F सत्यां क्षितौ किं कशिपोः प्रयासै /Satyāṁ kṣhitau kiṁ - bhagwat kathanak
सत्यां क्षितौ किं कशिपोः प्रयासै /Satyāṁ kṣhitau kiṁ

bhagwat katha sikhe

सत्यां क्षितौ किं कशिपोः प्रयासै /Satyāṁ kṣhitau kiṁ

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सत्यां क्षितौ किं कशिपोः प्रयासै
               र्बाहौ स्वसिद्धे ह्युपबर्हणैः किम् |
सत्यञ्जलौ किं पुरुधान्नपात्र्या 
               दिग्वल्कलादौ सति किं दुकूलैः ||

यदि पृथ्वी पर सोने से काम चल जाता है तो गद्दे के लिए पलंग के लिए प्रयास करने की क्या आवश्यकता है | भुजाओं के होते हुए तकिए की क्या आवश्यकता अंजलि के होते हुए बहुत से पात्र एकत्रित करने की क्या आवश्यकता और चीर वतकल पहन कर काम चल जाता है तो अनेकों वस्त्रों से क्या प्रयोजन |

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