भागवत कथा,दशम स्कन्ध,भाग-10

श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा Bhagwat Katha story in hindi
परीक्षित एक दिन जब  नंदालय में अनेकों प्रकार के पकवान बन रहे थे पूजन की तैयारी हो रही थी तो भगवान श्री कृष्ण ने अपने पिता नंद बाबा से पूंछा- बाबा इस समय कौन सा विशेष उत्सव होने वाला है, जिसकी आप तैयारी कर रहे हो ? नंद बाबा ने कहा--

( गोवर्धन लीला )

पर्जन्यो भगवानिन्द्रो मेघास्तस्यात्ममूर्तयः |
तेभिवर्षन्ति भूतानां प्रीणनं जीवनं पयः ||
10,24,8

दशम स्कन्ध,भाग-10

बेटा मेघों के स्वामी इंद्र हैं, इन्ही की कृपा से हमें जल की प्राप्ति होती है और जल से जीवो को जीवन मिलता है | हम इन्ही इंद्र की पूजन की तैयारी कर रहे हैं | भगवान श्री कृष्ण ने कहा-

कर्मणा जीयते जन्तुः कर्मणैव विलीयते |
सुखं दःखं भयं क्षेमं कर्मणैवाभिपद्यते ||
10,24,23

पिता जी कर्म के अनुसार जीव उत्पन्न होता है , कर्म से वह मृत्यु को प्राप्त करता है | और कर्मों के द्वारा ही सुख-दुख भय और कल्याण की प्राप्ति होती है | 

जब सबकुछ कर्मों के द्वारा ही प्राप्त होता है, तो हमें इंद्र की क्या आवश्यकता ? पिता जी हम वैश्य हैं ! वैश्यो कि चार वृत्ति बताई गई है - खेती करना, व्यापार करना ,गायों की रक्षा करना और ब्याज लेना इसमें से हम गायों की रक्षा पालन पोषण करना और गायों को चारा हरी हरी घास हमें गिरिराज से ही प्राप्त होती है, इसलिए हमें इनकी जगह गिरिराज जी का पूजन करना चाहिए |

नंद आदि गोपो ने पूछा कन्हैया गिरिराज जी की पूजा कैसे होवे कन्हैया ने कहा पिता जी आपने जो सामग्री इंद्र के लिए एकत्रित कर रखी है इसी से गिरिराज जी की पूजा करिए | सभी ने छकणों में पुजा की सामग्री रखी और गिरिराज जी की तलहटी में पहुंच गए | 

सर्वप्रथम गिरिराज जी को स्नान कराने लगे जब विशाल गोवर्धन को स्नान कराने में बृजवासी थकने लगे तो भगवान श्री कृष्ण ने गंगा जी का स्मरण किया उसी समय मानसी गंगा प्रकट हो गई |

( बोलिए मानसी गंगा की जय )

सभी ने गोवर्धन जी को खूब स्नान कराया, षोडशोपचार से उनका पूजन किया ,उन्हें छप्पन भोग लगाया ,उस समय गिरिराज जी प्रकट हो गए ,गोपो ने पूछा तुम कौन हो ? गिरिराज जी ने कहा--

शैलोस्मि= मैं गिरिराज हूं | सभी गौपों के सामने गोवर्धन नाथ भोग अघोघने लगे, ग्वाल बालों ने कहा कन्हैया तेरो देवता तो सब कुछ खाए जा रहयो है , हमारे लिए कछु नाय छोड़ेगो काय | कन्हैया ने कहा मित्रों यह जितना खाएंगे उससे अधिक तुम्हें प्रदान करेंगे , सभी ब्रज वासियों ने भोग लगाकर सात कोस के गोवर्धन की परिक्रमा की और ब्रज में लौट आए | 

यहां इंद्र को जब यह पता चला है कि श्री कृष्ण के कहने पर ब्रज वासियों ने मेरी पूजा बंद कर दी उसे बहुत क्रोध आया उसने प्रलयकृत सांगवर्तक नामक मेघों को आज्ञा दी ! जाओ ब्रज को डूबो दो | ब्रज में मूसलाधार बारिश होने लगी सभी बृजवासी श्री कृष्ण के पास आए , श्री कृष्ण ने कहा हमने गोवर्धन की पूजा की है , वह हमारी रक्षा करेंगे ? सभी गोवर्धन की शरण में आए जैसे कोई छोटा बालक बरसाती छत्ता को हाथ में उठा लेता है?

ऐसे ही श्रीकृष्ण सबके देखते ही देखते बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली में गिरिराज जी को उठा लिया |सभी बृजवासी उनके नीचे आ गए ग्वाल बालों ने अपनी लाठियां लगा ली छः दिन व्यतीत हो गए ग्वाल बालों ने कहा कन्हैया थोड़ा विश्राम कर लो , चिंता मत करो हम ने लाठियां लगा रखी है ? जैसे ही श्रीकृष्ण ने अपनी अगुली को थोड़ा नीचे किया सभी की लाठियां टूट गई ग्वाल बालों ने पूछा, तो में इतना बल कहां से आ गयो ? कन्हैया ने कहा

कछु माखन को बल बढ़ो कछु गोपिन करी सहाय| 
श्रीराधा जी की कृपा से मैनो गोवर्धन लियो उठाय |

भगवान श्री कृष्ण ने सात दिनों तक गोवर्धन को बाएं हाथ की छोटी उंगली पर धारण किया |

सात कोश को गिरिवर सात वरष को श्याम |
सात दिवस कर पे धरयौ परो गिरिधारी नाम |

गोवर्धन को धारण करने के कारण श्री कृष्ण का एक नाम गिरिधारी हुआ, इंद्र ने जब यह देखा व्रज में धूल उड़ रही है ? समझ गया जिसे मैंने साधारण बालक समझा वह परम ब्रह्म परमेश्वर है |उसने अपने मेघों को रोक दिया जब बारिश रुक गई श्री कृष्ण ने यथावत गोवर्धन को रख दिया|

यह गोवर्धन द्रोणाचल के पुत्र थे पुलस्त ऋषि इन्हें काशी ले जाना चाहते थे | उन्होंने शर्त रखी यदि एक बार आप मुझे जहां रख दोगे वहां से मैं फिर दोबारा नहीं उठूंगा , जब व्रज आया उसी समय बहुत जोर कि लघुशंका लगी वह सब भूल उन्होंने गिरिराज जी को पृथ्वी में रख दिया जब दुबारा उठाने लगे तो गिरिराज उठे नहीं तब पुलस्त ऋषि ने उन्हे श्राप दे दिया--

गिरित्वयाति धृष्टेन नाकृतो मे मनोरथः |
तस्मात त्वं तिल मात्रं हि नित्यं छयतां व्रजौ |

तुमनें मेरा मनोरथ पूर्ण नहीं किया इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं प्रतिदिन तुम तिल तिल घटते जाओगे | व्रजवासियों ने नंदबाबा से पूंछा-

क्व सप्तहायनो बालः क्व महाद्रिविधारणम् |
ततो नो जायते शक्ङा व्रजनाथ तवात्मजे |

भैया नन्द कहां तो यह सात वर्ष का बालक है और कहां इतने बड़े गिरिराज को उठाना भैया नंद सही सही बताओ यह कौन है ? नंद बाबा ने कहा गोपो आप संका मत करो जब गर्गाचार्य जी नाम करण संस्कार करने आए थे तो उन्होंने कहा था इसके गुण साक्षात् नारायण के समान होंगे | 

यह बड़ी-बड़ी विपत्तियों से तुम सब की सहायता करेगा | यहां एकांत में सुरभी गाय को साथ लेकर देवराज इंद्र श्री कृष्ण के पास आए सुरभी गाय ने अपने दूध से श्री कृष्ण का अभिषेक किया और उन्हें गोविंद यह नाम प्रदान किया |

जो गायो की रक्षा करें उसे गोविंद कहते हैं? देवराज इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी आकाश गंगा जल से उन्हें स्नान कराया और उनके चरणों में प्रणाम कर स्वर्ग की यात्रा की |

 ( बोलो गोविंद भगवान की जय )

 वरुण लोक से नंद जी को छुडाकर लाना

एकादश्यां निराहारः समभ्यर्च जनार्दम् |
स्नातुं नन्दस्तु कालिन्द्या द्वादश्यां जलमाविशत् |
श्री सुकदेव जी कहते हैं परीक्षित एक बार कार्तिक शुक्ल एकादशी का पावन पर्व था नंद बाबा ने एकादशी का व्रत किया ! रात्रि बारह बजे आसुरी बेला को वे ब्रम्ह मुहुर्त समझ  यमुना स्नान करने आए , उस समय वरुण के दूत उन्हें पकड़कर ले गए | 

प्रातः काल जब नंद बाबा घर नहीं लौटे तो सभी ब्रजवासी उनकी खोज करने लगे जब भगवान श्री कृष्ण यमुना के किनारे उनके वस्त्र को देखा तो वह समझ गए वे नंदबाबा को लेने के लिए वरुण लोक पहुंचे | वरुण जी ने जैसे ही श्रीकृष्ण को देखा सिंहासन से खड़े हुए भगवान श्री कृष्ण को सिंहासन पर विठाला | पाद्यअर्घ से उनका पूजन किया उनकी स्तुति की-
अद्य मे निभृतो देहोद्यैवार्थोधिगतः प्रभो |
त्वत्पाद भाजो भगवन्नवापुः पारमध्वनः
प्रभो आज मेरा शरीर धारण करना सफल हो गया क्योंकि आज मुझे आपके चरणों की सेवा प्राप्त हुई | प्रभु आज्ञा करें आपका यहां आगमन किस कारण से हुआ है ? भगवान श्री कृष्ण ने कहा आपके सेवक मेरे बाबा को ले आए हैं उन्हें ही लेने आया हूं | 

वरुण ने कहा अंनजान मे मेरे सेवकों से यह अपराध हुआ है , आप इन्हें क्षमा करें और अपने बाबा को ले जाएं | वरुण जी ने अनेकों प्रकार के रत्नों को देकर नंद बाबा को भगवान श्री कृष्ण के साथ विदा किया | नंद बाबा ने ब्रज वासियों को जब वरुण लोक की समृद्धि का वर्णन किया तो बृजवासी सोचने लगे क्या कभी कृष्ण हमें भी अपने धाम का दर्शन कराएंगे ?

अन्तर्यामी भगवान श्री कृष्ण सभी व्रजवासियों को ब्रह्मांड घाट ले आए जैसे ही ब्रज वासियों ने डुबकी लगाई तो अपने आप को गोलोकधाम में पाया | 

वहां सभी की चार चार भुजाएं थी, भगवान श्री कृष्ण की बड़ी भारी सवारी निकली एक ग्वाल वाल ने कृष्ण को देखा तो जोर से आवाज लगाई-- कन्हैया गय्या चराने नाय चलनो काय ? एक सेवक ने ग्वाल बालों को जोर से डांट लगाई और कहा अरे कहां से गवार आ गए ! यह हमारे राजाधिराज है ये गाय नहीं चराते | ग्वाल बालों ने कहा--
पिता न पुत्र परपाल ये दशौ
     माता यशोदा न सुतं प्रयाति |
गावश्च नैवाग्रत एव यान्ति
     कथं वसामोत्र विकुण्ठलोके |
जहां नंदबाबा अपने पुत्र कन्हैया का लालन नहीं करते , मैया यशोदा जहां कन्हैया को लोरी सुना कर नहीं सुलाती ,जहां कन्हैया गौवे नहीं चलते ,वहा हमें नहीं रहना या उस वैकुण्ठ लोक मे हमे नहीं रहना | जैसे ही ग्वाल बालों ने यह कहा तो अपने आप को वृंदावन में पाया | 

भगवान श्री कृष्ण ने मृद भक्षण लीला के द्वारा पृथ्वी तत्व का शोधन किया, कालिया नाग मर्दन के द्वारा जल तत्व का ,व्योमासुर के उद्धार के द्वारा आकाश तत्व का ,तृणावर्त के उद्धार के द्वारा वायु तत्व और दावानल का पान कर अग्नि तत्व का शोधन किया |

ब्रम्हादि जय सरूढ दर्प कन्दर्प दर्पहा |
जयति श्रीपति र्गोपी रास मण्डल मण्डनः
कामदेव ने ब्रह्मादि देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली , तो उसका अभिमान बढ़ गया उसी के मान मर्दन के लिए भगवान श्री कृष्ण ने रासलीला का संकल्प किया |

भगवानपिता रात्रिः शरदोत्फुल्लमल्लिकाः |
वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः |
शरद पूर्णिमा की रात्रि में जब पूर्व दिशा से पूर्ण चंद्र का उदय हुआ | चमेली तथा वेला आदि पुष्पों की सुगंध से वन सुभाषित हो रहा था | उस समय योगमाया का आश्रय ले भगवान श्री कृष्ण ने रासलीला का मन बनाया | अपनी बांसुरी से बड़ी मधुर तान छेड़ी जिन-जिन गोपियों ने उस बांसुरी की आवाज को सुना उन्हे लगा श्री कृष्ण मेरा नाम ले पुकार रहे हैं | 

उस समय कोई गोपी दूध दुह रही थी , कोई भोजन परोस रही थी ,कोई अपने शिशु को दूध पिला रही थी ,कोई पति की सेवा कर रही थी ,कोई सिंगार कर रही थी, किसी के एक ही आंख में अंजन लगा था, कोई वस्त्र धारण कर रही थी |

वे अपना-अपना काम छोड़ अस्त-व्यस्त अवस्था में श्री कृष्ण से मिलने के लिए दौड़ी | कुछ गोपियों को बाहर निकालने के लिए मार्ग नहीं मिला तब वह श्री कृष्ण के चरणों का ध्यान कर मन से श्रीकृष्ण के पास पहुंच गई | भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को देखा तो कहा-

स्वागतं वो महाभागाः प्रियं किं करवाणि वः |
व्रजस्यानामयं कच्चिद् ब्रूतागमनकारणम् |

गोपियों को कहा आपका स्वागत है बताइए आपकी प्रसन्नता के लिए मैं क्या करूं ? क्या कर सकता हूं ? व्रज मे सब ठीक-ठाक तो है तुम्हारे यहां आने का क्या कारण है ? यह रात्रि का भयावना  समय है जिसमें अनेकों हिंसक प्राणी घूमा करते हैं | इसलिए आपको यहां नहीं रहना चाहिए ?

आपके माता पिता पुत्र भाई पति सभी आपको ढूंढ रहे होंगे ? यदि आप चंद्रमा की चांदनी से चमकते हुए वन की शोभा देखने आई थी तो आपने यह देख ली इसलिए अब घर लौट जाओ और अपने अपने पतियों की सेवा करो |

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