F आजन्ममात्रमपि येन शठेन किचिं - aajanma matramapi yen shathen kichin - bhagwat kathanak
आजन्ममात्रमपि येन शठेन किचिं - aajanma matramapi yen shathen kichin

bhagwat katha sikhe

आजन्ममात्रमपि येन शठेन किचिं - aajanma matramapi yen shathen kichin

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आजन्ममात्रमपि येन शठेन किचिं च्चित्तं विधाय शुकशास्त्र कथा न पीता |
चाण्डालवच्च खरवदवत् तेन नीतं. मिथ्या स्वजन्म जननी जनिदुख भाजा ||
( मा.3.42 )

जिन्होंने अपने जीवन में मन लगाकर भागवत का श्रवण नहीं किया वह चडांल अथवा गधे के समान है उसने व्यर्थ में ही अपनी मां को प्रसव पीड़ा प्रदान कि वह जीते जी मुर्दे के समान है मनुष्य रूप में भार रूप पशु के समान है ऐसे मनुष्य को धिक्कार है ऐसे स्वर्ग लोक में इंद्रादि देवता कहा करते हैं सनकादि मुनीश्वर इस प्रकार भागवत की महिमा का वर्णन कर ही रहे थे कि उसी समय एक आश्चर्य हुआ |

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