यथा ह्येकेन चक्रेण श्लोक-
यथा ह्येकेन चक्रेण श्लोकार्थ-
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् |एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ||
जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है |
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