भागवत कथा दशम स्कन्ध,भाग-6 Bhagwat Katha

श्रीमद्भागवत महापुराण साप्ताहिक कथा
दशम स्कन्ध,भाग-6
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा Bhagwat Katha story in hindi
द्रोणो  वसूनां   प्रवरो   धरया  सह  भार्यया  । 
करिष्यमाण  आदेशान्   ब्रह्मणस्तमुवाच ह  ।। १०/८/४८

( यमलार्जुन का उद्धार )

परीक्षित नंदबाबा पूर्व जन्म में द्रोण नाम के वसु थे और यशोदा जी धरा थी | ब्रह्मा जी के आदेश देने पर जब इन्होंने भगवान श्रीहरि की आराधना की भगवान श्री हरि  प्रसन्न  हो गए भगवान से इन्होंने वरदान मांगा हमें आप की बाल लीलाओं का आनंद प्राप्त हो, भगवान श्री हरि ने कहा ऐसा ही होगा | परीक्षित आज इसी कारण नंद और यशोदा को भगवान की बाल लीलाओं का सौभाग्य प्राप्त हुआ |

एकदा गृहदासीषु यशोदा नन्दगेहिनी  । 
कर्मान्तर नियुक्तासु निर्ममन्थ स्वयं दधि ।। १०/९/१
एक दिन मैया यशोदा घर की अन्य  दासियो को दूसरे कामों में लगा स्वयं  दही मंथन करने लगी , उसी समय कन्हैया आए मैया की गोद में चढ़ गए मैया ने दधि मंथन बंद कर दिया कन्हैया को दूध पिलाने लगी | इसी समय मैया की दृष्टि आग में  चढ़े  हुए पर्व गंधा गाय के दूध पर पड़ी  जो उफन कर अग्नि में गिर रहा था |

मैया ने जैसे ही देखा अतृप्त अवस्था में कन्हैया को छोड़ दूध उतारने के लिए दौड़ी , यह देख कन्हैया को क्रोध आ गया उन्होंने एक पत्थर उठाया और दही के मटके को फोड़ दिया और बाहर आकर उल्टे ऊखल के ऊपर आकर बैठ स्वयं बासी मक्खन खाने लगे |

और जब मैया दूध उतार के आई और उन्होंने कई पीढ़ियों दादा - बाबा के जमाने का मटके को फूटा हुआ देखा और कन्हैया को बाहर उल्टे उखल के ऊपर बासी मक्खन खाते हुए देखा , मैया को क्रोध आ गया |

भागवत कथा - Bhagwat Katha

उन्होंने छड़ी उठाई और कन्हैया को पकड़ने के लिए दौड़ी , कन्हैया ऊखल से कूद कर भागे आगे आगे कन्हैया पीछे पीछे मैया | मैया थक गई पसीने से लथपथ हो गई तो |

कृपयाशीत स्वबन्धने,, कन्हैया स्वतः मैया के हाथों में पकड़ में आ गए | मैया ने सोचा कन्हैया बहुत डर गया है, कहीं भाग ना जाए इसलिए छड़ी फेंक दी और कन्हैया को ऊखल से बांधने का प्रयास करने लगी | जिस भी रस्सी से  बांधती वह दो अंगुल छोटी पड़ जाती , मैया आश्चर्य में पड़ गई जब मैया थक गई तो कृपा पूर्वक भगवान श्रीकृष्ण स्वतः बंध गऐ | मैया जब घर के दूसरे कामों में लग गई तो कन्हैया की दृष्टि सामने खड़े हुए दो यमला-अर्जुन के वृक्षों पर पड़ी | जो पूर्व जन्म में कुबेर के लड़के नलकूबर और मणिग्रीव थे|

एक दिन यह मदिरा के नशे में मदोन्मत्त हो मंदाकिनी नदी मे अप्सराओं के साथ जल क्रीडा कर रहे थे | उसी समय देवर्षि नारद वहां से निकले अप्सराओं ने देवर्षि नारद को देखा तो वस्त्र पहन लिए , परंतु यह दोनों उसी प्रकार जल क्रीड़ा करते रहे |

जिससे देवर्षि नारद को क्रोध आ गया देवर्षि नारद ने कहा-- तुम वृक्ष के समान खड़े हो जाओ वृक्ष हो जाओ | जब इन्होंने अनुनय विनय किया तो देवर्षि नारद ने कहा द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण तुम्हारे उद्धार के लिए आएंगे |

आज भगवान श्री कृष्ण ने उन दोनों व्यक्तियों को देखा तो धीरे-धीरे ऊखल को घसीटते हुए इन  वृक्षों के पास पहुंच गए स्वयं तो  वृक्षों के बीच से निकल गए परंतु ऊखल तिरछा हो फस गया कन्हैया ने थोड़ा सा जोर लगाया जिससे वृक्ष जड़ से उखड़ कर गिर गए | उनसे  दो  दिव्य पुरुष प्रकट हुए उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान की स्तुति की--
वाणी  गुणानुकथने श्रवणौ कथायां हस्तौ च कर्मसु मनस्तव  पादयोर्न: ।
स्मृत्यां  शिरस्तव निवास जगत्प्रणामे दृष्टि: सतां दर्शनेऽस्तु भवत्तनूनाम् ।। १०/१०/३८
प्रभु हमारी वाणी निरंतर आपके गुणों का वर्णन करती रहे , कानों में हम सदा आपकी ही कथा का श्रवण करते रहे, हाथ आपकी सेवा में निरंतर लगे रहें, मन आपके चरण कमलों का स्मरण करता रहे , सिर आपके सामने झुका रहे, आंखों से हम संतों का दर्शन करें |

इस प्रकार स्तुति कर नलकूबर और मणिग्रीव ने भगवान के चरणों में प्रणाम किया उनकी परिक्रमा की और अपने लोक को चले गए|

यहां ब्रज वासियों ने  वृक्षों के गिरने की आवाज सुनी तो दौड़े-दौड़े आए नंद बाबा ने कन्हैया को ऊखल से खोला पूछा कन्हैया तुझे कौन बांध दिया था |

कन्हैया ने कहा मैया ने बांध दिया था नंद बाबा ने कहा कन्हैया  अब मैया के पास मत जइयो , कन्हैया ने कहा ठीक है बाबा मैं मैया के पास नहीं जाऊंगो, एक गोपी ने पूछा कन्हैया जब मैया के पास नहीं जाओगे तो दूध किसका पियोगे | तो कन्हैया ने कहा गय्या मैया को पियोंगो , सारा दिन कन्हैया नंद बाबा के पास रहे रात्रि में जब बाबा के पास सोए तो यहां कन्हैया को नींद ना आए और वहां मैया को नींद ना आए |

बाबा ने पूछा  कन्हैया क्या हुआ कन्हैया ने  कहा बाबा मोय मैया की याद आ रही है | कन्हैया मैया के पास उठ कर आ गए मैया कन्हैया को देखा ह्रदय से लगा लिया | कहा कन्हैया तू मोय छोड़कर कभी मत जइयो , कन्हैया ने कहा हां मैया तोको छोड़कर कभी ना जाऊंगो |

( फल वाली पर कृपा )

परीक्षित एक दिन एक फल वाली फल बेचने आई ,सुबह से शाम हो गई परंतु किसी ने उसके फल नहीं खरीदे | कन्हैया को दया आ गई कन्हैया ने कहा मैया इसमें से कुछ फल हमें भी मिलेंगे , फलवाली ने कन्हैया की छोटी सी अंजलि को फलों से भर दिया |

कन्हैया घर के अंदर आए अपनी छोटी सी अंजलि में अनाज ले आए और फल की टोकरी में डाल दिए | जब फल वाली अपने घर लौट कर आई तो उसने देखा उसकी टोकरी रत्नों से भरी हुई है ,वह गदगद हो गई

( गोकुल से वृंदावन जाना )

गोकुल में जब अनेकों प्रकार के उत्पात होने लगे तब गोपो में वयोवृद्ध उपनन्द  नाम के गोप ने ब्रज वासियों से कहा-- यदि आप सभी कन्हैया, ग्वाल बालों और गायों का हित चाहते हो तो हमें अब यहां से अन्यत्र जाना चाहिए | एक गोप ने कहा गोकुल को छोड़कर हम कहां जाएंगे तब उपनंद ने कहा--
वनं वृन्दावनं नाम पशव्यं नवकाननम् । 
गोपगोपीगवां सेव्यं पुण्याद्रितृण वीरूधम् ।। १०/११/२८
एक वृंदावन नाम का बड़ा ही पवित्र वन है , जो गोप गोपी और गायों के लिए सेवनीय है | वहां पवित्र यमुना नदी है और अनेकों उपवन है | उपनन्द ने जब इस प्रकार कहा सभी गोपों ने उनका अनुमोदन किया और छकडो में समान रख  वृंदावन की यात्रा की | वृंदावन की महिमा का वर्णन करते हुए श्री प्रबोधानंद सरस्वती अपने वृंदावन महिमामृतं नाम के ग्रंथ में कहते हैं--

भ्रातस्तिष्ठ तले तले विटपि नाम ग्रामेषु भिक्षामट्, स्वछन्दं पिब  यामुनां जल मलं चिराणि कन्थां कुरू। सम्मानं कलयाति घोर  गरलं नीचापमानं सुधा, श्री राधा मुरली धरौ भज सखे वृन्दावनं  मात्यजं
भैया किसी वृक्ष के नीचे बैठ जाना, गांव से भिक्षा मांग कर पेट भर लेना, पवित्र यमुना नदी के जल का पान कर लेना, जो कुछ भी  फटे पुराने वस्त्र मिल जाए उसे पहन  लेना, सम्मान को घोर विष के समान समझना और नीचे के द्वारा किए गए अपमान को अमृत समझते हुए निरंतर श्री राधा कृष्ण का भजन करना |

परंतु वृंदावन का  त्याग कभी मत करना | भगवान श्री कृष्ण और बलराम ने वृंदावन की शोभा को देखा तो प्रसन्न हो गए जब कुछ बड़े हो गए तो बछड़े चराने लगे

( वत्सासुर का उद्धार )

एक दिन श्रीकृष्ण बछड़े चरा रहे थे, उसी समय एक  वत्सासुर  नाम का असुर बछड़े का रूप धारण कर बछड़ो के झुंड में मिल गया | श्री कृष्ण उसे देखते ही पहचान गए धीरे से उसके पास गए उसकी पूंछ और पैर पकड़कर आकाश में घुमाया और पृथ्वी में पटक दिया | जिससे उसका गोविंदाय नमो नमः हो गया |

( बकासुर का उद्धार )

एक दिन भगवान श्रीकृष्ण बछड़े को जल पिला रहे थे | उसी समय बकासुर नाम का दैत्य बगुले का रूप धारण कर वहां आ गया और श्रीकृष्ण को निगल गया, श्रीकृष्ण ने आग के समान अपने शरीर को गर्म कर लिया जिससे श्रीकृष्ण को उसने उगल दिया और चोच से प्रहार करने लगा |भगवान श्री कृष्ण ने उसकी दोनों चोचो को पकड़ा और बीच से फाड़ दिया, जिससे उसका गोविंदाय नमो नमः हो गया |

( अघासुर का उद्धार )

एक दिन भगवान श्री कृष्ण ने ग्वाल वालों के साथ एक भोज का आयोजन किया | प्रातः काल सभी ग्वाल बाल कलेबा ले | अपने घर से निकल पड़े वन में अनेकों प्रकार के खेल खेलने लगे जब भगवान श्री कृष्ण वृंदावन की शोभा देखते हुए आगे निकल जाते, तो ग्वाल बालों में होड़ मच जाती |

पहले मैं पहुंचुगो - पहले मैं पहुचूगो , ग्वाल बाल कभी किसी का छीका बेट और  श्रृंगी चुरा लेते और बाद में उसे दे देते | ग्वाल बालों की इस आनंद  क्रीडा को अघासुर नहीं देख सका और विशाल अजगर का रूप धारण कर ग्वाल बालों के मार्ग में लेट गया |

ग्वाल वालों ने उस अजगर को देखा तो उसे वृंदावन की कोई  शोभा समझने लगे | एक ग्वाल बाल ने कहा मित्रों यह देखो यह गुफा ऐसे प्रतीत हो रही है , जैसे अजगर का खुला हुआ मुख हो | दूसरे ने कहा भैया यहां बादल आ जाने से सूर्य की किरणों से जो लाल लाल प्रकाश झलक रहा है, वह ऐसा लग रहा है मानो अजगर का ऊपर और नीचे का होंठ हो |

तीसरे ने कहा यहां के जो गिरी कंदराए हैं यह ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे अजगर के जबड़े और दात हो चौथे ने कहा भैया यह जो लाल लाल सड़क जा रही है वह तो ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे अजगर की जीभ हो | पांचवे ने कहा भैया यहां जंगल में आग लगी हुई है जिससे मरे हुए जीवो की ऐसे दुर्गधं आ रही है जैसे अजगर के पेट में मरे हुए जीवो की हो |

एक ने कहा सचमुच में अगर हुआ तो ? ग्वाल बालों ने कहा यदि यह सत्य में अजगर हुआ तो कन्हैया ने जैसे बकासुर को मार दिया था, उसी प्रकार वह इसको भी मार कर हमारी रक्षा करेगा | ऐसा कहते हुए ग्वाल बाल अघासुर के मुख में प्रविष्ट हो गए |

भागवत कथा के सभी भागों कि लिस्ट देखें 

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https://www.bhagwatkathanak.in/p/blog-page_24.html

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नोट - अगर आपने भागवत कथानक के सभी भागों पढ़  लिया है तो  इसे भी पढ़े यह भागवत कथा हमारी दूसरी वेबसाइट पर अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी है 

श्री भागवत महापुराण की हिंदी सप्ताहिक कथा जोकि 335 अध्याय ओं का स्वरूप है अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका है और वह क्रमशः भागो के द्वारा आप पढ़ सकते हैं कुल 27 भागों में है सभी भागों का लिंक नीचे दिया गया है आप उस पर क्लिक करके क्रमशः संपूर्ण कथा को पढ़कर आनंद ले सकते हैं |

भागवत कथा - Bhagwat Katha 


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