F महान त्यागी रघु और कौत्स - dharmik kahaniyan hindi - bhagwat kathanak
महान त्यागी रघु और कौत्स - dharmik kahaniyan hindi

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महान त्यागी रघु और कौत्स - dharmik kahaniyan hindi

महान त्यागी रघु और कौत्स - dharmik kahaniyan hindi

महान त्यागी रघु और कौत्स "

drishtant in hindi दृष्टान्त कथा-महान त्यागी रघु और कौत्स
 
महान त्यागी महर्षि वरतन्तु---  वर्षों तक कौत्स उनके आश्रम में रहा | महर्षि उसे अपने पुत्र के समान पाला और पढ़ाया | कौत्स के निवास भोजन आदि की व्यवस्था, उसके स्वास्थ्य की चिंता-- लेकिन गुरु के लिए अन्तेवासी तो अपनी ही संतति है |
गुरु ने अपना समस्त ज्ञान उसे प्रदान किया और जब सुयोग्य होकर वही अंतेवासी स्नातक होने लगा , घर जाने लगा , गुरु दक्षिणा का प्रश्न आने पर उस परम त्यागी ने कह दिया---   वत्स!  मैं तुम्हारी सेवा से ही संतुष्ट हूं |तुम्हारी विद्या लोक और परलोक में भी फल दायनी हो |
 
कौत्स का आग्रह था--  मुझे कुछ अवश्य आज्ञा मिले | गुरु दक्षिणा दिए बिना मुझे संतोष कैसे होगा !
 
   कौत्स अनुभवहीन युवा था | उसका हट-- महर्षि जो निष्काम स्नेह दिया था उसे--- उसका क्या प्रतिदान हो सकता था ? कौत्स का आग्रह--- स्नेह तिरस्कार था वह और आग्रह के दुराग्रह बन जाने पर महर्षि को कुछ कोप सा आ गया | उन्होंने कहा--- तुमने मुझेसे चौदह विद्याएँ सीखी हैं | प्रत्येक के लिए एक सहस्त्र मुद्राएं भेंट करो |
 
जो आज्ञा ! कौत्स ब्राम्हण था और भारत के चक्रवर्ती सम्राट अपने को त्यागी ब्राह्मणों का सेवक घोषित करने में गौरवान्वित ही मानते थे |कौत्स के लिए संचित होने का कारण ही नहीं थाल| वह सीधे अयोध्या चल पड़ा |
 
चक्रवर्ती सम्राट महाराज रघु ने भूमि में पड़कर प्रणिपात किया , आसन पर विराजमान करा के चरण धोए और अतिथि ब्राम्हण कुमार का पूजन किया | अतिथि पूजा ली और चुपचाप उठ चला |आप कैसे पधारे ?  सेवा की कोई आज्ञा दिए बिना कैसे चले जा रहे हैं ? इस सेवक का अपराध ? महराज रघु हाथ जोड़कर सामने खड़े हो गए |
 
राजन् !  आप महान हैं | कौत्स ने बिना किसी खेद के कहा--  मैं आपके पास याचना करने आया था, किंतु देख रहा हूं कि विश्वजीत यज्ञ में आपने सर्वस्व दान कर दिया है | आपके पास अतिथि पूजन के पात्र भी मिट्टी के ही रह गए हैं |इस स्थिति में आपको संकोच में डालना मैं कैसे जाऊंगा | आप चिंता ना करें |
 
रघु के यहां एक ब्राह्मण स्नातक गुरु दक्षिणा की आशा से आकर निराश लौट गया , इस कलंक से आप मेरी इच्छा करें | महाराजका स्वर गदगद हो रहा था-- केवल तीन रात्रियाँ आप मेरी अग्नि शाला में निवास करें | कौत्स ने प्रार्थना स्वीकार कर ली | यज्ञशाला के अतिथि हुये | लेकिन महाराज रघु राज सदन में नहीं गए | अपने शस्त्रसञ्ज युद्धरथ में रात्रि को सोये | उनका संकल्प महान था | पृथ्वी के समस्त नरेश यज्ञ में कर दे चुके थे किसी से दोबारा लेने की बात ही अन्याय थी | महाराज ने धनाधीश कुबेर पर चढ़ाई करने का निश्चय किया था |
 
प्रातः युद्ध यात्रा का शङ्खनाद हो, इससे  पूर्व अयोध्या के कोषाध्यक्ष ने सूचना दी---  कोष में स्वर्ण वर्षा हो रही है | लोकपाल कुबेर ने चुपचाप अयोध्याधीश को कर' देने में कुशल मान ली थी |
दो महान त्यागी दीखे उस दिन विश्व को-- स्वर्ण राशि सामने पड़ी थी | महाराज रघु का कहना था -- यह सब आपके निमित्त आया धन है | मैं ब्राम्हण का धन कैसे ले सकता हूं |
 
कौत्स कह रहे थे-- मुझे क्या करना है | गुरु को दक्षिणा निवेदित करने के लिए केवल चौदह सहस्त्र मुद्राएँ--  मैं एक भी अधिक नहीं लूंगा |  त्याग सदा विजयी होता है | दोनों त्यागी विजयी हुए | कौत्स को चौदह सहस्त्र मुद्रा देकर शेष द्रव्य ब्राम्हणों को दान कर दिया गया |
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निमाई का गृह-त्याग

drishtant in hindi दृष्टान्त कथा-महान त्यागी रघु और कौत्स
एक और महत्तम त्याग--  घर में कोई अभाव नहीं था | स्नेहमयी माता, परम पतिव्रता पत्नी-- समस्त नवद्वीप श्री चरणों की पूजा करने को उत्सुक | सुख, स्नेह ,सम्मान, संपति-- लेकिन सब निमाई को आबद्ध करने में असमर्थ हो गए|
 
अपने लिए ?  जिनकी कृपा दृष्टि पड़ते ही जगाई- मधाई - से पापी पावन हो गए, उन्हें उन महत्तम को त्याग , तप , भजन अपने लिए--  लेकिन सारा लोक जिनका अपना है, उन्हें अपने लिए ही तो बहुत कुछ करना पड़ता है | अपनों के लिए तो वे नाना नाट्य करते हैं |
 
लोकादर्श की स्थापना-- लोक में त्याग पूर्ण उपासना- परम प्रेम की आदर्श की स्थापना के लिए- लोकमंगल के लिए चैतन्य ने त्याग किया | समस्त जीवो के परम कल्याण के लिए नवतरुण निमाई पंडित ( आगे चलकर ) गौरांग महाप्रभु रात्रि में स्नेहमयी जननी शची माता और परम पतिव्रता पत्नी विष्णुप्रिया को त्यागकर तैरकर गंगा पार हुए सन्यासी होने के लिए | 
( त्याग से हि शान्ति कि प्राप्ति होती है )
मनुष्य को अपने जीवन में त्याग को अपनाना चाहिए , क्योंकि त्याग एक ऐसा गुण है जिसको धारण करने के बाद मनुष्य को दुखी नहीं होना पड़ता और उसे आत्मज्ञान हो जाता है | त्याग से परम सुख की प्राप्ति होती है | दृष्टान्त➡ एक पक्षी था वह अमनी चोंच पर एक मांस का टुकड़ा लेकर तेजी से उड़ा जा रहा था, उस पक्षी की चोंच में मांस का टुकड़ा रखा जब अन्य पक्षियों ने देखा तो कई पक्षी उसके पीछे पड़ गए | 

मांस का टुकड़ा को पाने के लिये ,जब वह मांस का टुकडा लिये हुये पक्षी ने जब देखा अब यह मुझे मार डालेंगे , तब वह पक्षी अपने चोंच से मांस का टुकड़ा छोड़ दिया, जैसे हि छोड़ा उस मांस के टुकड़े को सारे पक्षियां उस पक्षी को छोड़कर उस मांस के टुकड़े के पीछे पड़ गए | 

इस प्रकार वह पक्षी अपने त्याग से अपने जीवन की रक्षा किया | इसी प्रकार सभी मनुष्यों को उन सभी चीजों का त्याग करना चाहिए जो हमारा कल्याण नहीं कर सकते | जैसे कि लोभ का त्याग, मोह का त्याग , क्रोध का त्याग आदि |
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