श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

दशम स्कन्ध,भाग-8
परीक्षित जब भगवान श्रीकृष्ण ने 6 वर्ष के हो गए तो गोपाष्टमी को उन्होंने गायों की पूजा की और गायों को चराने लगे | एक दिन वन में गौवें चरा रहे थे उसी समय श्रीदामा नाम के ग्वाल ने श्री कृष्ण और बलराम से कहा भैया यहां से कुछ ही दूर पर बड़ा ही सुंदर ताल का वन है जहां इस समय ताल के फल पके हुए हैं ,जो बड़े ही स्वादिष्ट हैं| खाने की हमें बहुत इच्छा है परंतु गधे के रूप में वहां एक धेनुकासुर नाम का असुर रहता है, जो उन फलों को हाथ भी नहीं लगाने देता|धेनुकासुर का उध्दार
श्री कृष्ण और बलराम ने जब यह सुना ताल वन पहुंच गए बलराम जी ने एक वृक्ष को पकड़ कर हिला दिया जिससे सभी फल पृथ्वी में गिर गए | फलों के गिरने का स्वर जब धेनुका सुर ने सुना दौड़ता हुआ बलराम जी को मारने आया |बलराम जी ने उसके पीछे के दोनों पैरों को पकड़ा उसे आकाश में घुमाया और एक पेड़ से दे मारा जिससे उसका गोविंदाय नमो नमः हो गया | उसके और साथी युद्ध करने आए तो श्री कृष्ण और बलराम ने उनका भी गोविंदाय नमो नमः कर दिया |
( कालिया मर्दन लीला )
परीक्षित- एक दिन जब भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल वालों के साथ गौवे चरा रहे थे गर्मी का समय था गायों को बहुत जोर की प्यास लगी अनजान में गायों ने काली दह का विषैला पानी पी लिया जिससे उनका प्रणान्त हो गया |भगवान श्री कृष्ण ने अपने अमृत मई दृष्टि से उन्हें पुनः जीवित कर दिया और कालिया नाग को बाहर निकालने की इच्छा से ग्वाल वालों के साथ गेंद खेलने लगे जब भगवान श्री कृष्ण की हाथ में गेंद आई तो उन्होंने ऐसी गेंद फेंकी कि वह सीधे जाकर काली दह में गिरी वह |
गेंद श्रीदामा की थी श्रीदामा हट करने लगे कन्हैया मेरी गेद लाकर दो मैं उसी गेंद को ही लूंगा, दूसरी नहीं लूंगा | श्रीदामा के इस प्रकार हठ करने पर कन्हैया एक विशाल कदम के वृक्ष में चढ़ गए कमर में सेट बांधा और ताल ठोक कर काली दह में कूद गए |
काली दह में कूदने से उसका जल उछलने लगा कालिया नाग जल के उछलने की आवाज सुनी तो श्रीकृष्ण के सामने आ गया उसने श्रीकृष्ण को अपने भुज पास में बांध लिया | गाय, ग्वाल - बाल बछड़ो ने श्री कृष्ण को भुज पास मे बंधा देखा तो हाहाकार करने लगे |
यहां व्रज में अनेकों अपशगुन दिखाई देने लगे उस समय मैया यशोदा नंद आदि सभी बृजवासी श्रीकृष्ण को ढूंढने चल दिए और काली दह में श्रीकृष्ण को बंधा हुआ देखा तो मैया यशोदा और नंद काली दह में छलांग लगाने लगे |
बलराम जी ने श्री कृष्ण की महिमा का वर्णन कर उन्हें रोक लिया श्रीकृष्ण ने देखा कि बृजवासी दुखी हो रहे हैं तो उन्होंने अपने शरीर को फुलाया जिससे कालिया नाग का शरीर फटने लगा, उसने श्रीकृष्ण को छोड़ दिया और उन्हें डसने के लिए फन उठाकर पैतरा बदलने लगा |
श्री कृष्ण अवसर पाकर एक छलांग लगाकर उसके फन मे चड़ गए और नृत्य करने लगे कालिया नाग के 101 फड़ थे | वह जिसको ना झुकाता श्रीकृष्ण अपने पैरों की चोट से कुचल देते जिससे उसके फड़ छत विछत हो गए वह खून की उल्टियां करने लगा | उस समय नाग पत्नियां अपने बच्चों को आगे कर श्री कृष्णा कि शरण में आई और हाथ जोड़कर स्तुति करने लगी--
न्याय्यो हि दण्डः कृतकिल्बिषेस्मिं स्तवावतारः खलनिग्रहाय |
रिपोः सुतानामपि तुल्यदृष्टे र्धत्से दमं फलमेवानुशंसन् |
प्रभु आपका अवतार दुष्टों को दंड देने के लिए हुआ है, आपने जो इस अपराधी को दंड दिया है वह सर्वथा उचित है आपकी दृष्टि में शत्रु और मित्र दोनों बराबर हैं |प्रभु अब यह मरने वाला है इसलिए इसे प्राण दान दीजिए |जब इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग को छोड़ दिया जब कालिया नाग को होश आया तो उसने भगवान श्रीकृष्ण से कहा--
वयं खलाः सहोत्पत्या तामसा दीर्घमन्यवाः |
स्वभावो दुस्त्यजो नाथ लोकानां यदसद्गृहः |
प्रभु हम जन्म से ही दुष्ट और तमोगुण स्वभाव के हैं , प्राणियों को अपने स्वभाव का त्याग करना अत्यंत कठिन है | प्रभु इस जगत की सृष्टि आपने की है. इस जगत में नागों की उत्पत्ति आपने की और आपने ही क्रोधी स्वभाव का बनाया है इसमें मेरी क्या गलती है |भगवान ने कहा कालिया अब तुम अपने परिवार के साथ काली दह को छोड़कर रमणकद्वीप में जाओ ! कालिया ने कहा प्रभु आपके सेवक गरुण जी वहां मुझे मार डालेंगे इसलिए मैं वहां नहीं जा सकता भगवान ने कहा कालिया अब तुम वैष्णव हो गए हो तुम्हारे सर पर मेरे चरण चिन्ह अंकित हो गए हैं इसलिए गरुण तुम्हें नहीं मारेंगे अपितु तुम्हारा सम्मान करेंगे |
राजा परीक्षित पूछते हैं- गुरुदेव कालिया नाग किस कारण से रमणद्वीप छोड़कर काली देह में आ गया था और उसने गरुड़ जी का कौन सा अपराध किया था |
श्री सुखदेव जी कहते हैं परीक्षित जब गरुड़ जी अनेकों नागो का संहार कर रहे थे तो सभी सर्प ब्रह्मा जी के शरण में आ गए ब्रह्मा जी ने नियम बताया की प्रत्येक अमावस्या को सभी सर्प के परिवार वाले बारी-बारी से गरुणजी को एक सर्प की बलि देंगे, जब कालिया नाग की बारी आई तो उसने बली से मना कर दिया अन्य सर्पो ने जब बलि की व्यवस्था की तो कालिया नाग उसे भी खा गया |
यह बात जब गरुण जी को पता चली उन्होंने कालिया नाग पर आक्रमण किया जिससे कालिया नाग वहां से भागा उसे यह मालूम हुआ कि गरुणजी कालीदह में नहीं जाते तो वह वहां छिपकर रहने लगा |
गरुड़ जी पहले जब सौभरी ऋषि के आश्रम के निकट कालिदह में जाते तो वहां अनेकों मछलियों को खाते तो मछलियों ने सौभरी ऋषि से प्रार्थना की तो सौभरी ऋषि ने श्राप दे दिया कि गरुण जी यहां आओगे तो आपका प्राणान्त हो जाएगा |इसलिए गरुण जी काली दह में नहीं आते | आज कालिया नाग ने भगवान श्रीकृष्ण को बहुमूल्य मणि और राशि प्रदान की और फिर रमणकदीप की यात्रा कि|
यहां पर व्रजवासियों ने श्रीकृष्ण को सकुशल देखा तो प्रसन्न हो गए रात्रि बहुत हो गई थी इसलिए सभी वही सो गए | रात्रि में वन में आग लग गई उसे देख सभी ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ग्रहण कि ,भगवान श्रीकृष्ण सभी के देखते ही देखते अग्नि का पान कर गए और ब्रज वासियों को इस प्रकार अग्नि से रक्षा की|
बोलिए कालिया मर्दन भगवान की जय
( प्रालम्बा सुर का उद्धार )
एक तरफ श्रीकृष्ण हो गए दूसरी तरफ बलरामजी हो गए प्रलम्बासुर श्री कृष्ण की टोली मे मिल गया | खेल मैं जो हार जाता वो घोड़ा बनता और जीतने वाले को अपनी पीठ में बिठा कर ले जाता | आनेको बार श्रीकृष्ण की विजय हुई परंतु जब एक बार श्री कृष्ण हार गए तो श्री कृष्ण ने श्रीदामा को अपने बीठ में विठाला प्रलम्बासुर ने बलराम को बैठाया प्रलम्बासुर जब नियत स्थान से आगे बढ़ गया तो बलराम जी ने रुकने को कहा तो वह दैत्य के रूप में प्रकट हो गया और बलराम जी को हर के ले जाने लगा बलराम जी ने एक मुट्ठी का प्रहार किया |
जिससे उसका गोविंदाय नमो नमः हो गया| जब भगवान श्री कृष्ण ग्वाल वालों के साथ खेल खेल रहे थे उसी समय सभी गाय हरी हरी घास के लोभ में एक वन से दूसरे वन होते हुए सरकण्डो के वन मे पहुच गयी, गर्मी का समय था वन में आग लग गई | गाय जोर-जोर से चिल्लाने लगी उस समय भगवान श्री कृष्ण ने ग्वाल वालों के नेत्र बन्द कराये और अग्नि का पान कर गाय की रक्षा की|
( ऋतुओं का वर्णन )
ग्रीष्म ऋतु के पश्चात वर्षा ऋतु का आगमन हुआ इस ऋतु में सभी प्रकार की जीवो की वृद्धि हो जाती है | आकाश में नीले नीले काले काले बादल आ जाते हैं , बिजली बारंबार चमकने लगती है , सूर्य चंद्रमा और तारे छिप जाते हैं , सूर्य रूपी राजा ने जो पृथ्वी रूपी प्रजा से जो आठ महीने कर के रूप में जल लिया था |अब समय आने पर वे उसे अपनी किरणों से बांटने लगे | यहां जो श्लोक दिए हुए हैं, स्वामी श्री तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में किष्किंधा कांड में इनका अनुवाद किया--
निशि तम घन खद्यूत विराजा
जनु दम्भिन कर मिला समाजा |
दादुर धुनि चहुं दिशा सोहाई
वेद पणहिं जनु बटु समुदाई |
छुद्र नदी भरि चली तोराई
जस थोरेहुं धन खल उतराई |
बूंद अघात सहहिं गिरी कैसे
खल के बचन सन्त सह जैसे |
वर्षा ऋतु में सायं काल घोर अंधकार में चंद्रमा और तारों का प्रकाश छुप जाता है, परंतु जुगनू चमकने लगते हैं | जैसे कलिकाल में सत मार्ग लुप्त हो जाता है और पाखंड मतों का प्रचार हो जाता है| चारों ओर प्रातः काल मेढ़को की ध्वनि सुनाई देती है| जैसे प्रातः काल सज धज कर ब्राह्मण बटुक वेद का पाठ कर रहे हों |छोटी छोटी नदी नाले उमड़ उमड़ कर बहने लगते हैं|उसी प्रकार जैसे थोड़ा सा धन प्राप्त कर दुष्ट पुरुष इतराने लगता है ,पर्वत मूसलाधार बारिश की चोट को ऐसे सह लेते हैं जैसे संत दुष्टों के वचन को संत सह लेते हैं|
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नोट - अगर आपने भागवत कथानक के सभी भागों पढ़ लिया है तो इसे भी पढ़े यह भागवत कथा हमारी दूसरी वेबसाइट पर अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी है
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श्री भागवत महापुराण की हिंदी सप्ताहिक कथा जोकि 335 अध्याय ओं का स्वरूप है अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका है और वह क्रमशः भागो के द्वारा आप पढ़ सकते हैं कुल 27 भागों में है सभी भागों का लिंक नीचे दिया गया है आप उस पर क्लिक करके क्रमशः संपूर्ण कथा को पढ़कर आनंद ले सकते हैं |
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