुए बालकों से पूछा यह छकड़ा कैसे पलट गया, बालकों ने कहा इसी कन्हैया ने अपने पैर के प्रहार से छकड़े को उल्टा दिया किसी ने बालकों की बात पर विश्वास नहीं किया क्योंकि बृजवासी श्री कृष्ण के ऐश्वर्य- श्री कृष्ण की शक्ति को नहीं जानते थे |
तब मय्या ने कन्हैया को पृथ्वी में बिठा दिया और घर के दूसरे काम में लग गई, इसी समय बवंडर का रूप धारण कर वह दैत्य आया और कन्हैया को उड़ाकर आकाश में ले गया जब तक वह गोकुल में घूमता रहा कन्हैया ने कुछ नहीं किया परंतु जैसे हि वह मथुरा की ओर बढ़ा कन्हैया ने अपना वजन बढ़ाना प्रारंभ कर दिया |
वब दैत्य ने सोचा कहीं में कन्हैया के स्थान पर किसी नीलगिरी चट्टान को तो उठाकर नहीं ले आया जैसे ही उसने कन्हैया को पटकना चाहा | कन्हैया ने उसका गला पकड़ लिया जिससे उसका वेग शांत हो गया आंखें बाहर निकल आई और धडाम से पृथ्वी में आकर गिर गया वृजवासियों ने मरे हुये तृणावर्त को देखा तो कहने लगे-
मैया ने कन्हैया के मुख में ब्रह्मांड देखा तो सोचने लगी मेरी आंख में कुछ गड़बड़ हो गया है, जिससे मैया ने आंखें बंद कर ली | बाद मे भगवान कि माया के द्वारा सब द्रस्य भलकर कन्हैया को दुलार करने लगी |
गर्गाचार्य जी ने कहा नंद बाबा आपका कथन सत्य है, परंतु मैं यदुवंशियों का अचार्य हूं, यदि मैंने इन बालकों का नामकरण संस्कार किया तो कंस इन्हें वसुदेव जी का बालक समझने लगेगा ,इसलिए मैं इनका नामकरण नहीं कर सकता |
नंद बाबा ने कहा आचार्य जी आप एकान्त गौशाला में स्वस्तिवाचन करके इन बालकों का नामकरण कर दीजिए यह बात किसी को नहीं पता चलेगी | गर्गाचीर्य ने नंद बाबा की बात स्वीकार कर ली, मैया यशोदा ने गर्गाचार्य की परीक्षा लेने के लिए कन्हैया को रोहणी को दे दिया और बलराम जी को अपनी गोद में ले लिया त्रिकालदर्शी गर्गाचार्य जी ने जैसे हि यशोदा की गोद में बलराम जी को देखा तर्जनी अगुंली से इशारा कर कहा-
नंद बाबा ने हिलाया कहा बाबा क्या हुआ | गर्गाचार्य जी ने कहा नंद तुम्हारा यह जो पुत्र है यह प्रत्येक युग में शरीर ग्रहण करता है, इस समय इसने कृष्ण वर्ण स्वीकार किया है, इसलिए इसका एक नाम कृष्ण होगा |
रोहिणी नक्षत्र के द्वितीय चरण में इसका जन्म हुआ है, इसलिए इसका दूसरा नाम वासुदेव होगा| या पहले यह वसुदेव जी का पुत्र भी हो चुका है इसलिए इसका नाम वासुदेव होगा |
इसके अलावा इसके गुण और कर्मों के अनुसार अनेकों नाम होंगे जिन्हें मैं जानता हूं साधारण पुरुष नहीं जानते |यह गोप और गायों की बड़ी-बड़ी आपत्तियों से रक्षा करेगा, गुणों में यह साक्षात नारायण के समान होगा |इस प्रकार नामकरण कर गर्गाचार्य जी मथुरा लौट आए|
जब मथुरा से लौटकर नंदबाबा वहां आए उन्होंने पूतना को मरा हुआ देखा तो कहने लगे वसुदेव जी की वाणी सत्य हुई उन्होंने जो कहा वही उत्पात यहां देखने को मिला, वसुदेव जी के रूप में निश्चित ही किसी योगेश्वर ने जन्म लिया है |
नंद बाबा की आज्ञा से पूतना के शरीर के कई टुकड़े किए गए और अनेकों चिताओं में रखकर उसे जला दिया परंतु उसके शरीर से दुर्गंध नहीं सुगंध आ रही थी ,क्यों ना हो आखिर कन्हैया ने उसके स्तनों का पान जो किया था|
श्री सुकदेव जी कहते हैं
पूतना लोकबालघ्नी राक्षसी रुधिराशना।
जिघांस यापि हरये स्तनं दत्त्वाऽऽप सद्गतिम् ।। १०/६/३५
परीक्षित पूतना जाति से राक्षसी थी, छोटे छोटे बालकों को मार डालना उनका रक्त पी लेना काम था , श्रीकृष्ण को भी वह मारने की इच्छा से आई थी | परंतु उसे भी कन्हैया ने माता की गति प्रदान कर दी| कं वा दयालुं शरणं व्रजेम | ऐसे दयालु कन्हैया को छोड़कर हम किसकी शरण ग्रहण करें |सकट भंजन लील
परीक्षित जब भगवान श्रीकृष्ण तीन महीने की हो गए और उन्होंने पहली बार करवट बदला तो मैया यशोदा ने सभी गोप गोपियों को एकत्रित किया, ब्राह्मणों से स्वस्ति वाचन कराया, कन्हैया को स्नान कराया, अच्छे-अच्छे वस्त्र पहनाए, गोपियां बधाई गाने लगी |
मैया ने देखा कन्हैया को नींद आ रही है तो उन्होंने एक छकड़े (बैलगाड़ी) के नीचे पालना डालकर कन्हैया को सुला दिया, इसी समय एक सकटासुर नाम का दैत्य |
जो पूर्व जन्म में हिरण्याक्ष का पुत्र उत्कच था | उसे अपने शरीर का बड़ा अभिमान था एक दिन उसने लोमस ऋषि के आश्रम के वृक्षों को अपने पैरों से कुचल दिया, जिससे लोमस ऋषि को क्रोध आ गया उन्होंने श्राप दे दिया जा तू देह रहित हो जा |
जब उत्कच ने अनुनय विनय किया तो लोमस ऋषि ने कहा वैवस्वत मन्वंतर में द्वापर युग में श्री कृष्ण के चरण का स्पर्स जब तुझे प्राप्त होगा तब तू मुक्त हो जाएगा |
वही उत्कच सकटासुर बनकर आया और कन्हैया को छकड़े से दबाकर मारना चाहता था परंतु कन्हैया ने अपने नन्हे नन्हे चरण कमलों से उसमे ऐसा प्रहार किया कि वह आकाश में उड़ गया और धड़ाम से आकर पृथ्वी में गिर गया, उसमें रखे हुए सारे मार मटकी फूट गए | सकटासुर का गोविंदाय नमो नमः हो गया |
छकडे के गिरने की आवाज जब गोपियों ने सुना दौड़े-दौड़े आए खेलते हुए बालकों से पूछा यह छकड़ा कैसे पलट गया, बालकों ने कहा इसी कन्हैया ने अपने पैर के प्रहार से छकड़े को उल्टा दिया किसी ने बालकों की बात पर विश्वास नहीं किया क्योंकि बृजवासी श्री कृष्ण के ऐश्वर्य- श्री कृष्ण की शक्ति को नहीं जानते थे |
तृणावर्त का उद्धार
परीक्षित एक दिन मैया कन्हैया को गोद में लेकर दुलार कर रही थी इसी समय तृणावर्त नाम का दैत्य वहां आ गया | कन्हैया ने सोचा यदि यह मैया के सामने उठाकर ले जाएगा तो मैया घबरा जाएंगी इसलिए कन्हैया ने अपना वजन बढ़ाना प्रारंभ किया |तब मय्या ने कन्हैया को पृथ्वी में बिठा दिया और घर के दूसरे काम में लग गई, इसी समय बवंडर का रूप धारण कर वह दैत्य आया और कन्हैया को उड़ाकर आकाश में ले गया जब तक वह गोकुल में घूमता रहा कन्हैया ने कुछ नहीं किया परंतु जैसे हि वह मथुरा की ओर बढ़ा कन्हैया ने अपना वजन बढ़ाना प्रारंभ कर दिया |
वब दैत्य ने सोचा कहीं में कन्हैया के स्थान पर किसी नीलगिरी चट्टान को तो उठाकर नहीं ले आया जैसे ही उसने कन्हैया को पटकना चाहा | कन्हैया ने उसका गला पकड़ लिया जिससे उसका वेग शांत हो गया आंखें बाहर निकल आई और धडाम से पृथ्वी में आकर गिर गया वृजवासियों ने मरे हुये तृणावर्त को देखा तो कहने लगे-
हिंस्र: स्वपापेन विहिंसित: खल: साधु: समत्वेन भयाद् विमुच्यते||१०/७/३१
यह पापी अपने पापों के द्वारा हि मारा गया और कन्हैया सत्पुरुषो से आशीर्वाद से बच गया |
( मुख में ब्रम्हाण्ड का दर्शन )
मैया कन्हैया को दूध पिला रही थी मैया ने सोचा कन्हैया को कहीं दुग्ध अपच ना कर जाए-आजीर्ण ना हो जाए , मैया ने कन्हैया के मुख को चूम लिया | जिससे कन्हैया के मुख में सूर्य,चंद्रमा, दसों दिशाएं ,अग्नि ,वायु, वन ,पर्वत सभी का दर्शन दिखाकर बताया मैया तेरा दुग्ध मुझे नहीं अपच होने वाला क्योंकि इसका पान संसार के सभी प्राणी कर रहे हैं |मैया ने कन्हैया के मुख में ब्रह्मांड देखा तो सोचने लगी मेरी आंख में कुछ गड़बड़ हो गया है, जिससे मैया ने आंखें बंद कर ली | बाद मे भगवान कि माया के द्वारा सब द्रस्य भलकर कन्हैया को दुलार करने लगी |
नाम करण लीला
गर्ग: पुरोहितो राजन् यदूनां सुमहातपा:।
व्रजं जागाम नन्दस्य वसुदेवप्रचोदित:।। १०/८/१
परीक्षित एक बार यदुवंशियों के पुरोहित गर्गाचार्य जी नंदबाबा के गोकुल में आए , नन्दबाबा ने गर्गाचार्य को देखा उनका अभिवादन किया स्वागत सत्कार किया और उनसे प्रार्थना की आचार्य जी आप ब्रह्मज्ञानियों में अत्यंत श्रेष्ठ हैं, आप पर कृपा करके मेरे बालकों का नामकरण संस्कार कर दीजिए|व्रजं जागाम नन्दस्य वसुदेवप्रचोदित:।। १०/८/१
गर्गाचार्य जी ने कहा नंद बाबा आपका कथन सत्य है, परंतु मैं यदुवंशियों का अचार्य हूं, यदि मैंने इन बालकों का नामकरण संस्कार किया तो कंस इन्हें वसुदेव जी का बालक समझने लगेगा ,इसलिए मैं इनका नामकरण नहीं कर सकता |
नंद बाबा ने कहा आचार्य जी आप एकान्त गौशाला में स्वस्तिवाचन करके इन बालकों का नामकरण कर दीजिए यह बात किसी को नहीं पता चलेगी | गर्गाचीर्य ने नंद बाबा की बात स्वीकार कर ली, मैया यशोदा ने गर्गाचार्य की परीक्षा लेने के लिए कन्हैया को रोहणी को दे दिया और बलराम जी को अपनी गोद में ले लिया त्रिकालदर्शी गर्गाचार्य जी ने जैसे हि यशोदा की गोद में बलराम जी को देखा तर्जनी अगुंली से इशारा कर कहा-
अयं हि रोहिणीपुत्रो रमयन् सुहृदो गुणै:।
आख्यास्यते राम इति बलाधिक्याद् बलं विदु:।
यह कोहणी का पुत्र है, बल के अधिकता के कारण लोग इसे बल कहेंगे | यह सबको आनंदित करेगा इसलिए इसका दूसरा नाम राम होगा | तब ये बलराम कहलायेगें | कंस के अत्याचारों से जहां-तहां भागे हुए यदुवंशियों को एकत्रित करेगा और मैं मेल मिलाप कराएगा इसलिए इनका एक नाम संकर्षण भी होगा | इसके पश्चात गर्गाचार्य जी की दृष्टि जैसी ही श्रीकृष्ण पर पड़ी भाव समाधि में डूब गए |नंद बाबा ने हिलाया कहा बाबा क्या हुआ | गर्गाचार्य जी ने कहा नंद तुम्हारा यह जो पुत्र है यह प्रत्येक युग में शरीर ग्रहण करता है, इस समय इसने कृष्ण वर्ण स्वीकार किया है, इसलिए इसका एक नाम कृष्ण होगा |
रोहिणी नक्षत्र के द्वितीय चरण में इसका जन्म हुआ है, इसलिए इसका दूसरा नाम वासुदेव होगा| या पहले यह वसुदेव जी का पुत्र भी हो चुका है इसलिए इसका नाम वासुदेव होगा |
इसके अलावा इसके गुण और कर्मों के अनुसार अनेकों नाम होंगे जिन्हें मैं जानता हूं साधारण पुरुष नहीं जानते |यह गोप और गायों की बड़ी-बड़ी आपत्तियों से रक्षा करेगा, गुणों में यह साक्षात नारायण के समान होगा |इस प्रकार नामकरण कर गर्गाचार्य जी मथुरा लौट आए|
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नोट - अगर आपने भागवत कथानक के सभी भागों पढ़ लिया है तो इसे भी पढ़े यह भागवत कथा हमारी दूसरी वेबसाइट पर अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी है
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श्री भागवत महापुराण की हिंदी सप्ताहिक कथा जोकि 335 अध्याय ओं का स्वरूप है अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका है और वह क्रमशः भागो के द्वारा आप पढ़ सकते हैं कुल 27 भागों में है सभी भागों का लिंक नीचे दिया गया है आप उस पर क्लिक करके क्रमशः संपूर्ण कथा को पढ़कर आनंद ले सकते हैं |
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( बोलिए बालकृष्ण भगवान की जय )