स्वनिगममपहाय मत्प्रतिज्ञा /svanigama mapahay
स्वनिगममपहाय मत्प्रतिज्ञा -
मृतमधिकर्तुमवप्लुतो रथस्थः |
धृतरथचरणोभ्ययाच्चलद्गु-
र्हरिरिव हन्तुमिभं गतोत्तरीयः ||
जब युद्ध के प्रारंभ में के कुछ दिन व्यतीत हो गए और पांडवों का बाल भी बांका नहीं हुआ उस समय मामा शकुनी के बहकाने पर दुर्योधन ने पितामह भीष्म से कहा पितामह आप पक्षपाती हैं आपके हृदय में पांडवों के प्रति मोह है।
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