अजातपक्षा इव मातरं- ajata paksha iv mataram

 अजातपक्षा इव मातरं- ajata paksha iv mataram


अजातपक्षा इव मातरं खगाः
           स्तन्यं यथा वत्सतराः क्षुधार्ताः |
प्रियं प्रियेव व्युषितं विषण्णा
           मनोरविन्दाक्ष दिदृक्षते त्वाम् ||
( 6.11.26 )

प्रभु जैसे पंख विहीन पक्षी दाना लेने गई हुई अपनी मां की प्रतीक्षा करता है | जैसे भूखा बछडा मां के दूध के लिए आतुर रहता है | जैसे विदेश गए हुए पति की पत्नी प्रतीक्षा करती है ठीक उसी प्रकार मेरा मन आपके दर्शनों के लिए छटपटा रहा है |


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