F Dharmaḥ Poojitha-kaitavo atra / धर्मः प्रोज्झितकैतवोत्र- श्लोक - bhagwat kathanak
Dharmaḥ Poojitha-kaitavo atra / धर्मः प्रोज्झितकैतवोत्र- श्लोक

bhagwat katha sikhe

Dharmaḥ Poojitha-kaitavo atra / धर्मः प्रोज्झितकैतवोत्र- श्लोक

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धर्मः प्रोज्झितकैतवोत्र परमोनिर्मत्सराणां सतां  
 वेद्यं वास्तवमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् |
श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैैरीश्वरः
सद्योह्रद्यवरुध्यतेत्र कृतिभिः शुश्रूषुभिस्तत्क्षणात्|

इस श्लोक में अनुबंध चतुष्टय का वर्णन किया गया है इस श्रीमद्भागवत का विषय क्या है |
धर्मः प्रोज्झितकैतवः इसमें कपट रहित परम धर्म का निरूपण किया गया है यही भागवत का विषय है भागवत के अधिकारी कौन है | निरर्मत्सराणां मत्सरता से रहित सत्पुरुष ही इसके अधिकारी हैं श्रीधर स्वामी जी कहते हैं------

परोत्कर्षा सहनं न इति मत्सरः|

जो दूसरे का उत्कर्ष को सह नहीं सकता उसे ही मत्सर कहते हैं |ऐसे मत्सर  से रहित सत्पुरुष ही भागवत की अधिकारी हैं | तापत्रयोन्मूलनम् आध्यात्मिक आधिदैविक आधिभौतिक इन तीन प्रकार के पापों का नाश करना ही भागवत का प्रयोजन है इसका संबंध क्या है इस भागवत की श्रवण करने की इच्छा मात्र से भगवान श्रीहरि हृदय में आकर बंदी बन जाते हैं यही भागवत का संबंध है ऐसे महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा रचित श्रीमद्भागवत के रहते हुए अन्य शास्त्रों से क्या प्रयोजन |

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