Bhagwat Mahapuran pdf
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा
दशम स्कन्ध,भाग-16
सत्रजीत अपने अपराध का मार्जन करने के लिए अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया और श्री कृष्ण को स्यमन्तक मणि देने लगा श्री कृष्ण ने कहा इस मणि को अपने पास ही रखिए और इससे उत्पन्न होने वाला सोना राज्य कोष में सौंप दीजिए | सत्राजित उस मणि को लेकर लौट आया यहां भगवान श्री कृष्ण को पता चला लाक्षागृह में जलकर पांडव का प्राणांत हो गया है, भगवान श्री कृष्ण हस्तिनापुर चले आए |
( भगवान के विवाहों की वर्णन )
यहां अक्रूर और कृतवर्मा ने शतधन्वा को भड़काया की सत्राजित अपनी पुत्री का विवाह तुम्हारे साथ करना चाहता था परंतु सत्राजित ने अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया इसलिए तुम सत्रजीत को मारकर मणि को छीन लो|यहां शतधनवा रात्रि में सोते हुए सत्राजित का वध कर दिया और मणि को लेकर वहां से चले आया, यहां प्रातः काल जैसे ही सत्यभामा ने अपने पिता जी के मृत शरीर को देखा तो दहाड़ मार कर रोने लगी पिता के मृत शरीर को तेल की नौका में रखा और भगवान श्री कृष्ण को लेने हस्तिनापुर आई श्री कृष्ण ने जब यह सुना सत्राजित मारा गया दुखी हो गए |
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श्री कृष्ण ने दाऊ से कहा मणि शतधन्वा के पास नहीं है ,दाऊ दादा ने कहा तो किसके पास है , भगवान श्री कृष्ण के बातों को बलराम जी ने सुना तो कहा कृष्ण आप द्वारका जाइए मैं मिथिलापुरी जा रहा हूं | तुम वहां जाकर मणि का पता लगाओ |
अक्रूर जी ने जब यह सुना कि शतधन्वा भी मारा गया तो अक्रूर जी द्वारका छोड़ें काशी आ गए और उस स्वर्ण का सदुपयोग करने लगे बड़े-बड़े यज्ञ कराने लगे भगवान श्री कृष्ण समझ गए |
श्री कृष्ण ने अक्रूर जी को संदेश भिजवाया अक्रूर जी हमें पता है कि मणि आपके पास है आप उस मणि का सदुपयोग कर रहे हैं यज्ञ अनुष्ठान कर रहे हैं आप उस मणि को रखिए उस मणि को लेकर दाऊ दादा को मुझ पर संदेह है , इसलिए अक्रूर जी उस मणि को आप दाउ दादा को दिखा दीजिए |
श्री सुकदेव जी कहते हैं जो भी इस मणि की कथा को सुनाता है अथवा सुनता है उसका लगा हुआ झूठा कलंक मिट जाता है और भगवान के चरणों की भक्ति प्राप्त होती है |
परीक्षित यह तो हुई भगवान श्री कृष्ण के तीन विवाह की कथा और उनका चौथा विवाह कालिंदी के साथ हुआ जब भगवान श्री कृष्ण को यह पता चला कि पांडव लोग अभी जीवित है तो वह पांडव से मिलने हस्तिनापुर गए थे पांडवों ने श्री कृष्ण का स्वागत सत्कार किया।
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अहं देवस्य सवितुर्दुहिता पतिमिच्छती |
विष्णुं वरेण्यं वरदं तपः परममास्थिता |
मैं सूर्य नारायण की पुत्री कालिंदी हूं | श्री कृष्ण को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रही हूं, श्री कृष्ण ने जब यह सुना कालिंदी का हाथ पकड़ा उन्हें रथ में बिठाकर इंद्रप्रस्थ ले आए तथा शुभ मुहूर्त में उनसे विधिवत रूप से विवाह कर लिए |श्री कृष्ण का पांचवा विवाह मित्रविंदा से हुआ उज्जैन के बिंदु नाम के राजा थे वह दुर्योधन से पुत्री का विवाह करना चाहते थे परंतु मित्रविंदा श्री कृष्ण से प्रेम करती थी, श्रीकृष्ण ने बलपूर्वक हरण किया और मित्रवृंदा से विवाह किया |
छठवां विवाह श्री कृष्ण का सत्या के साथ हुआ कौशल देश के राजा नाग्नजिति के विवाह में यह शर्त थी जो भी साथ दुर्दांत बैलों को एक साथ नाथ देगा उसी के साथ में अपनी पुत्री का विवाह करूंगा , भगवान श्री कृष्ण ने सात रूप में विभक्त होकर साथ बैलों को एक साथ नाथ दिया प्रभु का विवाह नाग्नजिति ( सत्या ) से हुआ |
श्री कृष्ण का सातवां विवाह भद्रा से हुआ श्री कृष्ण की बुआ श्रुतकीर्ति कैकई देश में थी उनकी पुत्री का नाम भद्रा था उनके भाई शतर्दन ने जब भगवान श्री कृष्ण के गुण रूप आदि का वर्णन सुना तो भद्रा का विवाह श्री कृष्ण से कर दिया |
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श्री सुखदेव जी कहते हैं परीक्षित यह तो हुआ भगवान के आठ विवाह का वर्णन इसके अलावा भगवान के सोलह हजार एक सौ और विवाह हुए | महाराज परीक्षित कहते हैं गुरुदेव सोलह हजार एक सौ विवाह हमारे प्रभु के किस प्रकार हुए यह वृतांत हमें सुनाइए ? श्री सुकदेव जी कहते हैं |
हे राजन एक भौमासुर नाम का असुर बड़ा बलवान था उसने अपने कारागार में सोलह हजार एक सौ कुमारियो को बंदी बनाकर रखा हुआ था और तो और उसने अपने बल के कारण माता अदिति का कुंडल तथा देवताओं से उनका निवास स्थान मणि पर्वत छीन लिया था |
देवता जब भगवान श्री कृष्ण नारायण के पास आए तब भगवान श्री कृष्ण देवताओं की सहायता के लिए सत्यभामा को साथ लेकर गरुड पर सवार होकर भौमासुर की राजधानी प्रगज्योतिषपुर पहुंच गए और वहां पहुंचते ही अपना पाञ्चजन्य नामक शंख बजाया जिसे सुनकर उस नगर का एक रक्षक मुर दैत्य युद्ध करने आया श्री कृष्ण ने उस मुर नामक दैत्य का संघार कर दिया उस मुर नामक दैत्य के मारे जाने पर ताम्र आदि उसके सात पुत्र युद्ध करने आए | भगवान श्री कृष्ण ने सबका संघार कर दिया | भौमाशुर युद्ध
सबके मारे जाने पर भौमाशुर युद्ध करने आया उसने आते ही श्री कृष्ण पर सतघ्नी नामक अस्त्र चलाया श्रीकृष्ण ने उस शस्त्र को नष्ट कर दिया और अपने चक्र सुदर्शन का स्मरण किया कुंडल से सुशोभित भोमासुर का सर था उसको धड़ से अलग कर दिया, पृथ्वी देवी आई भौमासुर के कानों से कुंडल उतार लिया और भगवान श्री कृष्ण को प्रदान किया और उसने कहा प्रभु यह भौमासुर का पुत्र भगदत्त भयभीत है | श्रीकृष्ण ने भगदत्त को अभय प्रदान किया |हे राजन एक भौमासुर नाम का असुर बड़ा बलवान था उसने अपने कारागार में सोलह हजार एक सौ कुमारियो को बंदी बनाकर रखा हुआ था और तो और उसने अपने बल के कारण माता अदिति का कुंडल तथा देवताओं से उनका निवास स्थान मणि पर्वत छीन लिया था |
देवता जब भगवान श्री कृष्ण नारायण के पास आए तब भगवान श्री कृष्ण देवताओं की सहायता के लिए सत्यभामा को साथ लेकर गरुड पर सवार होकर भौमासुर की राजधानी प्रगज्योतिषपुर पहुंच गए और वहां पहुंचते ही अपना पाञ्चजन्य नामक शंख बजाया जिसे सुनकर उस नगर का एक रक्षक मुर दैत्य युद्ध करने आया श्री कृष्ण ने उस मुर नामक दैत्य का संघार कर दिया उस मुर नामक दैत्य के मारे जाने पर ताम्र आदि उसके सात पुत्र युद्ध करने आए | भगवान श्री कृष्ण ने सबका संघार कर दिया | भौमाशुर युद्ध
भगवान श्री कृष्ण ने महल में प्रवेश किया सोलह हजार एक सौ राजकुमारीयो को देखा तो कहा बताओ आप कहां जाना चाहती हो उन राजकुमारियों ने श्रीकृष्ण को देखा तो कहने लगी प्रभु हम आपको पति के रूप में वरण करना चाहती हैं |
श्री कृष्ण ने सोलह हजार एक सौ पालकी मंगवाई और सभी को द्वारिका भेज दिया श्री कृष्ण सत्यभामा के साथ देवराज की नगरी अमरावती पहुंचे वहां सत्यभामा को वहां लगा हुआ पारिजात का वृक्ष पसंद आ गया श्री कृष्ण उस वृक्ष को लेकर जाने लगे तो इंद्र युद्ध करने पे उतर आया श्रीकृष्ण ने क्षणभर में उसे पराजित कर दिया और पारिजात वृक्ष को लेकर आए और द्वारका में स्थापित किए और सोलह हजार एक सौ कुमारिओं के साथ उतने ही रूप धारण करके एक ही मुहूर्त में सभी कुमारियों के साथ विवाह किया |
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( श्री कृष्ण की सन्तति का वर्णन )
परीक्षित भगवान श्री कृष्ण की प्रत्येक पत्नियों से दस-दस पुत्रों की प्राप्ति हुई , उनमें से रुकमणी नंदन प्रद्युम्न का विवाह रूक्मवती से हुआ जिससे अनिरुद्ध का जन्म हुआ |अनिरुद्ध के विवाह के समय श्री कृष्ण बलराम रुक्मणी आदि सभी रानियां भोजकट देश पधारी अनिरुद्ध का विवाह निर्विघ्न संपन्न हुआ विवाह के पश्चात बलरामजी रुक्मी के साथ चौंसर खेलने लगे उसमें विजय तो बलराम जी की ही होती है परंतु कलिंग नरेश के बहकाने पर रुकमी कहता है ,मैं जीता मैं जीता तुम क्या जानो खेल यह चौसर राजाओं का खेल है |
रुक्मी के इस प्रकार कहने पर बलराम जी को क्रोध आ गया वह अपना मूसल उठाया उसके ऊपर ऐसा प्रहार किया कि उसका प्राणांत हो गया और कलिंग नरेश के एक मुट्ठी का प्रहार किया बत्तीस के बत्तीसों दांत टूट गए | श्री सुकदेव जी कहते हैं परीक्षित अनिरुद्ध का दूसरा विवाह बाणासुर की पुत्री उषा के साथ हुआ |
बाणः पुत्रशतज्येष्ठो बलेरासीन्महात्मनः|
एक दिन बाणासुर भगवान भोले बाबा के पास पहुंच गया और कहने लगा प्रभु त्रिलोकी में मुझ से युद्ध करने लायक कोई नहीं है इसलिए आप हमसे युद्ध करें |
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बाणासुर की पुत्री का नाम उषा था उषा ने एक दिन स्वप्न में किसी राजकुमार को देखा उसे देखते ही उससे प्रेम कर बैठी अपनी सखी चित्रलेखा को बुलाया उसने चित्रलेखा से कहा मेरे सपनों के राजकुमार को तुम ढूंढ के लाओ चित्रलेखा चित्र बनाने में बड़ी निपुण थी चित्रलेखा देवता गंधर्व सिध्द चारण सब के चित्र बनाएं उषा ने कहा इनमें से वह कोई राजकुमार नहीं था, अरे वह इनसे भी सुंदर था उसके बाद चित्रलेखा ने श्री कृष्ण का चित्र बनाया उषा ने कहा निश्चित ही वह राजकुमार इन्ही के वंश का होगा जैसे ही अनिरुद्ध का चित्र बनाया उषा ने देखा तो लज्जित हो गई |
चित्रलेखा समझ गई कि ऊषा के मन का राजकुमार यही है , चित्रलेखा कुंम्भान्ड की पुत्री थी और वह बड़ी योगिनी थी वह आकाश मार्ग से गई और रात्रि रात्रि में ही सोते हुए अनिरुद्ध को गायब कर के उषा के पास ले आई |
उसने जैसे ही अनिरुद्ध को देखा प्रसन्न हो गई और दोनों उसी महल में रहने लगे | एक दिन बाणासुर के सैनिकों ने उषा के कक्ष से किसी पुरुष के हंसने का स्वर सुना और उन्होंने महाराज बाणासुर से शिकायत कर दी , बाणासुर सेना लेकर आया और अनिरुद्ध को नागपास में बांधकर कारागार में डाल दिया |
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श्री कृष्ण ने जब यह सुना बारह अक्षौहिणी सेना को साथ लेकर बाणासुर पर आक्रमण कर दिया उस समय बाणासुर की तरफ से भोले बाबा युद्ध करने आए, श्री कृष्ण ने महादेव पर जिभांस्त्र का प्रयोग किया जिससे महादेव को जम्हाई आने लगी और वे युद्ध से विरक्त हो गए बाणासुर ने अपनी हजार भुजाओं में पांच सौ धनुष धारण करके प्रत्येक धनुष पर दो-दो बार चढ़ाया और श्रीकृष्ण पर उन बाणों को छोड़ दिया |
भगवान श्री कृष्ण ने बाणासुर के बाण के सहित धनुष को काट दिया और उसकी रथ ध्वजा सभी को नष्ट कर दिया, तब बाणासुर वहां से भागा भगवान शंकर ने श्रीकृष्ण पर माहेश्वर ज्वर को छोड़ दिया वह ज्वर दसों दिशाओं को जलाता हुआ प्रभु श्री कृष्ण की तरफ बढ़ा, श्री कृष्ण ने भी वैष्णव ज्वर को छोड़ दिया वैष्णव ज्वर के तेज से महेश्वर ज्वर जलने लगा उसने हाथ जोड़कर भगवान की स्तुति की-
नमामि त्वानन्तशक्तिंपरेशं सर्वात्मानं केवलं ज्ञाप्तिमात्रम् |
विश्वोत्पत्तिस्थानसंरोधहेतुं यत्तद् ब्रम्ह ब्रम्हलिङ्गं प्रशान्तम् ||
प्रभु मैं आपको नमस्कार करता हूं आप की शक्ति अनंत है आप ब्रह्मा आदि ईश्वरो के भी ईश्वर है विश्व के उत्पत्ति स्थिति और संघार के आप ही एकमात्र हेतु हैं, महेश्वर ज्वर ने जब इस प्रकार स्तुति की तो श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए तो उन्होंने वरदान दे दिया संसार में जो भी मनुष्य इस स्तुति का पाठ करेगा वह ज्वर से मुक्त हो जाएगा |इसी समय बाणासुर युद्ध करने आया और क्रोध में आकर बाणों की वर्षा करने लगा उस समय भगवान श्री कृष्ण ने अपना चक्र सुदर्शन छोड़ा जो बाणासुर की हजार भुजाओं को काटने लगा यह देख भोले बाबा श्री कृष्ण की शरण में आए प्रार्थना किया हे प्रभु आप इसे जीवनदान दे दीजिए |
भगवान श्री कृष्ण ने कहा प्रभु प्रहलाद जी को मैंने वरदान दिया था कि तुम्हारे वंश में उत्पन्न होने वाले किसी भी राजा का वध मैं नहीं करूंगा इसकी मैंने भुजा यह इसलिए काटी क्योंकि इसको अपनी भुजाओं का अभिमान था अब इसकी मात्र चार भुजाएं हैं अब यह वैष्णव है यह आपका पार्षद हो गया है | भौमासुर ने श्री कृष्ण के चरणों में प्रणाम किया और अपनी पुत्री उषा का विवाह अनिरुद्ध के साथ धूमधाम से किया |
बोलिए भक्तवत्सल भगवान की जय
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