देहेस्थिमासं रूधिरे - Dēhēsthimāsan rūdhirē
देहेस्थिमासं रूधिरेभिमतिं त्यजत्वं
जाया सुतादिषु सदा ममतां विमुञ्च |
पश्यानिशं जगदिदं क्षणभंगुनिष्ठं
वैराग्यराग रसिको भव भक्तिनिष्ठः ||
पिताजी यह शरीर अस्थि मांस और रुधिर का पिंड है इसे आपने जो अपना मान रखा है इसमें आपने जो मैं बुद्धि कर रखी है उसी को छोड़ दीजिए इस संसार को अहिर्निष क्षणभंगुर मानिए और ज्ञान राग के रसिक होकर भक्ति में नष्ट हो जाइये।
देहेस्थिमासं रूधिरे - Dēhēsthimāsan rūdhirē
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