संपूर्ण भागवत कथा Book
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

दशम स्कन्ध,भाग-13
अक्रूर जी ने श्रीकृष्ण के आने का समाचार सुनाया | कंस ने जैसे ही यह सुना श्री कृष्ण आ गए हैं , सुरक्षा बढ़वा दी शायंकाल श्री कृष्ण और बलराम ग्वाल वालों के साथ मथुरा पुरी की शोभा देखने निकले, मथुरा वासियों ने जैसे यह सुना श्री कृष्ण आए हैं सभी अटारियों में चढ़ श्री कृष्ण के दर्शन करने लगे |
इसी समय एक नयी बहु ने सुना श्री कृष्ण निकलने वाले हैं दौड़ी दौडी़ श्री कृष्ण के दर्शन के लिए द्वार में खड़ी हो गई उसके सास की दृष्टि उस पर पड़ी तो सास कहने लगी-
( भगवान कृष्ण का धनुषयज्ञ मे आना )
अरी बहू भई बावरी लाज न आवै तोय |
मुख खोल बाहर खडी नाम धरें सब कोय |
अरी बहू पागल हो गई हो क्या जो मुंह खोलकर के द्वार पर खड़ी हो यदि लोग देखेंगे तो मेरी बदनामी करेंगे बहू ने कहा--
कछुक दोष नहिं सास जी नाम ना धरिहैं कोय |
नन्दनन्दन को छांडिके कौन निरखिहैं मोय |
माताजी आज तो श्री कृष्ण को छोड़ कौन बाबरा है जो मुझे देखेगा, आज तो सब की दृष्टि श्री कृष्ण पर है | श्री कृष्ण और बलराम का बड़ा भारी स्वागत हुआ ग्वाल बालों ने जब यह सत्कार देखा तो कहने लगे यदि हमें पहले पता होता कि ऐसा सत्कार होगा तो हम अच्छे अच्छे कपड़े पहन कर आते | श्री कृष्ण ने कहा मित्रों चिंता मत करो हम अपने मामा के यहां आए हैं वस्त्रों की व्यवस्था अभी करते हैं |
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इसी समय एक धोबी जो कपड़े रंगने का काम करता था वह हाथ में कपड़ों का गट्ठर लेकर जा रहा था श्री कृष्ण ने उससे कहा मामा जी आपके पास बहुत अच्छे-अच्छे कपड़े हैं इनमें से कुछ वस्त्र हमारे मित्रों को दे दो उस धोबी ने जैसे ही यह सुना कहने लगा अरे तुम गांव और जंगलों में रहने वाले जंगली जीव हो यह राजाओं के वस्त्र है तुमने कभी ऐसे वस्त्र देखे हैं यहां से भाग जाओ अन्यथा मारे जाओगे |
धोबी जब इस प्रकार बहक बहक कर बातें करने लगा श्री कृष्ण ने एक जोर का तमाचा मारा उसका सिर धड़ से अलग हो गया यह देख बाकी धोबी कपड़ों के गट्टर छोड़ भाग खड़े हुए ग्वाल बालों ने उनमें से वस्त्र निकालकर धारण कर लिए | परंतु कहां डेढ़ हड्डी के ग्वाल बाल और कहां महाराज कंस, ग्वाल बाल जब उन कपड़ों को पहनकर चलने लगे तो मार्ग में झाड़ू अपने आप लगने लगी |
श्री कृष्ण ने ग्वाल बालों को लेकर दर्जी के पास आए उस दर्जी ने शीघ्र ही सभी वस्त्रो को उनके अनुसार बना दिया | श्री कृष्ण ने दर्जी को आशीर्वाद दिया कलयुग में जितने का कपड़ा होगा उससे अधिक उसकी सिलाई होगी | इसके पश्चात सुदामा माली के गए सुदामा माली ने श्री कृष्ण और बलराम के पैर पखारे सभी ग्वाल बालों को सुंदर सुंदर माला पहनाई ग्वाल बालों ने कहा कन्हैया वस्त्र है गयो, माला पहन लीनी अब यदि चंदन लग जाए तो मजा आ जाए |
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श्री कृष्ण ने कहा मित्रों इस की व्यवस्था भी अभी करते हैं, इसी समय श्रीकृष्ण ने तीन जगह से टेडी़ एक युवती को हाथ में चंदन का पात्र लिए हुए देखा तो श्री कृष्ण ने कहा सुंदरी तुम कौन हो कहां जा रही हो और तुम्हारे पास जो चंदन है इसमें से कुछ हमें भी मिलेगा | मथुरा में पहली बार किसी ने कुब्जा को सुंदरी कहा था उसने पलट कर देखा तो कहने लगी--
दास्यस्म्यहं सुन्दर कंससम्मता
त्रिवक्रनामा ह्यनुलेप कर्मणि |
मद्भावितं भोजपतेरतिप्रियं
विना युवां कोन्यतमस्तदर्हति |
हे परम सुंदर मैं कंस की दासी हूं , तीन जगह से टेडी़ हूं इसलिए लोग मुझे (त्रिवक्रा) कुब्जा कहते हैं मैं कंस को चंदन लगाने का काम करती हूं मेरा लगाया हुआ चंदन उन्हें बहुत भाता है |
परंतु आप से बढ़कर इसका उत्तम अधिकारी और कौन हो सकता है ग्वाल वालों को चंदन लगाया और जैसे ही श्री कृष्ण को चंदन लगाई तो श्रीकृष्ण ने उसके पैर के पंजे के ऊपर अपने पैर के पंजे रखें और दो अंगुलियों से उसकी टोंडी़ पर हाथ लगा उसे ऊपर की ओर उचका दिया जिससे वह सीधी हो गई |
मुकुन्दस्पर्शनात् सद्यो बभूव प्रमदोत्तमा |
श्री कृष्ण के स्पर्श से वह परम सुंदरी युवती बन गई मथुरा की नारियों ने जब यह सुना श्री कृष्ण ने कुब्जा को सुंदर बना दिया तो वह श्री कृष्ण की दीवानी हो गई, कहने लगी हमारे मथुरा में चलता फिरता ब्यूटी पार्लर आ गया |
कृष्ण और बलराम धनुष यज्ञ शाला पहुंच गए वहां उन्होंने इंद्रधनुष को देखा उसे हाथ में उठाया उसमे प्रत्यंचा चड़ाया और उसे बीच को तोड़ दिया, धनुष रक्षक उनसे युद्ध करने आए तो श्री कृष्ण और बलराम टूटे हुए धनुष के टुकड़े से उनकी ऐसी पिटाई की थी वह सभी भाग खड़े हुए धनुष टूटने की ध्वनि जब कंस ने सुनी भयभीत हो गया|
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उसे मरण सूचक अपशगुन दिखाई देने लगे जब दर्पण में वह अपना मुख देखता तो उसे नीचे का भाग दिखाई देता परंतु ऊपर का भाग नहीं दिखाई देता , परछाई में छिद्र दिखाई देते , जब वह रात्रि से सोया उसने सपना देखा कि वह गधे में बैठे दक्षिण की यात्रा कर रहा है, भूत-प्रेतों के गले लग रहा है, यह देख उसे रात्रि में नींद नहीं आती प्रातः काल उसने मल्लक्रीडा का आयोजन किया |
एक ऊंचे सिंहासन पर जाकर बैठ गया श्री कृष्ण और बलराम जब मल्लसाला में आए उन्होंने द्वार पर कुवलया पीड़ हाथी को खड़ा हुआ देखा तो महावत से कहा हमारे रास्ते से हट जाओ नहीं तो दोनों को यमराज के यहां पहुंचा दूंगा, महावत ने जब यह सुना तो क्रोधित हो गया उसने अंकुश की मार से हाथी को श्रीकृष्ण की ओर बढ़ा दिया।
श्री कृष्ण ने उसके ऊपर एक मुष्टि का प्रहार किया और उसके पैरों के पीछे जाकर छिप गए हाथी चारों तरफ घूम घूम कर श्रीकृष्ण को ढूंढने लगा अवसर पाकर श्री कृष्ण बाहर निकले उस सूड़ पकड़कर पृथ्वी में पटक दिया उसके दोनों दांत पकड़ कर उखाड़ लिए उन्हीं दांतों से दोनों महावत और कुवलया पीड़ हाथी का गोविंदाय नमो नमः कर दिया | हाथी के दांत को कंधे में लेकर श्री कृष्ण और बलराम मल्लसाला में प्रवेश किया उस सभा में--
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरतितिन देखी तैसी |
जिसकी जैसी भावना थी उसी के अनुरूप उन्होंने श्री कृष्ण का दर्शन किया |
मल्लानामशनिर्नृणां नरवरः स्त्रीणांस्मरो मूर्तिमान
गोपानांस्वजनोसतांक्षितिभुजांशास्तास्वपित्रोशिशुः|
मृत्युर्भोजपतेर्विराडविदुषांतत्वंपरंयोगिनां
वृष्णीनांपरदेवतेतिविदितोरङ्गंगतःसाग्रजः |
मल्लो को वज्र के समान, मनुष्यों को श्रेष्ठ नर के समान, स्त्रियों को वे कामदेव के रूप में ,गोपों को वे सगे संबंधी के रूप में, दुष्ट राजाओं को शासक के रूप में ,माता पिता को पुत्र के रूप में, कंस को मृत्यु के रूप में ,ज्ञानियों को विराट रूप में और योगियों को परम तत्व के रूप में श्री कृष्ण दिखाई दिए |
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चाणूर और मुष्टिक ने कहा श्री कृष्ण आओ और हमसे कुश्ती लड़ो श्री कृष्ण ने कहा चाणूर कुश्ती बराबरी वालों से होती है इसलिए हम बालकों के साथ कुश्ती लड़ोगे तुम ? चाणूर ने कहा--
न बालो न किशोरस्त्वं बलश्च बलिनां वरः |
लीलयेभो हतो येन सहस्त्रद्विपसत्त्वभृत् |
कृष्ण न तो तुम बालक हो, ना किशोर हो , तुम बलवानो में श्रेष्ठ हो | अभी अभी तुमने खेल ही खेल में एक हजार हाथियों का बल रखने वाले कुवलया पीड़ हाथी को मार दिया, इसलिए आओ कुश्ती लड़ो चाणूर ने जब इस प्रकार कहा तो श्री कृष्ण चाणूर से तथा बलराम जी मुष्टिक से जा भिड़े बडी़ भारी कुश्ती हुई कभी चाणूर श्रीकृष्ण को पटक देता तो कभी श्री कृष्ण चाणूर को पटक देते अंत में श्री कृष्ण ने चाणूर को एक तमाचा लगाया जिससे वह खून की उल्टी करने लगा और उसका प्रांणान्त हो गया | बलराम जी ने मुष्टिक पर एक मुष्टिक का प्रहार किया जिससे उसका भी प्राणन्त हो गया |
दोनों के मारे जाने पर शल और तोशल युद्ध करने आए श्री कृष्ण और बलराम ने उन दोनों का भी गोविंदाय नमो नमः कर दिया | उन चारों के मारे जाने पर बाकी के पहलवान भाग खड़े हुए यह देख मथुरा वासी ढोल नगाड़े बजाने लगे कंस ने आवाज लगाई ढोल नगाड़े बंद करो और नंद वसुदेव को मार डालो और श्री कृष्ण बलराम को बंदी बना लो |
उसी समय श्रीकृष्ण ने जोर की छलांग लगाई कंस के पास पहुंच गए उसके बाल पकड़कर उसे धक्का दे दिया जिससे वह धड़ाम से पृथ्वी पर गिर गया और उसका गोविंदाय नमो नमः हो गया | उसके आठ भाई कंक और न्यग्रोध आदि युद्ध करने आए श्री कृष्ण और बलराम ने मिलकर उनका भी काम तमाम कर दिया |
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कंस के मारे जाने पर दुखी हो उनकी पत्नियां श्री कृष्ण के पास आयी श्री कृष्ण ने उन्हें सांत्वना प्रदान की कंस का क्रिया कर्म कराया और अपने माता-पिता देवकी वसुदेव को मुक्त कराया उनके चरणों में प्रणाम किया और कहने लगे--
यस्तयोरात्मजः कल्प आत्मना च धनेन च |वृत्तिं न दद्यात्त प्रेत्य स्वमांसं खादयन्ति हि |
पिताजी पुत्र का शरीर माता-पिता का ही दिया हुआ है , इस स्थिति में समर्थ होने पर भी जो माता पिता की सेवा नहीं करता वह नरक में जाता है ,यमदूत उसे उसी का मांस खिलाते हैं पिताजी कंस डर के कारण हम आपकी सेवा नहीं कर सके इसलिए आप हमारे इस अपराध को क्षमा करें |
देवकी और वसुदेव ने कृष्ण और बलराम को गले से लगा लिया श्रीकृष्ण ने अपने नाना उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया और नंद बाबा के पास आए उनके चरणों में प्रणाम किया |
नंद बाबा के आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे श्री कृष्ण ने बड़े दुखी मन से नंद बाबा की विदाई की | वसुदेव जी ने अपने पुरोहित गर्गाचार्य जी से कृष्ण और बलराम का उपनयन संस्कार कराया और उन्हें विद्या अध्ययन के लिए संदीपनी मुनि के आश्रम उज्जैन भेज दिया |
वहां श्री कृष्ण बलराम ने रहस्य के सहित धनुर्वेद धर्म शास्त्र न्याय शास्त्र और राजनीति शास्त्र की शिक्षा प्राप्त करी तथा चौसंठ दिनों में चौसठ कलाओं को प्राप्त कर उन्होंने संदीपनी मुनि से कहा गुरुदेव आप गुरु दक्षिणा मांग लीजिए |
संदीपनी मुनि ने कहा श्रीकृष्ण यदि तुम मुझे कुछ देना चाहते हो तो प्रभास क्षेत्र में गए हुए हमारे पुत्रों को लौटा कर दे दो, श्रीकृष्ण ने संदीपनी मुनि को प्रणाम किया और समुद्र से कहा गुरु पुत्रों को तुम बहाकर ले गये थे उसे शीघ्र ही लाकर दो समुद्र ने कहा प्रभु गुरु पुत्र हमारे पास नहीं है हमारे अंदर पन्चजन नामक एक दैत्य रहता है, उसने ही गुरु पुत्र का हरण किया होगा श्री कृष्ण ने समुद्र में प्रवेश किया पन्चजन का वध किया शंख लेकर यमराज की संयमनी पुरी पहुंच गए वहां अपना पंचजन शंख बजाया जिसे सुनकर यमराज आरती की थाली लेकर बाहर आ गए श्री कृष्ण बलराम का पूजन किया और कहा प्रभु आज्ञा दीजिए मैं आपकी क्या सेवा करूं श्री कृष्ण ने कहा--
गुरूपुत्रमिहानीतं निजकर्मनिबन्धनम् |
आनयस्व महाराज मच्छासनपुरस्कृतः |
अपने कर्मों के अनुसार लाए हुए गुरु पुत्र को मेरी आज्ञा से मुझे सौप दो यमराज ने गुरु पुत्रों को लाकर दिया | श्री कृष्ण उस गुरुपुत्र को उज्जैन लेकर आए संदीपनी मुनि ने आशीर्वाद दिया तुम्हारी विद्या सदा बनी रहेगी गुरु जी से आज्ञा ले श्री कृष्ण मथुरा पुरी लौट आए |
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