धर्मं भजस्व सततं - dharmam bhajasv satatam
धर्मं भजस्व सततं त्यजलोकधर्मान्
सेवस्य साधुपुरुषाञ्जहि कामतृष्णाम |
अन्यस्य दोषगुण चिन्तनमासु मुक्त्वा
सेवाकथारसमहो नितरां पिबत्वम् ||
इसलिए पिताजी वैराग्य राग के रसिक होकर भक्ति में निष्ठ हो जाइए लौकिक धर्मों को त्याग कर भगवत भजन रूपी धर्म का आश्रय लीजिए काम तृष्णा से रहित हो साधु पुरुषों की सेवा कीजिए दूसरों के गुण और दोषों का चिंतन करना छोड़ दीजिए और भगवान की कथा रूपी अमृत का पान कीजिए।
धर्मं भजस्व सततं - dharmam bhajasv satatam
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