उत्पन्ना द्रविणेसाहं- utpanna dravine saahan
उत्पन्ना द्रविणेसाहं वृध्दिं कर्णाटके गता |
क्वचित्क्वचिन्महाराष्ट्रे गुर्जरे जीर्णतां गता ||
क्वचित्क्वचिन्महाराष्ट्रे गुर्जरे जीर्णतां गता ||
( मा.1.48 )
मैं दक्षिण में उत्पन्न हुई तथा कर्नाटक में वृद्धि को प्राप्त हुई कहीं-कहीं महाराष्ट्र में सम्मानित हुई और गुजरात में जाकर जीर्णता को प्राप्त हो गई वहां घोर कलिकाल के कारण पाखंडियों ने मुझे अंग भंग कर दिया-उत्पन्ना द्रविणेसाहं- utpanna dravine saahan
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