ममोत्तमश्लोकजनेषु सख्यं /Mamōttama śhlōka janēṣu

ममोत्तमश्लोकजनेषु सख्यं /Mamōttama śhlōka janēṣu



ममोत्तमश्लोकजनेषु सख्यं 
            संसारचक्रे भ्रमतः स्वकर्मभिः |
त्वन्माययात्मात्मजदारगेहे-
            ष्वासक्तचित्तस्य न नाथ भूयात ||
( 6.11.27 )
प्रभु मेरा मेरे कर्मों के अनुसार जहां कहीं भी जन्म हो वहां मुझे आप के भक्तों का आश्रय प्राप्त हो देह गेह में आसक्त विषयी पुरुषों का संग मुझे कभी ना मिले इस प्रकार भगवान की स्तुति कर वृत्रासुर ने त्रिशूल उठाया और इंद्र को मारने के लिए दौड़ा इंद्र ने वज्र के प्रहार से वृत्रासुर की दाहिनी भुजा काट दिया भुजा के कट जाने पर क्रोधित हो वृत्तासुर अपने बाएं हाथ से परिघ उठाया और इंद्र पर ऐसा प्रहार किया कि इंद्र के हाथ से वज्र गिर गया यह देख इंद्र लज्जित हो गया क्योंकि इंद्र का वज्र वृत्रासुर के पैरों के पास गिरा था |

ममोत्तमश्लोकजनेषु सख्यं /Mamōttama śhlōka janēṣu


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