F सकलभुवनमध्ये - Sakala bhuvana madhyē - bhagwat kathanak
सकलभुवनमध्ये - Sakala bhuvana madhyē

bhagwat katha sikhe

सकलभुवनमध्ये - Sakala bhuvana madhyē

सकलभुवनमध्ये - Sakala bhuvana madhyē

 सकलभुवनमध्ये - Sakala bhuvana madhyē

सकलभुवनमध्ये निर्धनास्तेपि धन्या निवसति ह्रदि येषां श्रीहरेर्भक्ति रेका |
हरिरपि निजलोकं सर्वथातो विहाय   प्रविशति ह्रदि तेषां भक्तिसूत्रो पनद्धः ||
( मा.3.73 )

संपूर्ण त्रिभुवन में वे लोग निर्धन होकर भी धनवान है जिनके हृदय में भगवान श्री हरि की एकमात्र भक्ति निवास करती है इस भक्ति के सूत्र में बंध कर भगवान श्री हरि अपना लोक छोड़कर उन भक्तों के हृदय में आकर विराजमान हो जाते हैं। 

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