श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

दशम स्कन्ध,भाग-12
एकदा देवयात्रायां गोपाली जातकौतुकाः |
अनोभिरनडुद्युक्तैः प्रययुस्तेम्बिकावनम् |
( सुदर्शन का उद्धार )
परीक्षित एक शिवरात्रि का बड़ा ही पावन पर्व था उस समय नंद आदि गोप गणो ने अंबिका वन की यात्रा की वहां सरस्वती नदी में स्नान किया भगवान शंकर का पूजन किया रुद्राभिषेक किया व्रत किया ब्राह्मणो को बहुत दान दिया और रात्रि होने पर नंद आदि गोपगण सरस्वती नदी के तट में सो गए |
रात्रि में एक अजगर आया उसने नंदबाबा का पैर पकड़ लिया सभी गोपगणो ने छुड़ाने का बहुत प्रयास किया जलती हुई लकड़ी से उसे मारा उसने नंद बाबा को नहीं छोड़ा | सभी व्रजवासियों ने जोर से श्री कृष्ण को पुकारा श्री कृष्ण के चरणों का स्पर्श जैसे ही उस अजगर को हुआ वह पुरुष के रूप में प्रकट हो गया |भगवान श्री कृष्ण ने पूछा तुम कौन हो और इस गति को कैसे प्राप्त हुए अजगर ने कहा--
अहं विद्याधरः कश्चित सुदर्शन इति श्रुतः |
श्रिया स्वरूपसम्पत्त्या विमानेनाचर दिशः |
मैं पूर्व जन्म में सुदर्शन नाम का विद्याधर था मुझे अपने स्वरूप का बड़ा अभिमान था | एक दिन विमान में बैठकर जा रहा था अगिंरा गोत्रीय ऋषियों को देखा तो उनका अपमान करने लगा उन्होंने मुझे श्राप देदिया जाओ अजगर होजाओ|
मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा |
परम अनुग्रह मैं माना |
हे प्रभु उन ऋषियों ने मुझे श्राप नहीं अपितु तो मुझे वरदान दिया है , उनकी कृपा के कारण आज आपके चरण स्पर्श हुआ | सुदर्शन ने भगवान श्री कृष्ण के चरणों में प्रणाम किया उनकी परिक्रमा की और अपने लोक की यात्रा की |
( शंख चूड़ का उद्धार )
परिक्षित एक श्री कृष्ण और बलराम गोपियों के साथ रात्रि में विहार कर रहे थे उसी समय एक शंख चूर्ण नाम का यक्ष आया और गोपियों का हरण करके ले जा रहा था | भगवान श्री कृष्ण ने उसे दौड़ कर पकड़ लिया और एक मुष्टिक का प्रहार किया, जिससे उसका गोविंदाय नमो नमः हो गया | उसके मस्तक से एक मणी निकाली और बड़े भैया बलराम को भेंट कर दी |
( युगल गीत )
परीक्षित जब भगवान श्रीकृष्ण प्रतिदिन प्रातः काल वन मे चले जाते तो गोपियों का चित्त भी उनके साथ ही चला जाता वे श्री कृष्ण की लीलाओं का गान करते हुए कहती--
वामबाहुकृतवामकपोलोवल्गितभ्रुरधरार्पितवेणुम्|
कोमलाङ्गुलिभिराश्रितमार्गंगोप्यईरयतियत्रमुकुन्दः|
व्योमयानवविताः सह सिद्धै
र्विस्मितास्तदुपधार्य सलज्जाः |
काममार्गण समर्पित चित्ताः
कश्मलं ययुरपस्मृतनीव्यः |
अरी सखी जब नट नागर प्यारे सुन्दर अपने मुख मंडल को बाएं बाह कि ओर लटकाकर भौहो को नचाते हुए अधरों पर बांसुरी लगा अपने सुकोमल अंगुलियों को उनके छिद्रो मे फिराते हुए मधुर तान छेड़ते हैं, उस समय आकाश मे विमानों में चढ़ी हुई सिद्धो की पत्नियां जब उस तान को सुनती हैं तो वो उस तान पर इतना मोहित हो जाती है कि शरीर की सुधबुध ही भूल जाती है , उनका उत्तरीय वस्त्र उतरकर पृथ्वी में गिर जाता है जब उन्हें चेतना आती है तो वो लज्जित हो जाती है |
एक गोपी कहती हैं अरी सखी जब प्यारे श्याम सुंदर गोवर्धन की शिखर पर खड़े होकर वेणु वादन करते हैं, उस समय मेघ मंद मंद गरजने लगते हैं प्यारे श्याम सुंदर को कहीं धूप ना लग जाए इसलिए उनका छाता बन जाते हैं और मंद मंद बरसने लगते हैं | जैसे श्रीकृष्ण पर पुष्पों कि बारिश कर रहे हो | परिक्षित इस प्रकार गोपियाँ श्रीकृष्ण की लीलाओं का गान कर बड़े कष्ट से अपने दिन को व्यतीत करती हैं |
(अरिष्टा सुर का उद्धार )
परीक्षित.एक दिन श्री कृष्ण सायं काल गायो को लेकर व्रज मे प्रवेश कर रहे थे उसी समय अरिष्टासुर नाम का दैत्य बैल का रूप धारण कर वहां आ गया उसे देख सभी बृजवासी भयभीत हो गए |
गाय डरकर जहां-तहां भागने लगी श्रीकृष्ण ने उस असुर को देखा उसके पास पहुंच गए उसकी सीगो को उखाड़कर उस सीगो से उसकी ऐसी पिटाई की कि उसका गोविंदाय नमो नमः हो गया | श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित एक दिन देवर्षि नारद कंस के यहां आए कंस ने उनका स्वागत सत्कार किया देवर्षि नारद ने कंस से कहा-
यशोदायाः सुतां कन्यां देवक्याः कृष्णमेव च |
रामं च रोहणीपुत्रं वसुदेवेन विभ्यता |
कंस तुम्हारे हाथ से छूटकर जो कन्या आकाश में चली गई थी यशोदा की पुत्री थी और व्रज में जो कृष्ण है वे देवकी के पुत्र हैं तथा बलराम जी रोहणी के पुत्र हैं | वसुदेव जी ने तुम्हारे डर के कारण उन्हें अपने मित्र नंद के यहां पहुंचा दिया था अभी तक तुम्हारे जितने भी दैत्य व्रज मे गए उन सबका संहार उन दोनों ने ही किया है|
इसलिए अब आप ऐसा प्रयास करो कि दोनों मथुरा आ जाए यहां योजना बनाकर तुम उनके वध कि तैयारी करो | कंस ने जब यह सुना तो वसुदेव और देवकी को पुनः कारागार में डाल दिया अक्रूर जी को बुलाया और उनसे कहा तुम्हारे बराबर मेरा कोई दूसरा मित्र नहीं है इसलिए तुम मेरा एक कार्य करो धनुष यज्ञ के बहाने कृष्ण और बलराम को यहां ले आओ मैं कुवलया पीड हाथी के द्वारा इन्हें मरवा दूंगा, यदि वे बच गए तो पहलवान चाणूर और मुष्टिक मार डालेंगे |अक्रूर जी ने कहा-
सिद्ध्यसिद्ध्योः समं कुर्याद् दैवंहिफलसाधनम् |
महाराज सफलता और असफलता में समान भाव रखना चाहिए क्योंकि मनुष्य के हाथों में मात्र कर्म करना है, फल देना ईश्वर के हाथ मे है मनुष्य अनेको प्रकार की योजनाएं बनाता है परंतु प्रारब्ध उन सब को नष्ट कर देता है | ऐसा कह अक्रूर जी वृंदावन जाने के लिए तैयारी करने लगे
( केसी का उद्धार )
केसी नाम का दैत्य घोड़े का रूप धारण कर ब्रज में आतंक मचाने लगा , जब श्री कृष्ण को देखा उन्हीं को मारने दौड़ा | श्री कृष्ण ने उसके पैरों को पकड़ा और पृथ्वी पर पटक दिया जब वह मुंह खोलकर श्री कृष्ण को खाने के लिए दौड़ा श्री कृष्ण ने अपना हाथ उसके मुख में डाल दिया जिससे उसका श्वास रुक गया और उसका गोविंदाय नमो नमः हो गया |
इसी समय देवर्षि नारद भगवान कृष्ण के पास आए उनके चरणों में प्रणाम किया और कहा प्रभु सौभाग्य से आज केसी दैत्य मारा गया | अब मैं परसों आपके हाथों से चाणूर मुष्टिक और कुवलया हाथी और कंस को मरा हुआ देखूगा | श्री कृष्ण ने कहा देवर्षि अभी तो हमने इसकी कोई योजना ही नहीं बनाई , देवर्षि नारद ने कहा प्रभु संपूर्ण योजना तैयार है आपको बुलाने के लिए कंस स्वयं रथ भेजेगा ऐसा कह देवर्षि नारद चले गए |
भगवान श्री कृष्ण ग्वाल वालो के साथ लुका छुपी का खेल खेल रहे थे इसी समय एक व्योमासुर नाम का एक दैत्य ग्वाल बालों का वेश धर वहां आ गया वहा अनेकों ग्वाल वालो को ले जाकर गुफा में छिपा दिया जब चार पाँच ही ग्वाल बाल शेष बचे भगवान श्री कृष्ण उसे पहचान गए उसे पकड़कर उसका गला दबा दिया जिससे उसका गोविंदाय नमो नमः हो गया | भगवान श्री कृष्ण ने इस प्रकार ग्वाल वालो कि रक्षा की |
श्री शुकदेव जी कहते है प्रातः काल अक्रूर जी ने व्रज की यात्रा की मार्ग में विचार करने लगे
किं मयाचरितं भद्रं किं तप्तं परमं तपः |
किं वाथाप्यर्हते दत्तं यद् द्रक्ष्याम्यद्य केशवम् |
मैंने ऐसा कौन सा मंगल आचरण किया है ऐसा कौन साधन किया है जिसके कारण आज मैं श्री कृष्ण के चरणारविंदो का दर्शन करूंगा | आज मुझे श्री कृष्ण के उन चरण कमलो में प्रणाम करने का अवसर प्राप्त होगा जिन चरण कमलो का मुनिजन ध्यान करते हैं, जब मैं श्री कृष्ण के चरणों में प्रणाम करूंगा वह अपना कर कमल मेरे सर पर रख देंगे जिससे मेरा जन्म सफल हो जायेगा |
कंस का दूत हूं कंस की भेजने पर उनके पास जा रहा हूं फिर भी वह मुझ में शत्रु बुद्धि नहीं करेंगे , क्योंकि वे संपूर्ण जगत के एकमात्र साक्षी हैं | जब मैं उनके चरणों में प्रणाम करूंगा वह मुझे उठा कर सीने से लगा लेंगे और जब मुझे चाचा अक्रूर कहेंगे तो मेरा जीवन सफल हो जाएगा | अक्रूर जी इस प्रकार विचार करते-करते वृंदावन पहुंच गए सायं काल का समय था उन्होंने व्रजरज में श्री कृष्ण के पद चिन्हों को देखा तो रथ से कूद पड़े उसमें लोटने लगे|
आगे बढ़े तो श्रीकृष्ण और बलरामजी को गाय दुहते देखा बड़े भाव से उनके चरणों में प्रणाम किया श्रीकृष्ण ने अक्रूर जी को हृदय से लगा लिया और हाथ पकड़कर घर ले आए नन्दबाबा ने अक्रर जी का स्वागत सत्कार किया उन्हें उत्तम भोजन कराया और जब थकान दूर हो गई और वे सुख पूर्वक बैठ हुये थे |
उस समय श्रीकृष्ण ने कहा चाचा जी सब कुशल मंगल तो है मथुरा में यहां आपके आने का कारण क्या है कंस ने जो योजना बनाई थी अक्रर जी ने सब कह सुनाई श्री कृष्ण ने कहा चाचा जी आपने यह बात तो मुझे बता दी परंतु बाबा को मत बताइयेगा |
इसी समय नंद बाबा आ गए श्री कृष्ण ने कहा बाबा मथुरा में बहुत बड़ा धनुष यज्ञ हो रहा है उसी यज्ञ के लिए मामा कंस ने अक्रूर जी के द्वारा हमें लाने के लिए रथ भेजा है, नंद बाबा ने जब यह सुना गोपों को आज्ञा दी सारा दूध दही इकट्ठा कर लो प्रातः काल हम सभी मथुरा की यात्रा करेंगे |
गोपियों ने जब यह सुना श्री कृष्ण बलराम मथुरा जा रहे हैं तो दुखी हो गई कहने लगी
अहो विधातास्तव न क्वचिद् दया
संयोज्य मैत्र्या प्रणयेन देहिनः |
तांश्चाकृतार्थान वियुनङ्क्ष्यपार्थकं
विक्रीडितं तेर्भकचेष्टितं यथा |
अहो विधाता तुम में थोड़ी भी दया नहीं तुम सौहार्द में और प्रेम में प्राणियों को आपस में जोड़ते हो और उनकी अभी इच्छाएं अभिलाषा पूर्ण भी नहीं हुई उन्हें अलग कर देते हो |
तुम्हारा यह खेल बच्चों के खेल के समान व्यर्थ है, श्री कृष्ण को लेने अक्रूर जी आए उनका नाम अक्रूर किसने रख दिया यह तो क्रूर के समान है |इस प्रकार रोते बिलखते हुए रात व्यतीत कर दी प्रातः काल अक्रूर जी स्नान किए संध्या वंदन किए श्री कृष्ण और बलराम को रथ में विठाला और रथ को हाक दिया | श्रीकृष्ण ने दुखी गोपियों को देखा तो संदेश भेजा गोपियों दुखी मत हो मैं शीघ्र आऊंगा |
यावदालक्ष्यतेकेतुर्यावदरेणु रथस्य च |
अनुप्रस्थापितात्मानो लेख्यानीवोपलक्षिताः |
जब तक रथ कि ध्वजा दिखाई देती रही गोपियां उस ध्वजा को देखी, जब ध्वजा दिखना बंद हुआ तो रथ से उड़ रही धूल को देखती रही ,जब वह भी दिखना बंद हुआ तो उनकी आशा टूट गई अब श्री कृष्ण लौटकर नहीं आने वाले |
यहां वायु के वेग वाले रथ से अक्रूर जी जमुना के तट पर पहुंच गए वहां श्री कृष्ण और बलराम ने यमुना के मधुर जल का पान किया और रथ में बैठ गये अक्रूर जी मध्यान्ह संध्या करने के लिए यमुना में स्नान करने आए |
जैसे ही उन्होंने डुबकी लगाई तो कृष्ण और बलराम को अंदर देखा जब सिर जल के बाहर निकाला श्री कृष्ण बलराम पहले की भांति रथ में बैठे हुए थे अक्रूर जी विचार करने लगी बाहर वो है तो जल के अन्दर कौन था ,जब पुनः डुबकी लगाई भगवान विराट स्वरूप के दर्शन हुए अक्रूर जी उनके चरणों में प्रणाम किया और हाथ जोड़कर स्तुति-
नतोस्म्यहं त्वाखिलहेतुहेतुं नारायणं पूरुषमाद्यमव्ययम् |
यन्नाभिजातादरविन्दकोशाद ब्रह्माविरासीद् यत एष लोकः |
हे प्रभु आप समस्त कारणों के भी कारण है अविनाशी पुरुषोत्तम नारायण हैं , आपके नाभि कमल से ब्रह्मा जी प्रकट हुए मैं आपके चरणों में प्रणाम करता हूं, अक्रूर जी ने जब इस प्रकार स्तुति कि भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और अन्तर्ध्यान हो गए | अक्रूर जी मध्यान संध्या कर कृष्ण के पास आए श्री कृष्ण ने पूछा चाचा जी आप इतने आश्चर्यचकित क्यों हैं क्या आपने कोई अद्भुत चीज देख ली है |
अक्रूर जी ने कहा प्रभो चराचर जगत में जितने भी अद्भुत पदार्थ है सब आप से ही हैं जब मैं आपको ही देख रहा हूं तो संसार में ऐसी कौन सी वस्तु है जिसे मैंने ना देखा हो, ऐसा कह अक्रूर जी ने रथ हाक दिया और मथुरा पुरी पहुंच गए |
अक्रूर जी ने कहा प्रभु मेरे घर चलिए भगवान श्री कृष्ण ने कहा चाचा जी कंस के वध के बाद अवश्य आऊंगा अभी आप पुरी में प्रवेश कर हमारे आने का समाचार कंस को बताओ | अक्रूर जी ने भगवान श्री कृष्ण के चरणों में प्रणाम किया और आकर महाराज कंस से बताया श्री कृष्ण आ गये हैं |
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नोट - अगर आपने भागवत कथानक के सभी भागों पढ़ लिया है तो इसे भी पढ़े यह भागवत कथा हमारी दूसरी वेबसाइट पर अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी है
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श्री भागवत महापुराण की हिंदी सप्ताहिक कथा जोकि 335 अध्याय ओं का स्वरूप है अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका है और वह क्रमशः भागो के द्वारा आप पढ़ सकते हैं कुल 27 भागों में है सभी भागों का लिंक नीचे दिया गया है आप उस पर क्लिक करके क्रमशः संपूर्ण कथा को पढ़कर आनंद ले सकते हैं |
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