भागवत कथा,दशम स्कन्ध,भाग-9

श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा Bhagwat Katha story in hindi
वर्षा विगत शरद ऋतु आयी |
वर्षा के व्यातीत हो जाने पर शरद ऋतु का आगमन हुआ आकाश निर्मल हो गया |
सरिता सर निर्मल चल सोहा |
सन्त हृदय जस गत मद मोहा |

( ऋतुओं का वर्णन )

नदी और सरोवरो का जल निर्मल हो कर शोभायमान होने लगा | जैसे मद और मोह से रहित संतों का हृदय निर्मल हो जाता है | छोटे-छोटे गड्ढों में भरे हुए जल में रहने वाले जलचर प्राणी यह नहीं जानते कि इस गड्ढे का जल धीरे-धीरे सूख रहा है | जैसे कुटुंब के भरण-पोषण में लगे हुए मनुष्य यह नहीं जानते कि हमारी आयु प्रतिक्षण छीण हो रही है |
सरदा तप निसि शशि अप हरयी |
सन्त दरस जिमि पातक टरयी |
शरद ऋतु में दिन में बहुत गर्मी होती है, परंतु जैसे ही रात्रि में चंद्रमा का उदय होता है तो चंद्रमा संपूर्ण ताप संताप को हर लेता है|जैसे संतो के दर्शन मात्र से बड़े बड़े पाप निव़ृत्त हो जाते हैं|
इत्थं शरत्स्वच्छजलं पद्माकर सुगन्धिना |
न्यविशद वायुना वातं सगोगोपालकोच्युतः |

जब शरद ऋतु प्रारंभ हुई जब जल निर्मल हो गया कमल की सुगंध से सनकर वायु चारों ओर सुगंधी बिखेरने लगी| उस समय भगवान श्री कृष्ण ने गाय और ग्वाल बालों के साथ वन में प्रवेश किया और अपनी बांसुरी में मधुर तान छेड़ी | गोपियों ने इस  ध्वनि को सुना उनके हृदय में श्री कृष्ण के प्रति प्रेम उत्पन्न हो गया वह श्री कृष्ण के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहने लगीं-
बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं
विभ्रद वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् |
रन्ध्रान वेणोरधर सुधया पूरयन् गोपवृन्दै
र्वन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद गीतकीर्तिः
भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल वालों के साथ  वृंदारण्य में प्रवेश कर रहे हैं, उनके सिर में मयूर का प्रच्छ है, एक बार भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के मयूर के मध्य नृत्य प्रतिस्पर्धा हुई श्री कृष्ण ऐसे नाचे की राधा रानी का मोर  प्रसन्न हो गया उसने अपना एक पंख गिरा दिया |

श्रीकृष्ण ने उसे वत्सार समझ अपने मस्तक में धारण कर लिया और तभी से श्रीकृष्ण मयूर पिक्ष धारण करने लगे | उनके कानों में पीला पुष्प शोभायमान हो रहा है |

यहां श्लोक मे ( कर्णयोः ) शब्द द्विवचन का प्रयोग किया गया है तात्पर्य है, कान तो दो हैं परंतु पुष्प एक है | यह पुष्प संकेत पुष्प है प्रातः काल जब श्रीकृष्ण गोचारण के लिए जाते हैं उस समय गोपियों के मन में जिज्ञासा होती है, आज श्री कृष्ण किस दिशा की ओर जाएंगे |

नंद आदि कुलवयो वृद्धों के सामने भी श्रीकृष्ण से पूछ नहीं सकती इसलिए श्री कृष्ण कनेर के पुष्प से संकेत करके बताते हैं, आज इस दिशा की ओर गोचरण करने जाएंगे | शरीर पर सुनहरा पीतांबर धारण किए हुए हैं, यह पितांबर राधारानी का वर्ण है |
चम्पा वर्णौ राधिका भ्रमर श्याम को दास |
मातृ भाव हिम जानिके भ्रमर न आवे पास |

इसलिए श्रीकृष्ण पीतांबर धारण करते हैं, गले में वनमाला धारण कर रखी है |

वनमाला किसे कहते हैं ?

तुलसी कुन्द मन्दार पारिजात सरोरुहैः |
पञ्चभिः ग्रथिता मालावनमालाप्रकीर्तितः |
तुलसी, कुंद, मंदार, परिजात और कमल इन पांच पुष्पों से वरमाला बनती है | श्रेष्ठ नर के समान भगवान श्री कृष्ण का सुंदर वेष है अथवा नट और वर के समान श्री कृष्ण का स्वरूप है नट वियोग श्रृंगार का प्रतीक है और वर संयोग का प्रतीक है दोनों विरुद्ध धर्मी हैं एक स्थान पर नहीं रह सकते परंतु ईश्वर का लक्षण ही है--

विरुद्ध धर्मास्ययत्वं ईश्वरत्वं |
जहां दो विरोधी धर्म एक ही स्थान पर हों उसे ईश्वर कहते हैं | श्री कृष्ण बांसुरी के छिद्रों को अपने अधरा मृत से पूर्ण कर रहे हैं | और विषयानंद जिनके सामने फीके पड़ जाए उसे वेणू कहते हैं , ग्वाल बाल पीछे-पीछे कृष्ण की कीर्ति का गान कर रहे हैं , आज यह वृंदावन धाम श्री कृष्ण के चरण चिन्हों के कारण बैकुंठ से भी श्रेष्ठ बन गया है |
अक्षण्वतां फलमिदं न परं विदामः
सख्यः पशूननु विवेशयतोर्वषस्यैः
वक्त्रं वृजेश सुतयोरनुवेणु जुष्टं
यैर्वा निपीमनुरक्तकटाक्ष मोक्षम् |
एक गोपी कहती है अरी सखी आंख वालों की आंख का यही फल है कि जब श्री कृष्ण और बलराम गोचरण के लिए वन में जा रहे हो अथवा वन से लौटकर आ रहे हो उनके अधरों में मुरली और वे तिरछी चितवन से हमारी ओर निहार रहे हों |

एक गोपी कहती है अरी सखी, इस वेणू ने ऐसा कौन सा पवित्र साधन किया है जिसके कारण यह निरंतर श्री कृष्ण के अधरामृत का पान करती रहती है, जिसके लिए हम सदा लालायित रहती हैं |

एक गोपी कहती है अरी सखी जब हमारे श्यामसुंदर बांसुरी बजाते हैं तो मयूर मतवाला होकर नृत्य करने लगता है ,पर्वत की चोटियों में विचरण करने वाले पशु पक्षी शांत होकर खड़े हो जाते हैं, जिन बछड़ो ने अभी अभी दूध पीना प्रारंभ किया था वे जैसे ही श्री कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनते हैं, वे उस घूट को न तो पी पाते और न ही उगल पाते आनंद के कारण उनके आंखों से अश्रू प्रवाह होता रहता है | इस प्रकार गोपियां कृष्ण की लीलाओं का वर्णन कर उनमें तन्मय हो जाती हैं |

( चीर हरण लीला )

हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकुमारिकाः |
चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्चनव्रतम् |
आप्लुत्याम्भसि कालिन्द्या जलान्ते चोगितेरुणे |
कृत्वा प्रतिकृतिं देवीमानुर्चुर्नृप सैकतीम् |
परीक्षित- हेमंत ऋतु का प्रथम मास मार्गशीर्ष में ब्रज की गोपियां कुमारिया ब्रह्म मुहूर्त में जाग जाती ,यमुना मैं स्नान करतीं, बालुका की प्रतिमा बनाती. षोडशोपचार से उनका पूजन करती और प्रार्थना करती |

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरी |
नन्दगोप सुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः |
हे कात्यायनी ,हे महायोगिनी ,हे मात्र सब की एक अधिष्ठात्री स्वामिनी | आप नंद नंदन श्री कृष्ण को हमारा पति बना दीजिए | ब्रज कुमारीओं ने एक माह का व्रत रखा |

एक दिन जब वे यमुना के तट में स्नान कर रही थी उस समय श्रीकृष्ण आए और उनके वस्त्रों को लेकर कदम्ब के वृक्ष में चढ़ गए और गोपियों से कहा अरी कुवारियों यदि तुम्हें अपने वस्त्र चाहिए तो आकर ले लो , चारों वर्ण की कुंवारियों ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की |
श्याम सुन्दर ते दास्यः करवाम तवोदितम् |
देहि वासांसि धर्मज्ञ नो चेद राज्ञे ब्रुवामहे |

चतुर्थ वर्ण की गोपियां कहती हैं- हे श्यामसुंदर हम आपकी दासी हैं ,आप हमें हमारे वस्त्र दे दीजिए | वैश्य वर्ण की गोपियां कहती हैं- हे श्री कृष्ण आप जो कहोगे हम सब करेंगे पर आप हमारे वस्त्र दे दीजिए | ब्राह्मण वर्ण की गोपियां धर्म की दुहाई दे कहती है- प्यारे श्याम सुंदर आप धर्म के जानकार हो धर्मज्ञ हो इसलिए आप हमारे वस्त्र दे दीजिए | क्षत्रिय वर्ण की गोपियां कहती हैं- कृष्ण को डराते हुए श्री कृष्ण यदि तुम हमारे वस्त्र नहीं दोगे तो हम राजा से शिकायत कर देंगी |

श्री कृष्ण ने कहा कुमारीओं यदि  तुम मेरी दासी हो तुम मेरी आज्ञा का पालन करना चाहती हो तो यहां आकर अपने वस्त्र ले जाओ , आप जो वस्त्र हीन हो जल में स्नान किया है उससे आपका व्रत खंडित हुआ है और जल के अधिष्ठात्र वरुण देवता का अपराध हुआ है |

बिना वस्त्र के यह कार्य नहीं करना चाहिए

स्नानं दानं तथा होमं शयनं गमनं भुजं |
विना वस्त्रं न कुर्वीत कुर्वन्तत्दोषकृद्भवेत |
स्नान , दान, हवन, शयन ,यात्रा और भोजन बिना वस्त्र के नहीं करना चाहिए | इसलिए गोपियों जल के अधिष्ठाता देवता वरुण देवता से क्षमा मांगो.और अपने वस्त्र ले जाओ गोपियों ने जल के अधिष्ठाता देवता वरुण को प्रणाम किया और श्रीकृष्ण को प्रणाम किया अपने वस्त्र लिए |भगवान श्री कृष्ण ने कहा--

संकल्पो विदितः साध्व्यो भवतीनां मदर्चनम् |
मयानुमोदितः योसौ सत्यो भवितुमर्हति |
कुमारीयों मैं तुम्हारे संकल्प को जानता हूं , तुम सभी मेरा पूजन करना चाहती हो | तुम्हारी यह अभिलाषा अवश्य पूर्ण होगी, आने वाली शरद पूर्णिमा की रात्रि में तुम मेरे साथ विहार करोगी |

न मय्या वेशितधियां कामः कामाय कल्पते |
भर्जिता क्वथिना धाना प्रायो बीजाय नेष्यते |
जैसे भुना हुआ अथवा उबले हुए बीज में पुनः अंकुर उत्पन्न नहीं होता, इसी प्रकार जिसका मन मुझ में लग जाता है, उसकी कामनाएं सांसारिक भोगों की ओर ले जाने में समर्थ नहीं होती | जब श्री कृष्ण ने इस प्रकार कहा वृज कुमारीयो ने चरणों में प्रणाम किया और बड़े कष्ट से ब्रज में प्रवेश किया |

( ब्राहमण पत्नियों पर कृपा )

यहां श्री कृष्ण और बलराम ग्वाल बालों के साथ गाय चराते हुए वृंदावन से बहुत दूर निकल आए , ग्वाल वालों को बहुत जोर से भूख लगी थी | उन्होंने जब भगवान श्री कृष्ण से भोजन के लिए कहा तो भगवान श्री कृष्ण ने कहा मित्रों यहां से कुछ दूर पर मथुरा के ब्राह्मण यज्ञ कर रहे हैं, उनसे कुछ भोजन मांग लाओ?

ग्वाल बाल जब मथुरा के ब्राह्मणों से भोजन मांगने आए तो उन्होंने ना तो मना किया और ना हां किया | निराश हो ग्वाल बाल श्री कृष्ण के पास लौट आए श्री कृष्ण ने कहा मित्रों इस बार तुम ब्राह्मण पत्नियों के पास जाना वे तुम्ह अवश्य भोजन देंगी ग्वाल बाल ब्राह्मण पत्नी के पास आए उनके चरणों में प्रणाम किया और उनसे कहा यहां से कुछ दूर पर श्री कृष्ण और बलराम आए हैं वे भूखे हैं आप उनके लिए कुछ भोजन दे दो |

ब्राह्मण पत्नी ने जैसे ही सुना कृष्ण आए हैं, उन्होंने यज्ञ के लिए भक्ष ,भोज्य ,चोस्य और लेह चार प्रकार का जो भोजन तैयार किया था , उसे थाली में सजाया और श्री कृष्ण के पास चल दी |

ब्राह्मणों ने बहुत रोका परंतु वे रुकी नहीं, उन्होंने श्री कृष्ण का दर्शन कर उन्हें भोजन प्रदान किया | श्रीकृष्ण ने कहा देवियो अब तुम घर लौट जाओ घर में तुम्हारे माता पिता, पति ,पुत्र तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे होंगे? ब्राह्मण पत्नियां कहती हैं--
मैवं विभोर्हति भवान् गदितुं नृशंसं
सत्यं कुरुष्व निगमं तव पादमूलम् |
प्राप्ता वयं तुलसिदाम पदावसृष्टं
केशैर्निवोढुमतिलङ्घ्य समस्तबन्धून |
प्रभु ऐसे निष्ठुरता से भरे वचन मत कहिए, वेद कहते हैं , एक बार जो आपको प्राप्त कर लेता है फिर उसे लौटना नहीं पड़ता | हम अपने पति, पुत्र ,माता पिता की आज्ञा का उल्लंघन करके आपके पास आई हैं यदि हम लौटना भी चाहें तो वो  हमें स्वीकार नहीं करेंगे |

भगवान श्री कृष्ण ने कहा देवियों तुम्हारे माता पिता, पति , पुत्र तुम्हारा पहले से अधिक सम्मान करेंगे | भगवान श्री कृष्ण के इस प्रकार कहने पर ब्राह्मण पत्नियां घर लौट कर आयीं तो ब्राह्मणों ने उनका स्वागत किया और अपने आप धिक्कारने लगे |

धिग् जन्मनस्त्रिवृद्विद्यां धिग्व्रतंधिगबहुयज्ञताम |
धिक्कुलं क्रियादाक्ष्यं विमुखा ये त्वधोक्षजे |
हमारा जन्म, विद्याअध्ययन ,वृत और यज्ञ आदि करना सब व्यर्थ हो गया ? क्योंकि आज हम श्रीकृष्ण के दर्शन से रहित हो गए |श्री सुकदेव जी कहते हैं - परीक्षित ब्राम्हण श्री कृष्ण के दर्शन कर सकते थे परंतु कंस के डर के कारण वे श्री कृष्ण का दर्शन करने नहीं आए |

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नोट - अगर आपने भागवत कथानक के सभी भागों पढ़  लिया है तो  इसे भी पढ़े यह भागवत कथा हमारी दूसरी वेबसाइट पर अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी है 

श्री भागवत महापुराण की हिंदी सप्ताहिक कथा जोकि 335 अध्याय ओं का स्वरूप है अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका है और वह क्रमशः भागो के द्वारा आप पढ़ सकते हैं कुल 27 भागों में है सभी भागों का लिंक नीचे दिया गया है आप उस पर क्लिक करके क्रमशः संपूर्ण कथा को पढ़कर आनंद ले सकते हैं |

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