प्रियव्रतो भागवत /priyavrato bhagavat
प्रियव्रतो भागवत आत्मारामः कथं मुने |
गृहेरमत यन्मूलः कर्मबन्ध: पराभवः ||
( 5/1/1 )
गुरुदेव महाराज प्रियव्रत भगवान के परम भक्त और आत्माराम थे | फिर उन्होंने किस कारण से कर्म बंधन में डालने वाले गृहस्थ आश्रम को स्वीकार किया और संतान आदि को प्राप्त कर ग्रहस्थ में रहते रहे |उन्होंने किस प्रकार आत्म ज्ञान को प्राप्त किया यह सब बताने की कृपा कीजिए |
प्रियव्रतो भागवत /priyavrato bhagavat
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