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pravachan hindi-प्रवचन हिंदी, मरने से डरो मत

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pravachan hindi-प्रवचन हिंदी, मरने से डरो मत

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प्रवचन हिंदी
धार्मिक तथ्य 
भगवान् शंकराचार्य कहते हैं - जातो हि को यस्य पुनर्न जन्म जन्म लेना उसका सफल माना गया है जिसका फिर जन्म न लेना पड़े।
- मृतो हि को यस्य पुनर्न मृत्युः __ 
मरना उसका सफल है जिसको फिर न मरना पड़े, इसलिए महात्मा कहते हैं कि मरने से डरो मत, मरना सीखो |
डरने वाले को क्या मौत छोड़ देती हैं ?
मृत्योविभेषि किं बाल भीतं मुञ्चति कि यमः ।
अजातं नैव गृह्णाति कुरू यत्नमजन्मनि ।। _
हे बाल, हे अज्ञ जीव, मरने से क्यों डरते हो, डरने वाले को क्या मृत्यु छोड़ देगी । जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु अवश्य होती है । जिसका जन्म नहीं होता उसकी मृत्यु भी नहीं होती । इसलिए तुम ऐसा यत्न करो जिससे फिर जन्म न हो । भगवान् ने गीता में कहा है -
मृत्यु के समय मेरे नाम का उच्चारण करता हुआ मेरा स्मरण करता हुआ जो शरीर को त्यागता है वह परम गति को प्राप्त होता है, सदा के लिए मुक्त हो जाता है, फिर उसका जन्म नहीं होता |
यह प्राणी मृत्यु के समय जिसका चिन्तन करता हुआ शरीर त्यागता है उसी योनि में चला जाता है । जैसे जड़ भरत जी ने हरिण शावक का चिन्तन करते हुए शरीर का त्याग किया तो हरिण की योनि उनको प्राप्त हुई।
भगवान् गीता में कहते हैं -
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्धय च ।।
अर्जुन सदा सर्वदा मेरा स्मरण करते हुए कर्तव्य का पालन करो" चित्र लेते समय जैसे व्यक्ति सावधान रहता है इसी प्रकार मृत्यु के समय भी बुद्धिमान् को सावधान रहना चाहिए, कहीं हमारा ये जीवात्मा पशु आदि की योनि में न चला जाए।
एतावान! सांख्य योगाभ्यां स्वधर्मपरिनिष्ठया ।
 जन्मलाभः परः पुंसां अन्ते नारायणस्मृतिः ।।
शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित् किसी व्यक्ति ने सांख्य शास्त्र का अभ्यास किया, योग शास्त्र का अभ्यास किया, जीवन भर अपने धर्म का पालन किया, इन सबका फल क्या है, अन्ते नारायण स्मृतिः अन्त में, मृत्यु काल में नारायण का स्मरण हो अन्य किसी का चिन्तन न हो ।
परीक्षिदपि राजर्षिरात्मन्यात्मानमात्मना । 
समाधाय परं दध्यावस्पन्दासुर्यथा तरूः ।।
शरीर परित्याग के समय राजर्षि परीक्षित मन:-मन को आत्मनि प्रत्यगात्मनि प्रत्यग् आत्मा में समाधाय समाहितकर परं दध्यौ अपनी प्रत्यग् आत्मा का ब्रह्मरूप से जब चिन्तन करने लगे उस समय उनके प्राणों की गति रूक गई और ऐसे जान पड़ते थे जैसे कोई वृक्ष का ढूंठ हो, इस प्रकार अपने शरीर का परित्याग करके उन्होंने परम पद को प्राप्त कर लिया । श्री भीष्म पितामह ने भी भगवान् श्री कृष्ण की स्तुति करते हुए देह त्याग किया और ब्रह्मगति को प्राप्त हो गए ।
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