न ह्यसत्यात् परोऽधर्म /na hyasatyat parodharma
न ह्यसत्यात् परोऽधर्म इति होवाच भूरियम् ।
सर्वं सोढुमलं मन्ये ऋतेऽलीकपरं नरम् ।। ८/२०/४
असत्य से बडा कोई अधर्म नहीं पृथ्वी सब कुछ सह सकती है परंतु झूठे व्यक्ति का भार उनसे नहीं सहा जाता |
न ह्यसत्यात् परोऽधर्म /na hyasatyat parodharma
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