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Shrimad Bhagwat Mahapuran Shlok in Sanskrit

bhagwat katha sikhe

Shrimad Bhagwat Mahapuran Shlok in Sanskrit

Shrimad Bhagwat Mahapuran Shlok in Sanskrit

 Shrimad Bhagwat Mahapuran Shlok in Sanskrit

  • भागवत कथा, चतुर्थ स्कंध 

मनोस्तु शतरूपायां तिस्त्रः कन्याश्च जज्ञिरे |
आकुतिर्देवहूतिश्च प्रसूतिरिति विश्रुताः ||

श्री मैत्रेय जी कहते हैं , विदुर जी स्वायंभुव मनु और महारानी शतरूपा की आकृति देवहुति और प्रसूति नामक तीन कन्याएं हुई , आकूति का विवाह रुचि नाम के प्रजापति से हुआ जिनसे यज्ञ नारायण का जन्म हुआ |


त्रयाणामेकभावानां यो न पश्यति वै भिदाम् |
सर्वभूतात्मनां ब्रम्हन् स शान्तिमधिगच्छति ||

हम तीनों में जो समान भाव रखता है , वह शांति को प्राप्त कर लेता है ,,


अहो तेजः क्षत्रियाणां मानभंगममृष्यताम् |
बालोप्ययं   हृदा   धत्ते   यत्समातुरसद्वचः ||

अहो इस क्षत्रिय कुमार के तेज को तो देखो जो थोड़ा भी मान भंग नहीं सह सका धन्य है ये बालक जिसका इस प्रकार दृढ़ संकल्प है | 


तत्तात गच्छ भद्रं ते यमुनायास्तटं शुचि |
पुण्यं मधुवनं यत्र सानिध्यं नित्यदा हरेः ||

 बेटा तुम पवित्र यमुना के तट में मधुबन चले जाओ जहां भगवान श्री हरि नित्य निवास करते हैं वहां जमुना के निर्मल जल में स्नान करना आसन लगाकर प्राणायाम करना भगवान की मानसी पूजा करना ध्यान करना,,,

 Shrimad Bhagwat Mahapuran Shlok in Sanskrit

योन्तः प्रविश्य मम वाचमिमां प्रसुप्तां 
           संजावयत्यखिलशक्तिधरः स्वधाम्ना |
अन्यांश्च हस्तचरणश्रवणत्वगादीन
           प्राणान्नमो भगवते पुरुषाय तुभ्यम् ||
प्रभु आपने ही मेरे अंतःकरण में प्रवेश कर मेरे सोई हुई वाणी को सजीव किया है तथा आप ही हाथ पैर कान और त्वचा आदि इंद्रियों को चेतना प्रदान करते हैं मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं |


तितिक्षया करुणया मैत्र्या चाखिलजन्तुषु |
समत्वेन च सर्वात्मा भगवान् सम्प्रसीदति ||

भगवान श्री हरि तो अपनों से बड़े के प्रति शीलता छोटों के प्रति दया और बराबर वालों के साथ मित्रता और समस्त जीवो पर समानता का व्यवहार करने से ही प्रसन्न होते हैं , 


कुलं पवित्रं जननी कृतार्था
           वसुन्धरा पुण्यवती च तेन |
अपार सम्वित सुखसागरेस्मिन
           लीनं परं ब्रम्हणि यस्य चेतः ||
ध्रुव जी जिनका चित्त भगवान में लगा हुआ है , उनका कुल पवित्र हो जाता है और उनकी मां कृतार्थ तो हो जाती है , जहां उस भक्त का जन्म होता है वहां की भूमि तीर्थ हो जाती है ,,,

 Shrimad Bhagwat Mahapuran Shlok in Sanskrit

कदपत्यं वरं मन्ये सदपत्याच्छुचां पदात |
निर्विद्येत गृहान्मर्त्यो यत्क्लेशनिवहा गृहाः ||

मैं सुपुत्र की अपेक्षा दुष्ट पुत्र को श्रेष्ठ मानता हूं क्योंकि सुपुत्र का त्याग करना बड़ा ही कठिन है परंतु दुष्ट पुत्र घर को नर्क बना देता है जिससे सहज में ही उससे छुटकारा मिल जाता है,,,


न यष्टव्यं न दातव्यं न होतव्यं द्विजाः क्वचित् |
इति   न्यवारयध्दर्मं    भेरीघोषेण   सर्वशः  ||

राजा बनते ही बेन उन्मत्त हो गया  उसने अपने नगर में घोषणा करवा दी कोई भी ब्राह्मण ना यज्ञ करे ना दान करें और ना ही हवन करें,,,


बालिशा बत यूयं वा अधर्मे धर्ममानिनः |
ये वृत्तिदं पतिं हित्वा जारं पतिमुपासते ||
मुनियों तुम सभी मूर्ख हो तुमने अधर्म में धर्म बुद्धि लगा रखी है जो आजीविका प्रदान करने वाले मुझ परमेश्वर को छोड़कर किसी और जार पति की उपासना करते हो |


वसुधे त्वां वधिष्यामि मच्छासनपराङ् मुखीम् |
भागं बर्हिषि या वृङ्त्ते न तनोति च नो वसु ||
पृथ्वी तू मेरी आज्ञा का उल्लंघन करती है यज्ञ में अपना भाग तो ले लेती है परंतु बदले में हमें अन्न नहीं देती इसलिए मैं तुझे मार डालूंगा ,,,


यानि रुपाणि जगृहे इन्द्रो हयजिहीर्षया |
तानि पापस्य खण्डानि लिङ्गं खण्डमिहोच्यते ||
घोड़े को चुराने के लिए इंद्र ने जिन जिन रूपों को धारण किया वे सब पाप के  खंड चिन्ह होने के कारण पाखंड कहलाए |

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न कामये नाथ तदप्यहं क्वचिन्
            न यत्र युष्मच्चरणाम्बुजासवः |
महत्तमान्तर्ह्रदयान्मुखच्युतो 
             विधत्स्व कर्णायुतमेष मे वरः ||
प्रभो आपके चरण कमलों के अलावा कोई और कामना नहीं है यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे दस हजार कान दे दीजिए जिससे मैं निरंतर आप की कथा सुधारस का पान कर सकूं |


य उद्धरेत्करं राजा प्रजा धर्मेष्वशिक्षयन् |
प्रजानां शमलं भुङ्क्ते भगं च स्वं जहाति सः ||

जो राजा प्रजा से कर ( टैक्स ) तो लेता है परंतु उसे धर्म की शिक्षा नहीं देता वह प्रजा के पाप का भागी होता है,,


शास्त्रेष्वियानेव सुनिश्चितो नृणां 
             क्षेमस्य सध्र्यग्विमृशेषु हेतुः |
असंग आत्मव्यतिरिक्त आत्मनि
             दृढा रतिर्ब्रह्मणि निर्गुणे च या ||
 राजन शास्त्रों में प्राणियों के कल्याण का सरलतम उपाय यही बताया गया है कि आत्मा से अतिरिक्त जो भी पदार्थ है उनके प्रति बैराग हो जाए और निर्गुण ब्रह्म में दृढ़ अनुराग हो जाए | 

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स्वमेव ब्राम्हणो भ्ङ्क्ते स्वं वस्ते स्वं ददाति च |
तस्यैवानुग्रहेणान्नं     भुंजते      क्षत्रियादयः ||
 मुनीश्वरों ब्राह्मण अपना ही खाता है अपना ही पहनता है और अपनी ही वस्तुओं का दान देता है , दूसरे छत्रिय आदि तो उन्ही ब्राह्मण की कृपा से अन्न आदि को प्राप्त करते हैं |


श्रेयस्त्वं कतमद्राजन कर्मणात्मन् ईहषे |
दुःखहानिः सुखावाप्तिः श्रेयस्तन्नेह चेष्यते ||
राजन इस प्रकार पशु हिंसात्मक यज्ञों से तुम अपना किस प्रकार का कल्याण करना चाहते हो क्योंकि दुख की अत्यान्तिक निवृत्ति और परमानंद की प्राप्ति का नाम ही कल्याण है |


न जानामि महाभाग परं कर्मापविद्धधी |
ब्रूहि मे विमलं ज्ञानं येन मुच्येय कर्मभिः ||
 देवर्षि नारद मैं अपने कर्मों में मोहित होने के कारण कल्याण क्या है इसे मैं ना जान सका आप मुझे विशुद्ध ज्ञान का उपदेश दीजिए जिससे मैं अपने कर्म बंधन से मुक्त हो सकूं मुझे मुक्ति की प्राप्ति हो सके |


आसीत्पुरन्जनो नाम राजा राजन वृहच्छ्रवा |
तस्या विज्ञात नामासीत्सखा विज्ञात चेष्टितः ||
एक पुरंजन नाम का राजा था | परमं शरीरं जनयति इति पुरन्जनः || जो अपने कर्मों के अनुसार अनेकों प्रकार के शरीर धारण करें ऐसे जीवात्मा को पुरंजन कहते हैं , पुरन्जन का एक मित्र था , जिसका नाम अभिज्ञात था |
न विज्ञाय जन्मभिः कर्मभिः इति अभिज्ञातः || जिसके जन्म और कर्म का पता नहीं चलता ऐसा परमात्मा ही अभिज्ञात नाम का मित्र है |


क्वचिद् गायति गायन्त्यां रुदत्यां रुदती क्वचिद् |
क्वचिद्धसन्त्यां हसति जल्पन्त्यामनु जल्पति ||
जब वह गाती तो स्वयं भी गाने लगता जब वह रोती तो स्वयं भी रोने लगता , उसके हंसने पर हंसता , बात करने पर बात करता उसके शोक करने पर शोक करता और जब वह प्रसन्न हो जाती तो स्वयं प्रसन्न हो जाता |


का त्वं कस्यसि को वायं शयानो यस्य शोचसि |
जानासि किं   सखायं मां  येनाग्रे  विचचर्थ  हं ||
तुम कौन हो किसके लिए शोक कर रही हो ये पुरुष कौन है और क्या तुम मुझे जानती हो मैं तुम्हारे पूर्व जन्म का सखा हूं | 


न त्वं विदर्भदुहिता नायं वीरः सुह्रत्तवः |
न पतिस्त्वं पुरञ्जन्या रुध्दो नव मुखे यया ||
माया ह्येषा मया सृष्टा यत्पुमासंस्त्रियः सताम् |
मन्यसे नो भयं तद्वै हंसौ पश्यावयोर्गतिम् ||
न तो तुम विदर्भराज की पुत्री हो ,ना यह तुम्हारा पति है और ना ही पूर्व जन्म में तुम पुरजंनी के पति थे | जो तुम अपने आप को स्त्री या पुरुष मानते हो यह सब मेरी रचाई हुई माया है , तुम अपने वास्तविक स्वरूप का स्मरण करो |

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