विपदः सन्तु नः शश्वत् /Vipadaḥ santu naḥ śaśvat
विपदः सन्तु नः शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरू |
भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भव दर्शनम् ||
मुझे जीवन में प्रत्येक पग में विपत्तियों की ही प्राप्ति हो क्योंकि विपत्ति होगी तो आपके दर्शन की प्राप्ति होगी और आपका दर्शन संसार सागर से मुक्त कराने वाला है |विपदः सन्तु नः शश्वत् /Vipadaḥ santu naḥ śaśvat
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