ऋषिकुमार नचिकेता- कठोपनिषद्
rishi kumar nachiketa ki kahani kathopanishad
ऋषि कुमार नचिकेता की कहानी- आपने जरूर सुनी होगी क्योंकि यह ऋषि कुमार बहुत ही ब्रह्म निष्ठ और महान पितृ भक्त थे |आपकी जानकारी के लिए फिर भी हम बता दें कि यह है ऋषि कुमार वैदिक काल के बहुत ही धार्मिक ब्रह्म निष्ठ व बहुत बड़े पितृ भक्त थे |
- इनके पितृ भक्ति की कहानियां बड़ी प्रचलित हैं, पुत्रों की बात आती है तो कहा जाता है कि पुत्र हो तो नचिकेता जैसे!
एक बार ऋषि कुमार नचिकेता के पिता वाजश्रवा यज्ञ किए और यज्ञ में उन्होंने संकल्प लिया कि मैं अपना संपूर्ण धन वैभव दान कर दूंगा और वह जब धन वैभव के साथ गायों का दान करने लगे |
ऋषि कुमार नचिकेता ने देखा कि गाय बड़ी दुबली पतली हैं और वह बूढी हो चुकी हैं तो इन गायों को पिताजी को दान नहीं देना चाहिए क्योंकि दान उसी वस्तु का देना चाहिए जिसे दान लेने वाला उपयोग में ला सकें |
नहीं दान देने वाले को घोर नरक में जाना पड़ता है,, जब उसने अपने पिता से दान ना देने का आग्रह किया गायों का |
तो पिता को क्रोध आ गया उन्होंने कहा मैंने तो संपूर्ण धन देने का संकल्प किया है तो दान देना ही होगा ,ऋषि कुमार ने समझाया कि पिता जी दान उसी वस्तु का दिया जाता है जिसे लेने वाला उपयोग में ला सके |
बातों ही बात में ऋषि कुमार नचिकेता ने अपने पिता से कहा कि पिताजी आप मुझे किसे दान देंगे ?
पिता क्रोधित थे उन्होंने क्रोध में कह दिया कि मैं तुझे मृत्यु को दान देता हूं ,, ऋषि कुमार अपने पिता का वचन रखने के लिए अपने पिता से आज्ञा ले यम के पास जाते हैं और वहां उनसे उपदेश को प्राप्त कर सकते हैं |
- इसका वर्णन तैत्तिरीयोपनिषद् , कठोपनिषद व महाभारत मे किया गया है |
वाजश्रवापुत्र ऋषिकुमार नचिकेता और यम देवता के बीच प्रश्नोत्तरों की कथा का वर्णन है आप इस ऋषि कुुुुमार नचिकेता के स्वभाव को कठोपनिषद में वर्णित इस संवाद से समझ पाएंगे |
न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यो
लप्स्यामहे वित्तमद्राक्ष्म चेत्त्वा।
जीविष्यामो यावदीशिष्यसि त्वं
वरस्तु मे वस्णीयः स एव ॥
(कठ०१।१। २७)
मनुष्य धनसे कभी भी तृप्त नहीं किया जा सकता। जब कि हमने आपके दर्शन पा लिये हैं, तब धन तो हम पा ही लेंगे और आप जबतक शासन करते रहेंगे, तबतक तो हम जीते ही रहेंगे । इन सबको भी क्या माँगना है, अतः मेरे माँगने लायक वर तो वह आत्मज्ञान ही है।
अजीर्यताममृतानामुपेत्य
जीर्यन् मर्त्यः क्वधःस्थः प्रजानन् ।
अभिध्यायन् वर्णरतिप्रमोदा
नतिदीर्घ जीविते को रमेत ॥
( कठ० १।१ । २८)
यह मनुष्य जीर्ण होनेवाला है और मरणधर्मा है—इस तत्त्वको भलीभाँति समझनेवाला मनुष्य लोकका निवासी कौन ऐसा मनुष्य है जो कि बुढ़ापेसे रहित, न मरनेवाले आप-सदृश महात्माओंका सङ्ग पाकर भी स्त्रियोंके सौन्दर्य, क्रीडा और आमोद-प्रमोदका बार-बार चिन्तन करता हुआ बहुत कालतक जीवित रहनेमें प्रेम करेगा।
- अगले लेख में ऋषि कुमार नचिकेता और यमराज के बीच हुए संवाद को जो कठोपनिषद में वर्णन किया गया है आपके समक्ष प्रस्तुत है पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें👇
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