F इत्थं शरत्स्वच्छजलं /Itthaṁ śarat svachha jalaṁ - bhagwat kathanak
इत्थं शरत्स्वच्छजलं /Itthaṁ śarat svachha jalaṁ

bhagwat katha sikhe

इत्थं शरत्स्वच्छजलं /Itthaṁ śarat svachha jalaṁ

इत्थं शरत्स्वच्छजलं /Itthaṁ śarat svachha jalaṁ

 इत्थं शरत्स्वच्छजलं /Itthaṁ śarat svachha jalaṁ


इत्थं शरत्स्वच्छजलं पद्माकर सुगन्धिना |
न्यविशद वायुना वातं सगोगोपालकोच्युतः |

जब शरद ऋतु प्रारंभ हुई जब जल निर्मल हो गया कमल की सुगंध से सनकर वायु चारों ओर सुगंधी बिखेरने लगी| उस समय भगवान श्री कृष्ण ने गाय और ग्वाल बालों के साथ वन में प्रवेश किया और अपनी बांसुरी में मधुर तान छेड़ी | 

 इत्थं शरत्स्वच्छजलं /Itthaṁ śarat svachha jalaṁ


 इत्थं शरत्स्वच्छजलं /Itthaṁ śarat svachha jalaṁ


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