F क्वाहं रजः प्रभव /kvaham rajah prabhav - bhagwat kathanak
क्वाहं रजः प्रभव /kvaham rajah prabhav

bhagwat katha sikhe

क्वाहं रजः प्रभव /kvaham rajah prabhav

क्वाहं रजः प्रभव /kvaham rajah prabhav

 क्वाहं रजः प्रभव /kvaham rajah prabhav


क्वाहं रजः प्रभव ईश तमोन्धिकेस्मिन्
           जातः सुरेतरकुले क्व तवानुकम्पा |
न ब्राम्हणो न तु भवस्य न वै रमायाः
            यन्तेर्पिता शिरसि पद्मकरः प्रसादा ||
प्रभु कहां तो रजोगुण तमोगुण से युक्त असुर के वंश में उत्पन्न हुआ हूं मैं और कहां आपकी करुणा कृपा आपने जो अपनाकर कमल मेरे सिर पर रख दिया है, यह सौभाग्य ब्रह्मा जी शंकर जी और आपकी प्राण वल्लभा मां लक्ष्मी को भी प्राप्त नहीं हुआ | मैं धन्य हूं || 

 क्वाहं रजः प्रभव /kvaham rajah prabhav


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