न कामयेहं गतिमीश्वरात् /na kamyeham gati mishvarat
न कामयेहं गतिमीश्वरात् परा मष्टर्धियुक्तामपुनर्भवं वा |
आर्तिं प्रपद्येखिल देह भाजा मन्तः स्थितो येन भवन्त्यदुःखा ||
रन्तिदेव ने कहा प्रभो मुझे आठों सिद्धियों से युक्त परम गति नहीं चाहिए, ना ही मैं मोक्ष चाहता हूं | मैं तो समस्त प्राणियों के हृदय में निवास करना चाहता हूं जिससे समस्त प्राणियों के दुख को सहन करूं और समस्त प्राणी सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करें |
न कामयेहं गतिमीश्वरात् /na kamyeham gati mishvarat
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