Bhagwat Mahapuran in Hindi pdf
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

भगवान भीष्मकसुतां रुक्मिणीं रुचिराननाम् ,
राक्षसेन विधानेन उपयेम इति श्रुतम् |
राक्षसेन विधानेन उपयेम इति श्रुतम् |
दशम स्कन्ध,भाग-15
रुक्मणी ने जब नारद जी के मुख से भगवान श्री कृष्ण के सौंदर्य ,पाराक्रम और ऐश्वर्य का वर्णन सुना तो उनसे प्रेम करने लगी |उन्हें अपना पति मान लिया |
रुक्मणी का भाई रुक्मी श्रीकृष्ण से द्वेष करता था इसलिए उसने अपने मित्र चेदिनरेश शिशुपाल से रुक्मणी का विवाह निश्चित कर दिया | जब रुक्मणी को यह पता चला तो उन्होंने एक ब्राह्मण द्वारा द्वारिका संदेश भेजा द्वारका में ब्राह्मण देवता का स्वागत सत्कार हुआ भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण देवता से पूछा ब्राह्मण देवता सब कुशल मंगल तो है आपका यहां आना किस कारण से हुआ है ?ब्राह्मण देवता ने कहा प्रभु मैं आपके लिए राजकुमारी रुक्मणी का पुत्र लाया हूं !
Bhagwat Mahapuran in Hindi pdf
भगवान ने कहा ब्राह्मण देवता इस पत्र में क्या लिखा है सुनाइए ? ब्राह्मण देवता ने कहा प्रभु यह पत्र प्राइवेट है- पर्सनल आपके लिए है !भगवान श्री कृष्ण ने कहा हमारे और ब्राम्हणो के बीच कोई भेद नहीं है, ब्राह्मण देवता आप सुनाओ ? ब्राह्मण देवता ने पत्र सुनाना प्रारंभ कर दिया रुक्मणी ने यह सात श्लोकों में लिखा है मानो सात श्लोकों में उन्होंने सप्तपदी कर ली हो |रुक्मणी जी कहती हैं--
श्रुत्वा गुणान् भुवनसुन्दर श्रृण्वतां ते निर्विश्य कर्णविवरैर्हरतोङ्गतापम् |रूपं दृशां दृशिमतामखिलार्थलाभं त्वय्यच्युताविशति चित्तमपत्रपं मे
अन्तः पुरान्तरचरीमनिहत्य बन्धूं स्त्वामुद्वहे कथमिति प्रवदाम्युपायम् |पूर्वेद्युरस्ति महती कुलदेवियात्रा यस्यां बहिर्नववधू गिरिजामुप्रेयात |
श्री कृष्ण ने इस संदेश को सुना तो ब्राह्मण देवता का हाथ पकड़ा महल से बाहर आ गए ब्राह्मण देवता को रथ में विठाला और स्वयं रथ में बैठकर एक रात्रि मे हि कुण्डिनपुर पहुंच गए | यहां बलराम जी को जब यह मालूम हुआ कि श्री कृष्ण रुकमणी के स्वयंवर में गए हैं तो सेना को साथ लेकर बलराम जी ने भी कुण्डिन पुर की यात्रा की |
Bhagwat Mahapuran in Hindi pdf
रुक्मणी ने पूछा ब्राह्मण देवता क्या संदेश लाए हो ब्राह्मण ने कहा संदेश नहीं श्री कृष्ण को ही साथ लाया हूं | रुक्मणी ने जैसे ही सुना प्रसन्न हो गई चारों ओर देखा ब्राह्मण देवता को कुछ देने के लिए , तो उन्हें कार प्रदान किया कौन कार-- नमस्कार प्रदान किया |
यहां महाराज भीष्मक ने जब यह सुना श्री कृष्ण आए हैं उन्होंने उनका स्वागत सत्कार किया नगरवासी जो भी श्रीकृष्ण को देखते यही कहते यदि हमने कोई भी पुण्य किया हो तो यही रुकमणी के पति हों | प्रातः काल रुकमणी देवी पूजा के लिए आई षोडशोपचार से माता गिरिजा का पूजन किया हाथ जोड़कर उनकी प्रार्थना की--
नमस्ये त्वाम्बिकेभीक्ष्णं स्वसन्तानयुतां शिवाम् |
भूयात पतिर्मे भगवान कृष्णस्तदनुमोदताम् |
गणपति के साथ माता अंबिका को मैं बारंबार प्रणाम करती हूं, आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि श्रीकृष्ण ही मेरे पति हों, इस प्रकार प्रार्थना कर रुकमणी मंदिर से बाहर निकली और जैसे ही उन्होंने श्रीकृष्ण को देखने के लिए सिर का घूंघट उठाया, उनके सौंदर्य को देखकर अनेकों सैनिक मूर्छित हो गए |
यहां श्री कृष्ण ने अपने रथ को शिशुपाल कि तरह सजवाया और मंदिर की ओर चल दिए सभी सैनिक ने सोचा महाराज शिशुपाल आए हैं मंदिर पहुंचकर भगवान श्री कृष्ण ने अपना हाथ बढ़ाया रुकमणी के हाथ को पकड़ कर रथ में विठाला और चल दिए |
Bhagwat Mahapuran in Hindi pdf
शिशुपाल अपना मुंह छुपा कर घर लौट आया, रुकमणी के भाई रुक्मी को यह बात पता चली तो उसने प्रतिज्ञा कि अगर आज मैं रुकमणी को लौटा कर नहीं लाया तो मैं लौट कर राज्य वापस नहीं आऊंगा |
रुक्मी ने श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा श्रीकृष्ण ने अपने बाणों से उसका धनुष तोड़ दिया, वह तलवार लेकर दौड़ा भगवान श्रीकृष्ण ने तलवार को भी काट दिया, जब उसे मारने लगे उसी समय बलराम जी ने रोक दिया श्री कृष्ण यह तुम्हारे संबंधी हो गए हैं |बलराम जी के कहने पर श्री कृष्ण ने उसे छोड़ दिया , यहां भगवान श्री कृष्ण द्वारिका आ गए और वहां विधिवत रुक्मणी से विवाह किया |
Bhagwat Mahapuran in Hindi pdf
बोलिये रुक्मणी वल्लभ भगवान की जय ( प्रद्युम्न का जन्म और शम्ब्रासुर का उद्धार )
कामस्तु वासुदेवांशो दग्धः प्राग् रुद्रमन्युना |
देहोपपत्रये भूयस्तमेव प्रत्यपद्यत |
पूर्व काल में कामदेव जब भगवान रुद्र की क्रोध अग्नि में जलकर भस्म हो गया तो उसकी पत्नी रति दुखी हो गयी तब भगवान शंकर ने रति को वरदान दिया |
जब यदुवंश कृष्ण अवतारा होहिं हरण महामहिभारा |
कृष्ण तनय होहिं पति तोरा बचन अन्यथा होहिं न मोरा |
वही कामदेव आज यदुवंश में रुक्मणी के गर्भ से श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में उत्पन्न हुआ , यह मात्र दस दिन का ही हुआ था कि सम्ब्रासुर उसका हरण कर ले गया , उसे मारने के लिए समुद्र में फेंक दिया | समुद्र में एक विशाल मच्छ ने उस शिशु को निगल गया और जब मछुआरे के हाथ में वह विशाल मच्छ आ गया, मछुआरे उस विशाल मछ को सम्रासुर को भेंट कर दिया |
सम्ब्रासुर के रसोइयों ने जब उस विशाल मच्छ को काटा तो उसके अंदर से जीवित बालक निकला, सम्ब्रासुर की आज्ञा से रसोइयों ने वह बालक वहीं काम करने वाली काम देवकी पूर्व जन्म की पत्नी रति को भेंट कर दिया |
जब रति उस बालक का पालन पोषण करने लगी एक दिन देवर्षि नारद आए उन्होंने कहा रति यह कोई साधारण बालक नहीं है , यह भगवान के पुत्र प्रद्युम्न और तुम्हारे पूर्व जन्म के पति कामदेव हैं | रति ने जब देवर्षि नारद के वचनों को सुना प्रसन्न हो गए अति शीघ्र वह बालक बड़ा हो गया और एक दिन वह रति के हाव भाव चाल चलन बर्ताव को देखकर कहने लगा-
मातृभाव मतिक्रम्य वर्तसे कामिनी यथा
आपने मेरा लालन पोषण किया है आप मेरी मां के समान हैं, आप मातृ भाव का त्याग करके कामिनी स्त्रियों की तरह हमारे साथ क्यों बर्ताव कर रही हैं, तब रति ने बताया कि प्रभु मैं आपकी पूर्व जन्म देव की पत्नी रती हूं और आप हमारे पति कामदेव हैं | सम्ब्रासुर बचपन में आप का हरण कर ले आया था ,आप भगवान से श्री कृष्ण के पुत्र हैं और रति ने प्रद्युम्न को महामाया नाम की विद्या सिखाई | प्रद्युम्न ने सम्ब्रासुर को युद्ध के लिए ललकारा सम्ब्रासुर हाथ में गदा लेकर युद्ध करने आया आकाश में बड़े जोरों की गदा घुमाई और प्रद्युम्न पर चला दी प्रद्युम्न ने अपनी गदा के प्रहार से सम्रासुर की गदा को नष्ट कर दिया ,सम्ब्रासुर ने जब यह देखा क्रोधित हो गया और अपनी माया दिखाने लगा |Bhagwat Mahapuran in Hindi pdf
रति प्रद्युम्न को आकाश मार्ग से ही द्वारका ले आई , द्वारिका की स्त्रियों ने जब प्रद्युम्न को देखा तो लज्जित होकर छिपने लगी | जब रुक्मणी मैया के सामने आए रुक्मणी मैया दुखी हो गई विचार करने लगी आज अगर मेरा पुत्र जीवित होता तो वह भी इतना बड़ा होता |
उसी समय देवर्षि नारद वहां आ गए उन्होंने कहा देवी यह किसी और का पुत्र नहीं आपका ही पुत्र है जैसे ही रुकमणी मैया ने सुना प्रसन्न हो गई प्रद्युम्न को गले से लगा लिया, प्रेम के कारण उनके वक्षस्थल से दूध की धारा बहने लगी |
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित यह तो हुआ भगवान श्री कृष्ण के पहले विवाह का वर्णन | अब मैं तुम्हे उनके अन्य विवाहों का वर्णन सुनाता हूं | श्री सुखदेव जी कहते हैं-
आसीत सत्राजितः सूर्यो भक्तस्य परमः सखा |प्रीतस्तस्मै मणिं प्रादात् सूर्यस्तुष्टः स्यमन्तकम् |
परिक्षित सत्राजित भगवान सूर्य नारायण का परम भक्त था भगवान सूर्यनारायण सत्राजित की उपासना से प्रसन्न होकर उसे स्यमन्तक नाम की मणि प्रदान की उस मणि के धारण कर जब सत्राजित द्वारका आया , द्वारका वासियों ने देखा कहने लगे वह देखो आज हमारे श्री कृष्ण का दर्शन करने साक्षात सूर्यनारायण आ रहे हैं |भगवान श्री कृष्ण ने कहा यह सूर्य नहीं सत्राजित है , जो मणि के प्रभाव के कारण सूर्य जैसे चमक रहे हैं |Bhagwat Mahapuran in Hindi pdf
एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन मणि को धारण करके शिकार करने के लिए वन में गया था, एक सिंह ने प्रसेन को मार दिया और उस मणि को मुंह से दबाकर जाने लगा | रिक्षरात जांबवान ने उस सिंह को मारकर मणि को स्वयं ले लिए और अपनी गुफा में आ गए बच्चों को मणि दिया , यहां जब कई दिनों से प्रशेन लौट कर नहीं आया तो सत्राजित समझ गया कि निश्चित ही श्रीकृष्ण ने प्रसेन को मारकर वह मणि स्वयं ले ली है |
यह बात उसने अपनी पत्नी से बता दी स्त्रियों के अंदर ज्यादा देर तक बात रहती नहीं है | सत्राजित की पत्नी ने उस बात को सभी द्वारका वासियों से कह दी द्वारका में हल्ला हो गया जब भगवान श्री कृष्ण के कानों में यह बात पहुंची उन्होंने नगर के कुछ व्यक्तियों को साथ में लिया और मणि के खोज के लिए निकल पड़े |
एक स्थान पर उन्होंने प्रशेन और घोड़ा को मरा हुआ पाया, पास मे सिंह के चरण चिन्ह को देखा तो उन चरण चिन्हों का पीछा किया तो सिंह को भी मरा हुआ पाया और उसके आगे रीक्ष के पैर को देखा और पैरों का पीछा करते-करते उस विशाल गुफा के पास पहुंच गए|
भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी साथी गणमान्य को गुफा के बाहर ही रोक दिया , भगवान श्री कृष्ण ने जैसे ही उस गुफा में प्रवेश किया और बालकों को उस मणि से खेलते हुए पाया भगवान श्रीकृष्ण ने उस मणि को छूने का प्रयास किया बालकों ने चिल्लाना प्रारंभ कर दिया |
रीक्षराज आए और भगवान श्री कृष्ण से युद्ध करने लगे रिक्षराज जांबवन और भगवान श्री कृष्ण के बीच सत्ताइस दिनों तक युद्ध चलता रहा अठ्ठाइसवें दिन श्रीकृष्ण ने एक मुष्टिका का प्रहार किया तो | ऋक्षराज जाबंवान की एक-एक हड्डियां टूटने लगी वह समझ गए और हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे हे प्रभु आप परब्रह्म परमात्मा इस जगत के आदि कारण साक्षात् नारायण हैं, आप कोई साधारण पुरुष नहीं है |
प्रभु जब त्रेता युग में रावण की मृत्यु के पश्चात जब आप से युद्ध की इच्छा प्रकट की थी जो आपने उस इच्छा को पूर्ण कर दिया , प्रभु आज्ञा दीजिए मैं आपकी क्या सेवा करूं भगवान श्री कृष्ण ने कहा रिक्षराज इस मणि के कारण हमें मिथ्या कलंक लगा है हम उसे लेने आए हैं , जांबवान ने जब यह सुना प्रसन्न हो गया अपनी पुत्री जाम्बवती का हाथ श्री कृष्ण के हाथों में थमा दिया मणि को श्रीकृष्ण को दहेज के रूप में दे दिया, भगवान श्री कृष्ण का दूसरा विवाह जाम्बवती से हुआ |
यहां गुफा के बाहर कई दिनों तक भगवान के साथी ने इंतजार किया और फिर वह लौट कर चले आए , यहां द्वारका वासी दुखी हो गए उन्होंने मां दुर्गा का अनुष्ठान किया जैसे ही पूर्णाहुति हुई कृष्ण जाम्बवती के साथ प्रकट हो गए|
Bhagwat Mahapuran in Hindi pdf
भागवत कथा के सभी भागों कि लिस्ट देखें
💧 💧 💧 💧
- आप के लिए यह विभिन्न सामग्री उपलब्ध है-
भागवत कथा , राम कथा , गीता , पूजन संग्रह , कहानी संग्रह , दृष्टान्त संग्रह , स्तोत्र संग्रह , भजन संग्रह , धार्मिक प्रवचन , चालीसा संग्रह , kathahindi.com
आप हमारे whatsapp ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें- click here
हमारे YouTube चैनल को सब्स्क्राइब करने के लिए क्लिक करें- click hear