F कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि श्लोकार्थ- kramikulchitam lala klinnam vigandhi shlok sanskrit hindi arth sahit - bhagwat kathanak
कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि श्लोकार्थ- kramikulchitam lala klinnam vigandhi shlok sanskrit hindi arth sahit

bhagwat katha sikhe

कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि श्लोकार्थ- kramikulchitam lala klinnam vigandhi shlok sanskrit hindi arth sahit

कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि श्लोकार्थ- kramikulchitam lala klinnam vigandhi shlok sanskrit hindi arth sahit
( भर्तहरि शतक श्लोक )

कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि श्लोक-
कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि श्लोकार्थ- kramikulchitam lala klinnam vigandhi shlok sanskrit hindi arth sahit
कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि जुगुप्सितं

    निरुपमरसं प्रीत्या खादन्नरास्थि निरामिषम् ।

सुरपतिमपि श्वा पार्श्वस्थं विलोक्य न शङ्कते

    न हि गणयति क्षुद्रो जन्तुः परिग्रहफल्गुताम् ॥[9]


कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि श्लोकार्थ-
जिस तरह एक कुत्ता स्वर्ग के राजा इंद्र की उपस्थिति में भी उन्हें अनदेखा कर मनुष्य की हड्डियों को जो बेस्वाद, कीड़ों मकोड़ों से भरे, दुर्गन्ध युक्त और लार में सने होते हैं, बड़े चाव से चबाता रहता है, उसी तरह लोभी व्यक्ति भी दूसरों से तुक्ष्य लाभ भी पाने में बिलकुल भी नहीं कतराते हैं।

  
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