यदा किंचिज्ज्ञोऽहं द्विप इव श्लोकार्थ- yada kinchigyoham dup ev shlok sanskrit hindi arth sahit

( भर्तहरि शतक श्लोक )

यदा किंचिज्ज्ञोऽहं द्विप इव श्लोक-
यदा किंचिज्ज्ञोऽहं द्विप इव श्लोकार्थ- yada kinchigyoham dup ev shlok sanskrit hindi arth sahit
यदा किंचिज्ज्ञोऽहं द्विप इव मदान्धः समभवं

    तदा सर्वज्ञोऽसमीत्यभवदवलिप्तं मम मनः ।

यदा किंचित्किंचिद्बुधजनसकाशादवगत

    तदा मूर्खोस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः ॥[ 8 ]

यदा किंचिज्ज्ञोऽहं द्विप इव श्लोकार्थ-

जब  मैं बिल्कुल ही अज्ञानी था तब मैं मदमस्त हाथी की तरह अभिमान मे अंधे होकर अपने आप को सर्वज्ञानी समझता था। लेकिन विद्वानो की संगति से जैसे-जैसे मुझे ज्ञान प्रप्त होने लगा मुझे समझ मे आ गया की मैं अज्ञानी हूँ और मेरा अहंकार जो मुझपर बुखार की तरह चढ़ा हुआ था उतर गया।  

नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके संस्कृत के बेहतरीन और चर्चित श्लोकों की लिस्ट [सूची] देखें-
नीति श्लोक व शुभाषतानि के सुन्दर श्लोकों का संग्रह- हिंदी अर्थ सहित। }

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close