F Bhagwat Puran Most Shloka - bhagwat kathanak
Bhagwat Puran Most Shloka

bhagwat katha sikhe

Bhagwat Puran Most Shloka

Bhagwat Puran Most Shloka

 Bhagwat Puran Most Shloka

भागवत कथा हिंदी नवम स्कंध

श्रूयतां मानवो वंश:   प्राचुर्येण परंतप  ।
न  शक्यते  विस्तरतो   वक्तुं  वर्षशतैरपि  ।। ९/१/७

परीक्षित मैं तुम्हें संक्षेप में मनु वंश का वर्णन सुनाता हूं क्योंकि सैकड़ों वर्षो में भी मनु वंश का वर्णन विस्तार पूर्वक नहीं हो सकता | 


स   वै   मन:   कृष्णपदार विन्दोयो-
    र्वचांसि      वैकुण्ठ    गुणानुवर्णने  ।
करौ       हरेर्मन्दिर मार्जनादिषु
    श्रुतिं        चकाराच्युत सत्कथोदये  ।। ९/४/१८
उनका मन सदा भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों के ध्यान में लगा रहता था,वाणी से वे भगवान के नाम गुणों का कीर्तन करते ,हाथों से मंदिर की सफाई करते ,कानों से भगवान श्री हरि की मधुर कथा का पान करते----

तुमहिं निवेदित भोजन करहीं |
प्रभु प्रसाद पट भूषण धरहीं ||

सब कुछ भगवान को समर्पित करके ही उनका प्रसाद ग्रहण करते उनके इस भक्ति को देख भगवान श्री हरि ने अपना सुदर्शन चक्र उनकी रक्षा में नियुक्त कर दिया |

 Bhagwat Puran Most Shloka

अहं   भक्तपराधीनो  ह्यस्वतन्त्र   इव   द्विज  ।
साधुभिर्ग्रस्त हृदयो         भक्तैर्भक्त  जनप्रिय: ।। ९/४/६३

मैं अपने उन प्यारे भक्तों के अधीन हूं |


ये   दारागार पुत्राप्तान्  प्राणान्  वित्तमिमं परम्।
हित्वा  मां    शरणं याता: कथं तांस्त्यक्तु मुत्सहे।। ९/४/६५

जो भक्त मेरे लिए अपनी स्त्री घर पुत्र और धन का त्याग कर दिया है  | उनका त्याग में कैसे कर सकता हूं |



साधवो  हृदयं  मह्यं  साधूनां  हृदयं  त्वहम्   ।
मदन्यत् ते न  जानन्ति  नाहं तेभ्यो मनागपि।। ९/४/६८

भक्त मेरा हृदय है और मैं भक्तों का हृदय हूं वह मेरे अलावा किसी और को नहीं जानता इसीलिए तुमने जिसका अपराध किया है उसी की शरण में जाओ |

 Bhagwat Puran Most Shloka


सुदर्शन    नमस्तुभ्यं   सहस्त्राराच्युत प्रिय  ।
सर्वास्त्र घातिन्  विप्राय स्वस्ति भूया इडस्पते।। ९/५/४

हे सुदर्शन आप समस्त अस्त्रों को नष्ट करने वाले हैं, भगवान के अत्यंत प्रिय हो मैं तुम्हें नमस्कार करता हूं आप शांत हो जाइए | 


सड्गं  त्यजेत  मिथुनव्रतिनां  मुमुक्षु:
    सर्वात्मना न   विसृजेद्    बहिरिन्द्रियाणि  ।
एकश्चरन्     रहसि    चित्त मनन्त ईशे
     युञ्जीत  तद् व्रतिषु  साधुषु चेत्   प्रसंग: ।। ९/६/५१

इसलिए जो मोह से हट के मोक्ष प्राप्त करना चाहता है, उन्हें कभी भी भोगी प्राणियों का संग नहीं करना चाहिए | वह अकेला ही भ्रमण करें अपने इंद्रियों को बाहर ना भटकने दे अपने चित्त को भगवान के चरणों में लगा दें और यदि संग करने की इच्छा है तो भगवान के प्रेमी भक्तों का संग करें |


साधवो  न्यासिन:  शान्ता ब्रह्यिष्ठा लोकपावना: ।
हरन्त्यघं    तेऽड्गसंगात्  तेष्वास्ते ह्यघभिध्दरि: ।। ९/९/६

माता भगवान के जो परम प्रेमी भक्त हैं उनके हृदय में अघरूपी अघासुर को मारने वाले भगवान श्री हरि निवास करते हैं | जब आपको उनके शरीर का स्पर्श होगा तो आपके संपूर्ण पाप नष्ट हो जाएंगे | इसके अलावा आपके वेग को भगवान शंकर धारण करेंगे |

 Bhagwat Puran Most Shloka

गंगा गगेंति यो ब्रुयात योजनानां शतैरपि
मच्यते सर्व पापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति ||
जो सैकड़ों योजन दूर से भी मां गंगा-गंगा का स्मरण करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और भगवान को प्राप्त कर लेता है |बोलिए गंगा मैया की जय 


अथातः श्रूयतां राजन् वंशः सोमस्य पावनः |
यस्मिनैलादयो भूपाः कीर्त्यन्ते पुण्यकीर्तयः ||
( 9.14.1 )
( चंद्र वंश का वर्णन )
श्री सुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित अब मैं तुम्हें परम पवित्र चंद्र वंश का वर्णन सुनाता हूं | जिसमे पुरुरवा आदि अनेकों यशस्वी राजा हुए हैं |


को नु लोके मनुष्येन्द्र पितुरात्मकृतः पुमान् |
प्रतिकर्तुं क्षमो यस्य प्रसादाद् विन्दते परम् ||

पिता जी, पिता की ही कृपा से पुत्र के शरीर की प्राप्ति होती है, ऐसी अवस्था में पिता के उपकार का बदला कौन चुका सकता है | उत्तम पुत्र तो वह है जो पिता के मन की बात समझ कर उनके बिना कहे ही कर दे | जो कहने पर करें वह मध्यम पुत्र है और जो कहने पर भी ना करें वह अधम पुत्र है |


मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा ना विविक्तासनो भवेत |
बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांस मपि कर्षति ||
अपनी माता, बहिन और पुत्री के साथ भी किसी पुरुष को एकांत में नहीं बैठना चाहिए, क्योंकि इंद्रियां इतनी बलवान होती है कि बड़े-बड़े विद्वानों को भी विचलित कर देती हैं | 


न कामयेहं गतिमीश्वरात् परा मष्टर्धियुक्तामपुनर्भवं वा |

आर्तिं प्रपद्येखिल देह भाजा मन्तः स्थितो येन भवन्त्यदुःखा ||
रन्तिदेव ने कहा प्रभो मुझे आठों सिद्धियों से युक्त परम गति नहीं चाहिए, ना ही मैं मोक्ष चाहता हूं | मैं तो समस्त प्राणियों के हृदय में निवास करना चाहता हूं जिससे समस्त प्राणियों के दुख को सहन करूं और समस्त प्राणी सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करें |

 Bhagwat Puran Most Shloka


 Bhagwat Puran Most Shloka


    Ads Atas Artikel

    Ads Center 1

    Ads Center 2

    Ads Center 3