सहसा विदधीत न क्रिया श्लोक-
सहसा विदधीत न क्रिया श्लोकार्थ-
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् |वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ||
सहसा विदधीत न क्रिया श्लोकार्थ-
अचानक ( आवेश में आ कर बिना सोचे समझे ) कोई कार्य नहीं करना चाहिए कयोंकि विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है | ( इसके विपरीत ) जो व्यक्ति सोच –समझकर कार्य करता है ; गुणों से आकृष्ट होने वाली माँ लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है |
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