भागवत कथा,दशम स्कन्ध,भाग-7

श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा
दशम स्कन्ध,भाग-7
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा Bhagwat Katha story in hindi
सभी ग्वाल बाल अघासुर के मुख में प्रवेश हो गए परंतु अघासुर ने मुख बंद नहीं किया वह श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा कर रहा था, भगवान श्री कृष्ण ने देखा की ग्वाल बाल अघासुर के मुख में प्रविष्ट हो गए हैं तो दौड़े-दौड़े अघासुर के मुख में घुस गए |

(अघासुर का उद्धार )

अघासुर जैसे ही मुख बंद करना चाहा तो श्रीकृष्ण ने इतना बड़ा आकार धारण कर लिया कि अघासुर का श्वास रुक गया और उसका गोविंदाय नमो नमः हो गया|

भगवान श्री कृष्ण ने सभी ग्वाल बालों को बाहर निकाला फिर स्वयं बाहर निकले उस समय अघासुर के शरीर से एक दिव्य ज्योति निकली जो श्री कृष्ण के चरणों में समा गई |भगवान श्री कृष्ण ने अपनी अमृत मई दृष्टि से ग्वाल वालों को जीवित कर दिया , यह देख देवता  पुष्प बरसाने लगे ढोल नगाड़े बजाने लगे इतनी जोर  का उत्सव हुआ कि, ढोल- नगाड़े की ध्वनि ब्रह्मा जी के कानों तक पहुंच गई |

ब्रह्मा जी ने जब यह ध्वनी सुनी  विचार करने लगे पृथ्वी में इस समय कौन सा उत्सव चल रहा है, देखने चलना चाहिए |

श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

यहां भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल वालों के साथ यमुना के पुलिन में आए, वहां बछड़ो को जल पिलाया और हरी हरी घास चरने के लिए छोड़ दिया और स्वयं ग्वाल वालों के साथ वहीं जमुना के पुलिन में बैठ गए | मध्य में भगवान श्रीकृष्ण और चारों तरफ है घेरा बनाकर ग्वाल बाल बैठ गए भगवान श्री कृष्ण की बड़ी दिव्य शोभा हुई |

बिभ्रद्  वेणुं जठरपटयो: श्रृंगवेत्रे च  कक्षे
वामे पाणौ  मसृणकवलं  तत्फलान्यड़्गुलीषु। 
तिष्ठन्  मध्ये स्वपरिसुहृदो  हासयन् नर्मभि:स्वै:
स्वर्ग लोके  मिषति  बुभुजे यज्ञभुग् बालकेलि: ।। 
१०/ १३/११
भगवान श्री कृष्ण ने अपनी मुरली को कमर के सेट मे खोस रखे हैं, कांख में श्रृग्ड़ी दबा रखी है बाएं हाथ में दधि मिश्रित भात का कौर था और दाहिने हाथ की अंगुलियों में अदरक नींबू और आंवला मिर्च आदि के अचार को दबा रखा है|ग्वाल वालों के साथ हंसी मजाक करते हुए भोजन करने लगे, सभी ग्वाल वाल अपने घर से लाया हुआ भोजन कन्हैया को खिलाने लगे|

इसी समय एक बिल्बमंगल नाम का गोप अपने घर से खट्टी छांछ लाया था, उसने सोचा यह खट्टी छाछ में कन्हैया को कैसे पिलाऊँ, इसलिए वह अकेला ही इस छाछ को पीने लगा कन्हैया ने जब यह देखा दौड़कर उसके पास पहुंचे उसके मुख में अपना मुख लगाया जोर से गालों में एक गुल्चा दिया जिससे उसके मुख की छाछ कन्हैया के मुख में आ गई |

थोड़ी बहुत जो उसके शरीर में पड़ गई कन्हैया  उसे चाटने लगे | ब्रह्मा जी आकाश में खड़े-खड़े यह सब देख रहे थे देखा तो मोहित हो गए , सोचने लगे यह कैसा परमात्मा है जिसे  शुद्धि और अशुद्धि का ज्ञान नहीं है ,इसकी परीक्षा लेनी चाहिए |

श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

ब्रह्माजी घांस चरते हुए बछड़ों को छुपा दिया ग्वाल बालों को जब बछड़े दिखाई नहीं दिए सभी दुखी हो गए कन्हैया ने कहा मित्रों आप सभी भोजन करो मैं अभी सभी बछड़ों को लेकर आता हूं | जब श्रीकृष्ण बछड़ों को ढूंढने के लिए निकले तो ब्रह्माजी ने ग्वाल वालों को भी छिपा दिया |

जब वन में बछड़े नहीं मिले तो कृष्ण वापस यमुना के पुलिन में लौट आए और वहां ग्वाल बालों को नहीं देखा तो ध्यान लगाकर देखा तो समझ गए कि यह ब्रह्मा जी की करतूत है |वे अपनी योग माया से-
यावद् वत्सपवत्सकाल्पकवपुर्यावत् कराड़्घ्र्यादिकं
यावद् यष्टिविषाणवेणुदलशिग् यावद्विभूषाम्बरम् |
यावच्छीगुणाभिधाकृतिवयो यावद्विहारादिकं
सर्वं विष्णुमयमगिरोङ्गवदजः सर्वस्वरूपो बभौ |

जितने भी ग्वाल बाल थे, उनकी जैसी आयु थी , छोटा बड़ा जैसा उनका शरीर था, उनके हाथ में जैसे छड़िया श्रृग्ड़ी थी, उन्होंने जैसे-जैसे वस्त्र पहने थे और आभूषण पहने तो भगवान श्रीकृष्ण ने सभी का रूप धारण कर लिया और सायं काल व्रज में प्रवेश किया |

ग्वाल बालों की माताएं प्रतिदिन ग्वाल बाल बने हुए श्री कृष्ण को नहलाती उनका श्रृंगार करती है और फिर बड़े दुखी मन से बछड़ा चराने के लिए वन में भेजती | एक वर्ष पूरा होने में पांच-छह दिन बचे थे उस समय गोवर्धन की तलहटी में बलराम जी कृष्ण जी के साथ बछड़े चरा रहे थे |

गोवर्धन पर्वत के शिखर पर गोपगण गौवे चरा रहे थे गौवो की दृष्टि जैसे ही अपने बछड़ों पर पड़ी वह वहां से बछड़ों से मिलने के लिए दौड़ी | गोपों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया परंतु वह नहीं रुकी गोपों को अत्यधिक क्रोध आया!

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गौवें बछड़ों के पास आकर दूध पिलाने लगी, गोपों ने जब नीचे अपने बच्चों को देखा उनका क्रोध शांत हो गया उन्होंने अपने बालकों को गोद में उठा लिया | बलराम जी ने जब यह देखा विचार करने लगे श्री कृष्ण के होते हुए इन गोपो को अपने पुत्रों पर इतना स्नेह कैसे हो सकता है , ध्यान लगाकर देखा तो सब के रूप में कृष्ण दिखाई दिए उन्होंने कृष्ण से पूछा--

नैते सुरेशा ऋषयो न चैते 
त्वमेव भासीश भिदाश्रयेपि |
सर्वं पृथक्त्वं निगमात् कथं वदे
त्युक्तेन वृत्तं प्रभुणा बलोवैत् |
कन्हैया यह ग्वाल बाल और बछड़े ना तो देवता हैं, और ना ही ऋषि हैं, सभी के रूप में आप दिखाई देते हो इसका क्या कारण है | भगवान श्री कृष्ण ने कहा दाऊ दादा ब्रह्मा जी ने मेरी परीक्षा लेने के लिए ग्वाल बाल और बछड़ों को अपनी माया से छिपा दिया है , इसलिए सभी के रूपों में मैं दिखाई दे रहा हूं |

भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कि यदि ब्रह्मा जी को आने में थोड़ी भी देर हो गई तो ग्वाल बालों का संपूर्ण जीवन  व्यतीत हो जाएगा | भगवान श्रीकृष्ण ब्रह्मा जी का रूप धारण कर सत्यलोक पहुंचे वहा द्वारपालों से कहा मैं विश्राम करने जा रहा हूं आजकल बहुत से नकली ब्रह्मा घूम रहे हैं यदि तुम्हें कोई दूसरा ब्रह्मा दिखाई दे तो उसे अंदर मत आने देना |

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ऐसा कह श्री कृष्ण अंदर आ गए ब्रह्मा जी जब आए तो द्वारपालों ने अंदर आने से रोक दिया ब्रह्मा जी को कहा द्वारपालो मैं तुम्हारा स्वामी हूं , द्वारपालों ने कहा हमारे स्वामी तो अंदर विश्राम कर रहे हैं द्वारपालों ने ब्रह्माजी की एक ना सुनी उन्हें वहां से भगा दिया |

ब्रह्मा जी लौटकर गोकुल आए उन्होंने श्रीकृष्ण को ग्वाल बाल और बछड़ों के साथ पहले के ही समान खेलते देखा तो आश्चर्य में पड़ गए | दौड़े-दौड़े उस स्थान पर आए जहां ग्वाल बाल और बछड़ों को छुपा कर रखा था तो वह सब वहीं सोते हुए दिखाई दिए |

ब्रह्मा जी विचार करने लगे भगवान श्री कृष्ण के साथ में जो खेल खेल रहे हैं वह असली है कि यह जो सो रहे हैं इसी समय ब्रह्मा जी ने बछड़े और ग्वाल वालों सभी के रूप में श्रीकृष्ण को देखा और अगले ही क्षण देखा श्री कृष्ण बाएं हाथ में दधि भात का कौर लिए वन वन बछड़ों को ढूंढ रहे हैं | ब्रह्मा जी समझ गए जिसे मैंने साधारण बालक समझा वे परब्रह्म परमात्मा श्री कृष्ण हैं, चरणों में गिर गए हाथ जोड़कर स्तुति की--
नौमीड्य तेभ्रवपुषे तडिदम्बराय
गुञ्जावतंसपरिपिच्छलसन्मुखाय |
वनियस्रजे कवलवेत्रविषाण वेणु
लक्ष्मश्रिये मृदुपदे पशुपाङ्गजाय |

श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

हे स्तुत्वपुरुष आपको मेरा नमस्कार है , प्रभो आपने मेंघ के समान श्यामल वर्ण में ( श्यामल शरीर में ) पीतांबर धारण कर रखा है, गले में गुंजा की माला , मस्तक में मयूर प्रच्छ, कंठ में वनमाला धारण कर रखी है, आपके बाएं हाथ में दही भात का कौर है, बगल में वेंट और श्रृग्ड़ी को आपने दबा रखा है, सेंट में बांसुरी को खोस के रखा है  आपके चरण अत्यंत सुकोमल हैं | प्रभु आपका जो यह गोपाल का वेश है यह आपने मुझ पर कृपा करने के लिए धारण किया है |
तत्तेनुकम्पां सुसमीक्षमाणो भुञ्जान एवात्मकृतं विपाकम् |
हद्वाग्वपुर्भिर्विदधन्नमस्ते जीवेत यो मुक्तिपदे स दायभाक् |
प्रभो जो आपकी कृपा का अनुभव करता है प्रारब्ध से जो कुछ भी प्राप्त होता है उसमें ही संतुष्ट रहता है और ह्रदय वाणी से अपने आपको आपके चरणों में समर्पित कर देता है, वह जैसे पिता की संपत्ति पर पुत्र का अधिकार होता है वैसे ही वह मुक्ति का अधिकारी हो जाता है |

प्रभु जैसे माता के गर्भ में बच्चा अपने हाथ पैर पीटता है परंतु माता उसे अपराध नहीं समझती ऐसी संपूर्ण ब्रह्मांड आपके उदर में स्थित है मैं आपका पुत्र हूं इसलिए मेरे किए हुए अपराध को क्षमा कीजिए |

श्रीमद्भागवत महापुराण कथा

अहो भाग्यमहो भाग्यं नन्दगोपव्रजौकसाम् |
यन्मित्रं परमानन्दं पूर्णं ब्रम्हसनातनम् |
अहा नंद आदि सभी व्रजवासी परम सौभाग्यशाली हैं, जिनका मित्र परब्रह्म परमात्मा है ,भक्त श्री लीला शुक जी कहते हैं--
गोपालाजिर कर्दमे बिहरसे विप्राद्ध्वरे लज्जसे
ब्रूसे गोधन हुंकृते स्तुति सतै र्मौनंविधत्सेसतां |
दास्यं गोकुल पुंश्चलीसुपुरुषेस्वाम्यं नदान्तात्मसु
ज्ञातं क्रष्णतवार्घिं पकंज युगं प्रेमैकलभ्यं परमं |
प्रभु आप गोकुल के कीचड़ में लोटपोट करते हो, उसमें विहार करते हो परंतु ब्राह्मणों की पवित्र यज्ञशाला में आने से आपको लज्जा आती है ,गायों की हुंकार करने पर आप उनके आगे पीछे डोलते हो उनसे बातें करते हैं और विद्वानों के द्वारा अनेकों प्रकार से की हुई स्तुति के द्वारा आप मौन धारण कर लेते हो, गोपियों की दासता स्वीकार करते हो और जितेंद्रिय के  स्वामी बनने में संकोच करते हो ,प्रभु मैं समझ गया प्रेम ही आपकी प्राप्ति का एकमात्र साधन है |

ब्रह्मा जी ने चालीस श्लोको से स्तुति कि परंतु भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न नही हुए | अंत में ब्रह्मा जी भगवान श्री कृष्ण के चरणों में प्रणाम किया उनकी परिक्रमा की और ग्वाल बालों को जीवित तथा स्वस्थ्य किया और अपने धाम को चले गए |

यहां ग्वाल बालों ने बछड़ों को लाते हुए श्रीकृष्ण को देखा तो कहने लगे कन्हैया जल्दी आओ तुम्हारे बिना अभी हमने एक कौर भी नहीं खाया | श्री कृष्ण ने ग्वाल बालों के साथ भोजन किया और व्रज की यात्रा की | आज एक वर्ष के पश्चात ग्वाल बालों ने अपने घर में जाकर बताया आज कन्हैया ने एक बड़ा भारी अजगर को मारा |

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https://www.bhagwatkathanak.in/p/blog-page_24.html

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नोट - अगर आपने भागवत कथानक के सभी भागों पढ़  लिया है तो  इसे भी पढ़े यह भागवत कथा हमारी दूसरी वेबसाइट पर अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी है 

श्री भागवत महापुराण की हिंदी सप्ताहिक कथा जोकि 335 अध्याय ओं का स्वरूप है अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका है और वह क्रमशः भागो के द्वारा आप पढ़ सकते हैं कुल 27 भागों में है सभी भागों का लिंक नीचे दिया गया है आप उस पर क्लिक करके क्रमशः संपूर्ण कथा को पढ़कर आनंद ले सकते हैं |

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